यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 91
ऋषिः - मनुर्ऋषिः
देवता - विश्वेदेवा देवताः
छन्दः - विराट् बृहती
स्वरः - मध्यमः
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दे॒वन्दे॑वं॒ वोऽव॑से दे॒वन्दे॑वम॒भिष्ट॑ये। दे॒वन्दे॑वꣳ हुवेम॒ वाज॑सातये गृ॒णन्तो॑ दे॒व्या धि॒या॥९१॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वन्दे॑वमिति॑ दे॒व॒म्ऽदे॑वम्। वः॒। अव॑से। दे॒वन्दे॑व॒मिति॑ दे॒वम्ऽदे॑वम्। अ॒भिष्ट॑ये ॥ दे॒वन्दे॑वमिति॑ दे॒वम्ऽदे॑वम्। हु॒वे॒म॒। वाज॑सातय॒ इति॒ वाज॑ऽसातये। गृ॒णन्तः॑। दे॒व्या। धि॒या ॥९१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
देवन्देवँवोवसे देवन्देवमभिष्टये । देवन्देवँ हुवेम वाजसातये गृणन्तो देव्या धिया ॥
स्वर रहित पद पाठ
देवन्देवमिति देवम्ऽदेवम्। वः। अवसे। देवन्देवमिति देवम्ऽदेवम्। अभिष्टये॥ देवन्देवमिति देवम्ऽदेवम्। हुवेम। वाजसातय इति वाजऽसातये। गृणन्तः। देव्या। धिया॥९१॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजर्धमविषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! देव्या धिया गृणन्तो वयं यथा वोऽवसे देवन्देवं हुवेम वोऽभिष्टये देवन्देवं हुवेम वो वाजसातये च देवन्देवं हुवेम तथा यूयमप्येवमस्मभ्यं कुरुत॥९१॥
पदार्थः
(देवन्देवम्) विद्वांसं विद्वांसं दिव्यं दिव्यं पदार्थं वा (वः) युष्माकम् (अवसे) रक्षणाद्याय (देवन्देवम्) (अभिष्टये) इष्टसुखाय (देवन्देवम्) (हुवेम) आह्वयामः स्वीकुर्याम वा (वाजसातये) वाजानां वेगादीनां सम्भागाय (गृणन्तः) स्तुवन्तः (देव्या) देदीप्यमानया (धिया) प्रज्ञया कर्मणा वा॥९१॥
भावार्थः
ये राजपुरुषाः सर्वेषां प्राणिनां हिताय विदुषः सत्कृत्यैतैः सत्योपदेशान् प्रचार्य सृष्टिपदार्थान् विज्ञाय सर्वाभीष्टं संसाध्य सङ्ग्रामान् जयन्ति, ते दिव्यां कीर्तिं प्रज्ञाञ्च लभन्ते॥९१॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजधर्म विषय को कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! (देव्या) प्रकाशमान (धिया) बुद्धि वा कर्म से (गृणन्तः) स्तुति करते हुए हम लोग जैसे (वः) तुम्हारे (अवसे) रक्षादि के लिये (देवन्देवम्) विद्वान्-विद्वान् वा उत्तम पदार्थ को (हुवेम) बुलावें वा ग्रहण करें तुम्हारे (अभिष्टये) अभीष्ट सुख के लिये (देवन्देवम्) विद्वान्-विद्वान् वा उत्तम प्रत्येक पदार्थ को तथा तुम्हारे (वाजसातये) वेगादि के सम्यक् सेवन के लिये (देवन्देवम्) विद्वान्-विद्वान् वा उत्तम प्रत्येक पदार्थ को बुलावें वा स्वीकार करें, वैसे तुम लोग भी ऐसा हमारे लिये करो॥९१॥
भावार्थ
जो राजपुरुष सब प्राणियों के हित के लिये विद्वानों का सत्कार कर इनसे सत्योपदेश का प्रचार करा सृष्टि के पदार्थों को जान और सब अभीष्ट सिद्ध कर संग्रामों को जीतते हैं, वे उत्तम कीर्ति और बुद्धि को प्राप्त होते हैं॥९१॥
भावार्थ
(देव्या धिया) उत्तम भावों से उज्ज्वल, प्रकाशमान विद्वान् ईश्वर और वीर राजा के योग्य आदर बुद्धि (गृणन्तः) स्तुति करते हुए हम लोग (अवसे) रक्षण, ज्ञान और सुख प्राप्ति के लिये हम ( देवं देवम् ) प्रत्येक विद्वान् को और (अभीष्टये) अभीष्ट सुख प्राप्त करने के लिये ( देवं देवम् ) प्रत्येक व्यवहार कुशल पुरुष को और ( वाजसातये) संग्राम विजय के लिये और अन्नादि ऐश्वर्य के प्राप्त करने के लिये ( देवं देवम् ) प्रत्येक विजयेच्छु वीर पुरुष को आदरपूर्वक बुलावें और अपनावें ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मनुर्ऋषिः । विश्वेदेवा देवताः । विराड् बृहती । मध्यमः ॥
विषय
देवों का आह्वान
पदार्थ
१. (वः) = आपमें से (देवं देवम्) = प्रत्येक देव को (अवसे) = रक्षण के लिए (हुवेम) = पुकारते हैं। शरीर में रोगों का प्रवेश तभी होता है जब वहाँ दिव्य गुणों का स्थान विषय-वासनाएँ ले-लेती हैं। भोगवृत्ति आते ही रोग आने लगते हैं। एक समझदार व्यक्ति= मनु इस बात का पूरा ध्यान करता है कि कहीं विलास उसके विनाश का कारण न बन जाए। २. (देवं देवम्) = हम प्रत्येक देव को (हुवेम) = पुकारते हैं (अभिष्टये) = [क] वासनाओं पर आक्रमण के लिए और [ख] वासनाओं पर आक्रमण करके अभीष्ट की प्राप्ति के लिए। वासनाओं को दूर करने का उपाय 'प्रतिपक्षभावनम्' वासना विरोधी दिव्य गुणों का भावन ही है। झूठ को दूर करने के लिए हमें उस स्थान पर सत्य को लाकर बिठाना चाहिए। प्रकाश को लाएँगे, अन्धकार तो भाग ही जाएगा। ३. हम (देवम् देवम्) = प्रत्येक देव को (हुवेम) = पुकारते हैं (वाजसातये) = शक्ति की प्राप्ति के लिए। दिव्य गुणों के निवास से शक्ति बढ़ती है, इनके ऋास में शक्ति का ॠास है। ४. इस प्रकार देवों को प्राप्त करने से शरीर रोगों से आक्रान्त नहीं होता, मन वासनाओं से अभिभूत नहीं होता और हमारा जीवन सशक्त बना रहता है, परन्तु इन देवों का आह्वान होता कैसे है- (देव्या धिया गृणन्तः) = दिव्य बुद्धि से प्रभु के नामों का उच्चारण करते हुए। जब हमारी वाणी प्रभु के नामों का उच्चारण करेगी और हम दिव्य गुणों की कामनावाली बुद्धि से उन नामों का भावन व चिन्तन करेंगे तभी ऐसा हो पाएगा।
भावार्थ
भावार्थ-'मनु'=एक समझदार व्यक्ति दिव्यगुणों को धारण करता है, जिससे उसका शरीर नीरोग हो पाए, उसका मन वासनाओं पर आक्रमण कर उन्हें पराजित कर सके और वह शक्ति का धारण कर पाए। इसी उद्देश्य से वह बुद्धिपूर्वक प्रभु नाम स्मरण में प्रवृत्त होता है।
मराठी (2)
भावार्थ
जे राजपुरुष सर्व प्राण्यांच्या हितासाठी विद्वानांचा सत्कार करतात व त्यांच्याकडून सत्याचा प्रसार करवितात व सृष्टीतील पदार्थांना जाणून सर्व प्रकारचे अभीष्ट सिद्ध करतात व संग्राम जिंकतात ते उत्तम कीर्ती व बुद्धी प्राप्त करतात.
विषय
आता राजधर्मा विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ -हे मनुष्यानो (प्रजाजनहो) (देव्या) उत्तमबुद्धी वा कर्मांद्वारे (गृणन्तः) (विद्वानांची) स्तुती करीत ज्याप्रमाणे आम्ही (राजपुरुष) (वः) तुम्हा (प्रजाजनांच्या) (अवसे) रक्षणासाठी (देवन्देवम्) विद्वानांना बोलावतो (त्यांच्याकडून मार्गदर्शन घेतो) अथवा (हुवेम) उत्तमोत्तम पदार्थांचा संगह करतो वा ग्रहण करतो (तसे तुम्हीही आमच्याप्रत करीत जा) तुमच्या (अभिष्टये) इच्छित सुखासाठी (देवन्देवम्) विद्वान वा उत्तम पदार्थ संग्रहीत करतो तसेच तुमच्या (वाजसातये) वेगाने प्रवास करण्यासाठी (देवन्देवम्) विद्वानांचे मत घेतो वा उत्तम प्रत्येक पदार्थ आणतो वा मागवून घेतो, तसे प्रजाजनहो, तुम्हीही करा (राजपुरुषांच्या सहाय्यासाठी वेळ पडल्यास पदार्थ द्या आणि उत्तम विद्वानांना आमच्या पर्यंत घेऊन या. ) ॥91॥
भावार्थ
भावार्थ - जे राजपुरुष सर्व प्राण्यांच्या कल्याणासाठी विद्वज्जनांचा सत्कार करतात, त्यांच्या तर्फे हितोपदेशाचा प्रचार करवितात. तसेच सृष्टीतील पदार्थांचे ज्ञान प्राप्त करूनसर्व इच्छित पदार्थ प्राप्त करून युद्धात विजय मिळवतात, ते श्रेष्ठ यश आणि बुद्धी प्राप्त करतात. ॥91॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Singing their praises with godlike wisdom, let us invoke each learned person for your protection ; each scholar for the acquisition of desired happiness, and each sage for enjoying progress.
Meaning
Children of mother earth, with pious intentions, brilliant intelligence and noble actions, singing and celebrating, we call upon every princely hero for protection and security. We invoke every divine power for happiness and well-being. We invite every scholar and leader of eminence for victory in the battles of life.
Translation
We invoke every divine force for protection and for the fulfilment of our aspirations. We invoke and glorify with sacred hymns each and every divine force for the acquisition of food. (1)
Notes
Abhiṣṭaye,इष्टफलप्राप्तये,to obtain our heart's desires. Vājasātaye, वाज: बलं अन्नं वा , to get vigour or food.
बंगाली (1)
विषय
পুনা রাজর্ধমবিষয়মাহ ॥
পুনঃ রাজধর্ম বিষয়কে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! (দেব্যা) প্রকাশমান্ (ধিয়া) বুদ্ধি বা কর্ম দ্বারা (গৃণন্তঃ) স্তুতি করিয়া আমরা যেমন (বঃ) তোমাদিগের (অবসে) রক্ষাদি হেতু (দেবেন্দেবম্) বিদ্বান্ বা উত্তম পদার্থ কে (হুবেম) আবাহন করি বা গ্রহণ করি তোমার (অভিষ্টয়ে) অভীষ্ট সুখের জন্য (দেবন্দেবম্) বিদ্বান্ বা উত্তম প্রত্যেক পদার্থকে তথা তোমার (বাজসাজয়ে) বেগাদির সম্যক্ সেবন হেতু (দেবন্দেবম্) বিদ্বান্ বিদ্বান্ বা উত্তম প্রত্যেক পদার্থকে আহ্বান করিবে বা স্বীকার করিবে সেইরূপ তোমরাও এমন আমাদের জন্য কর ॥ ঌ১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে সব রাজপুরুষ সকল প্রাণীদের হিতের জন্য বিদ্বান্দিগের সৎকার করিয়া ইহাদের দ্বারা সত্যোপদেশের প্রচার করাইয়া সৃষ্টির পদার্থ সকলকে জানিয়া এবং সকল অভীষ্ট সিদ্ধ করিয়া সংগ্রাম সমূহকে জিতিয়া লয় তাহারা উত্তম কীর্ত্তি ও বুদ্ধিকে প্রাপ্ত করে ॥ ঌ১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
দে॒বন্দে॑বং॒ বোऽব॑সে দে॒বন্দে॑বম॒ভিষ্ট॑য়ে ।
দে॒বন্দে॑বꣳ হুবেম॒ বাজ॑সাতয়ে গৃ॒ণন্তো॑ দে॒ব্যা ধি॒য়া ॥ ঌ১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
দেবন্দেবমিত্যস্য মনুর্ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । বিরাট্ বৃহতী ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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