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यजुर्वेद अध्याय - 33

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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
    366

    यजा॑ नो मि॒त्रावरु॑णा॒ यजा॑ दे॒वाँ२ऽऋ॒तं बृ॒हत्।अग्ने॒ यक्षि॒ स्वं दम॑म्॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यज॑। नः॒। मि॒त्रावरु॑णा। यज॑। दे॒वान्। ऋ॒तम्। बृ॒हत् ॥ अग्ने॑। यक्षि॑। स्वम्। दम॑म् ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यजा नो मित्रावरुणा यजा देवाँऽऋतम्बृहत् । अग्ने यक्षि स्वन्दमम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यज। नः। मित्रावरुणा। यज। देवान्। ऋतम्। बृहत्॥ अग्ने। यक्षि। स्वम्। दमम्॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    विद्वद्भिर्मनुष्यैः किं कार्य्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने! त्वं नो मित्रावरुणा देवांश्च यज, बृहदृतं यज, येन स्वं दमं यक्षि॥३॥

    पदार्थः

    (यज) सत्कुरु (नः) अस्माकम् (मित्रावरुणा) सुहृच्च्छ्रेष्ठौ (यज) देह्युपदिश। अत्रोभयत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अ॰६.३.१३५] इति दीर्घः। (देवान्) विदुषश्च (ऋतम्) सत्यम् (बृहत्) महत् (अग्ने) विद्वन् (यक्षि) संगमय (स्वम्) स्वकीयम् (दमम्) गृहम्॥३॥

    भावार्थः

    हे विद्वांसो जनाः! अस्माकं मित्रश्रेष्ठविदुषां सत्कर्त्तारः सत्योपदेशकाः स्वगृहकार्य्यसाधका यूयं भवत॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वान् मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन्! आप (नः) हमारे (मित्रावरुणा) मित्र और श्रेष्ठ जनों तथा (देवान्) विद्वानों का (यज) सत्कार कीजिये, (बृहत्) बड़े (ऋतम्) सत्य का (यज) उपदेश कीजिये, जिससे (स्वम्) अपने (दमम्) घर को (यक्षि) संगत कीजिये॥३॥

    भावार्थ

    हे विद्वान् मनुष्यो! हमारे मित्र, श्रेष्ठ और विद्वानों का सत्कार करनेहारे सत्य के उपदेशक और अपने घर के कार्यों को सिद्ध करनेहारे तुम लोग होओ॥३॥

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    विषय

    विद्वान् मित्रों और श्रेष्ठों का आदर करने का उपदेश । सूर्य चन्द्र या अग्नि सूर्य के समान दो शक्तियों का संसारपालन ।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन्, अग्रणी नेत: ! तू (नः मित्रावरुणा ) हमारे 'मित्र' स्नेही पुरुषों और 'वरुण' श्रेष्ठ और दुःखनिवारक पुरुषों का (यज) आदर कर । तू (देवान् यज) विद्वान् पुरुषों को दान दे और ( स्वम् ) अपने (दमम्) दमन करने हारे राष्ट्र को ( यक्षि ) सुसंगत, सुव्यवस्थित कर ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गौतमः । निचद् गायत्री । षड्जः ॥

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    विषय

    स्वागत की तैयारी

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र में वर्णित 'अग्नि' बनने के लिए हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि हैं (अग्ने) = आगे ले चलनेवाले प्रभो! आप अग्नि हैं, आपके सम्पर्क से हम भी अग्नि बन पाएँगे। आप (नः) = हमारे साथ (मित्रावरुणा) = प्राण और अपान का (यज) = मेल कीजिए [यज= सङ्गतिकरण] । रोगों से [मि] बचाने के कारण [त्र] प्राण ही 'मित्र' है और रोगों का निवारण [वरुण] करने से अपान 'वरुण' है। इस प्राणापान की शक्ति से सङ्गत होकर हम नीरोग बनेंगे। स्वस्थ शरीर से हम अपनी जीवन यात्रा को सफलता से सिद्ध कर पाएँगे। २. हे अग्ने ! आप हमें प्राणापान के द्वारा स्वस्थ बनाकर (देवान्) = दिव्य गुणों को (यज) = प्राप्त कराइए। आपकी कृपा से जहाँ हमारा शरीर स्वस्थ हो वहाँ हमारा मन भी पूर्णरूप से स्वस्थ हो। इस मन से राग-द्वेष-मोहरूप मल नष्ट हो जाएँ और उसमें दिव्य गुणों का विकास हो । ('येन देवा न वियन्ति नो च विद्विषते मिथः') = देव न परस्पर विरुद्ध गति करते हैं, न ही परस्पर द्वेष करते हैं। हम भी द्वेष से ऊपर उठकर देव बनें। ३. हे प्रभो ! (ऋतम्) = ऋत को (यज) = हमारे साथ सङ्गत कीजिए । (ऋत) = right = ठीक-ठीक वह है जो ठीक स्थान पर हो और ठीक समय पर हो। प्रभो! हम आपके अनुग्रह से सब कार्यों को ठीक समय पर व ठीक स्थान पर करनेवाले हों, क्योंकि यह ऋत ही (बृहत्) = [ बृहि वृद्धौ] हमारी वृद्धि का कारण बनेगा। ४. हे (अग्ने) = आगे ले चलनेवाले प्रभो! आप (स्वं दमम्) = आत्म- दमन को (यक्षि) = हमारे साथ सङ्गत कीजिए। हम अपना दमन करना सीखें। प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'गोतम' अपनी इन्द्रियों को प्रशस्त बनाने के लिए चार प्रार्थनाएँ करता है- १. मुझे प्राणापान २. दिव्य गुण ३. वृद्धि का कारणभूत ऋत व ४. आत्मदमन की शक्ति प्राप्त हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु के स्वागत की तैयारी का स्वरूप यही है कि हम १. स्वास्थ्य के द्वारा शरीर को रोगरूप मलों से दूर करते हैं २. दिव्य गुणों के द्वारा द्वेषरूप मानसमल को दूर करते हैं ३. ऋत के द्वारा उन्नति के विघ्नों को समाप्त करते हैं और ४. आत्मदमन से अपने सब मलों को दूर करने का प्रयत्न करते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे विद्वान माणसांनो ! तुम्ही आमचे मित्र, श्रेष्ठ माणसे व विद्वान यांचा सत्कार करून सत्याचा उपदेश करा व त्यामुळे तुम्हाला तुमच्या कार्यात सफलता प्राप्त होईल.

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    विषय

    विद्वान मनुष्यांनी काय केले पाहिजे, या विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (अग्ने) विद्वान महोदय, आपण (नः) आमचे (मित्रावरूणा) मित्रांचा आणि श्रेष्ठजनांचा तसेच (देवान्) विद्वान जनांचा (यज) सत्कार-सम्मान करा. तसेच (बृहत्) महान (ऋतम्) सत्याचा (यज) आम्हा (सामान्यजनांना आणि आम्हासह असलेल्या या मित्रांचा, विद्वानांना उपदेश करा. याप्रमाणे (स्वम्) आपण आपल्या (दमम्) घराला (यक्षि) संगती वा सत्संगाचे स्थळ होऊ द्या (अशी आम्ही सामान्यजन, जे आपल्या मित्र आणि विद्वानांसह आपल्या घराकडे आले आहेत, आपणास प्रार्थना करीत आहोत.) ॥3॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे विद्वान मनुष्यहो, आपण आमच्या मित्रांचा, श्रेष्ठजनांचा आणि विद्वानांचा सत्कार करून सत्योपदेशक व्हा आणि आपले गृहकृत्य (आतिथय वा अतिभियज्ञ) करणारे व्हा. ॥3॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned person, honour our friends, revered persons, and scholars. Preach grand truth unto us, and manage thy domestic affairs.

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    Meaning

    Sagely scholar brilliant as Agni, perform yajna for us, for the sake of our friends and the best people, for the divine powers of nature, in honour of the universal law, and for your own home. (Kindle the fire, develop the light, let the flames arise for all. )

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    Translation

    O foremost fire-divine, may we worship you as the source of light and source of bliss and other divine virtues, and perform the sacred rites in your own house. (1)

    Notes

    Yajā naḥ mitrāvaruṇņā, bring Mitra and Varuņa to us. Mitra, source of light. Varuna, source of bliss.

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    बंगाली (1)

    विषय

    বিদ্বদ্ভির্মনুষ্যৈঃ কিং কার্য়্যমিত্যাহ ॥
    বিদ্বান্ মনুষ্যদিগকে কী করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (অগ্নে) বিদ্বন্! আপনি (নঃ) আমাদের (মিত্রাবরুণা) মিত্র ও শ্রেষ্ঠ ব্যক্তিদিগের তথা (দেবান্) বিদ্বান্দিগের (য়জ) সৎকার করুন, (বৃহৎ) বড় (ঋতম্) সত্যের (য়জ) উপদেশ করুন, যদ্দ্বারা (স্বম্) নিজের (দমম্) গৃহকে (য়ক্ষি) সঙ্গত করুন ॥ ৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–হে বিদ্বান্ মনুষ্যগণ! আমাদের মিত্র, শ্রেষ্ঠ এবং বিদ্বান্দিগের সৎকার করে যে সত্য উপদেশক এবং নিজের গৃহের কার্য্যগুলির সাধনকারী তোমরা হও ॥ ৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়জা॑ নো মি॒ত্রাবর॑ুণা॒ য়জা॑ দে॒বাঁ২ऽঋ॒তং বৃ॒হৎ ।
    অগ্নে॒ য়ক্ষি॒ স্বং দম॑ম্ ॥ ৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়জা ন ইত্যস্য গোতম ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদ্ গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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