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  • यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 23
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्राणादयो देवताः छन्दः - स्वराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    प्रा॒णाय॒ स्वाहा॑ऽपा॒नाय॒ स्वाहा॑ व्या॒नाय॒ स्वाहा॒ चक्षु॑षे॒ स्वाहा॒ श्रोत्रा॑य॒ स्वाहा॑ वा॒चे स्वाहा॒ मन॑से॒ स्वाहा॑॥२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒णाय॑। स्वाहा॑। अ॒पा॒नाय॑। स्वाहा॑। व्या॒नायेति॑ विऽआ॒नाय॑। स्वाहा॑। चक्षु॑षे। स्वाहा॑। श्रोत्रा॑य। स्वाहा॑। वा॒चे। स्वाहा॑। मन॑से। स्वाहा॑ ॥२३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राणाय स्वाहापानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा चक्षुषे स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा वाचे स्वाहा मनसे स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्राणाय। स्वाहा। अपानाय। स्वाहा। व्यानायेति विऽआनाय। स्वाहा। चक्षुषे। स्वाहा। श्रोत्राय। स्वाहा। वाचे। स्वाहा। मनसे। स्वाहा॥२३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 22; मन्त्र » 23
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    अन्वयः - यैर्मनुष्यैः प्राणाय स्वाहाऽपानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा चक्षुषे स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा वाचे स्वाहा मनसे स्वाहा च प्रयुज्यते ते विद्वांसो जायन्ते॥२३॥

    पदार्थः -
    (प्राणाय) य आभ्यन्तराद् बहिर्निःसरति तस्मै (स्वाहा) योगयुक्ता क्रिया (अपानाय) यो बहिर्देशादाभ्यन्तरं गच्छति तस्मै (स्वाहा) (व्यानाय) यो विविधेष्वङ्गेष्वनिति व्याप्नोति तस्मै (स्वाहा) वैद्यकविद्यायुक्ता वाक् (चक्षुषे) चष्टे पश्यति येन तस्मै (स्वाहा) प्रत्यक्षप्रमाणयुक्ता वाणी (श्रोत्राय) शृणोति येन तस्मै (स्वाहा) आप्तोपदेशयुक्ता गीः (वाचे) वक्ति यया तस्यै (स्वाहा) सत्यभाषणादियुक्ता भारती (मनसे) मनननिमित्ताय संकल्पविकल्पात्मने (स्वाहा) विचारयुक्ता वाणी॥२३॥

    भावार्थः - ये मनुष्या यज्ञेन शोधितानि जलौषधिवाय्वन्नपत्रपुष्पफलरसकंदादीन्यश्नन्ति तेऽरोगा भूत्वा प्रज्ञाबलारोग्यायुष्मन्तो जायन्ते॥२३॥

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