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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    यजा॑ नो मि॒त्रावरु॑णा॒ यजा॑ दे॒वाँ२ऽऋ॒तं बृ॒हत्।अग्ने॒ यक्षि॒ स्वं दम॑म्॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यज॑। नः॒। मि॒त्रावरु॑णा। यज॑। दे॒वान्। ऋ॒तम्। बृ॒हत् ॥ अग्ने॑। यक्षि॑। स्वम्। दम॑म् ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यजा नो मित्रावरुणा यजा देवाँऽऋतम्बृहत् । अग्ने यक्षि स्वन्दमम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यज। नः। मित्रावरुणा। यज। देवान्। ऋतम्। बृहत्॥ अग्ने। यक्षि। स्वम्। दमम्॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 3
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    Meaning -
    Sagely scholar brilliant as Agni, perform yajna for us, for the sake of our friends and the best people, for the divine powers of nature, in honour of the universal law, and for your own home. (Kindle the fire, develop the light, let the flames arise for all. )

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