Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 62
    ऋषिः - देवल ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
    3

    उपा॑स्मै गायता नरः॒ पव॑माना॒येन्द॑वे।अ॒भि दे॒वाँ२ऽइय॑क्षते॥६२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑। अ॒स्मै॒। गा॒य॒त॒। न॒रः॒। पव॑मानाय। इन्द॑वे। अ॒भि। दे॒वान्। इय॑क्षते ॥६२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपास्मै गायता नरः पवमानायेन्दवे । अभि देवाँऽइयक्षते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उप। अस्मै। गायत। नरः। पवमानाय। इन्दवे। अभि। देवान्। इयक्षते॥६२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 62
    Acknowledgment

    Meaning -
    Leaders and teachers, teach and train this brilliant and blessed young man of innocent and purifying nature, keen to meet and reverence the nobilities of honour and learning.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top