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यजुर्वेद अध्याय - 33

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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 26
    ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    128

    इन्द्रो॑ वृ॒त्रम॑वृणो॒च्छर्द्ध॑नीतिः॒ प्र मा॒यिना॑ममिना॒द्वर्प॑णीतिः।अह॒न् व्यꣳसमु॒शध॒ग्वने॑ष्वा॒विर्धेना॑ऽअकृणोद्रा॒म्याणा॑म्॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑। वृ॒त्रम्। अ॒वृ॒णो॒त्। शर्द्ध॑नीति॒रिति॒ शर्द्ध॑ऽनीतिः। प्र। मा॒यिना॑म्। अ॒मि॒ना॒त्। वर्प॑णीतिः। वर्प॑नीति॒रिति॒ वर्प॑ऽनीतिः ॥ अह॑न्। व्य॑ꣳस॒मिति॒ विऽअ॑ꣳसम्। उ॒शध॑क्। वने॑षु। आ॒विः। धेनाः॑ अ॒कृ॒णो॒त्। रा॒म्याणा॑म् ॥२६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो वृत्रमवृणोच्छर्धनीतिः प्र मायिनाममिनाद्वर्पणीतिः । अहन्व्यँसमुशधग्वनेष्वाविर्धेनाऽअकृणोद्राम्याणाम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः। वृत्रम्। अवृणोत्। शर्द्धनीतिरिति शर्द्धऽनीतिः। प्र। मायिनाम्। अमिनात्। वर्पणीतिः। वर्पनीतिरिति वर्पऽनीतिः॥ अहन्। व्यꣳसमिति विऽअꣳसम्। उशधक्। वनेषु। आविः। धेनाः अकृणोत्। राम्याणाम्॥२६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 26
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    राजपुरुषाः कीदृशाः स्युरित्याह॥

    अन्वयः

    शर्द्धनीतिर्वर्पनीतिरुशधगिन्द्रो वृत्रमवृणोत् मायिनां प्रामिणात् वनेषु व्यंसमहन् राम्याणां धेना आविरकृणोत्, स एव राजा भवितुं योग्यः॥२६॥

    पदार्थः

    (इन्द्रः) सूर्य इव प्रतापी सभेशः (वृत्रम्) दुष्टं शत्रुं प्रकाशावरकं मेघमिव धर्मावरकम् (अवृणोत्) युद्धाय वृणुयात् (शर्द्धनीतिः) शर्द्धस्य बलस्य नीतिर्नयनं प्रापणं यस्य (प्र) (मायिनाम्) माया कुत्सिता प्रज्ञा विद्यते येषान्तान्। अत्र कर्मणि षष्ठी (अमिनात्) हिंस्यात् (वर्पणीतिः) वर्पाणां नानाविधानां रूपाणां नीतिः प्राप्तिर्यस्य सः (अहन्) हन्यात् (व्यंसम्) विगता अंसा भुजमूलानि यस्य तम् (उशधक्) य उशन्ति परस्वं कामयन्ति तान् दहति सः (वनेषु) स्थितं तस्करम् (आविः) प्रादुर्भूते (धेनाः) वाणीः (अकृणोत्) कुर्यात् (राम्याणाम्) रमयन्ति आनन्दयन्ति तेषाम्॥२६॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सूर्य्यवत्सुशिक्षिता वाचः प्रकटयन्ति, अग्निर्वनानीव दुष्टान् शत्रून् दहन्ति, दिनं रात्रिमिव छलकापट्याविद्यान्धकारादीन् निवर्त्तयन्ति, बलमाविष्कुर्वन्ति, ते सुप्रतिष्ठिता राजजना भवन्ति॥२६॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    राजपुरुष कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (शर्द्धनीतिः) बल को प्राप्त (वर्पणीतिः) नाना प्रकार के रूपोंवाला (उशधक्) पर पदार्थों को चाहनेवाला चोरादि को नष्ट करनेहारा (इन्द्रः) सूर्य्य के तुल्य प्रतापी सभापति (वृत्रम्) प्रकाश को रोकनेहारे मेघ के तुल्य धर्म के निरोधक दुष्ट शत्रु को (अवृणोत्) युद्ध के लिये स्वीकार करे, (मायिनाम्) दुष्ट बुद्धिवाले छली-कपटी आदि को (प्र, अमिनात्) मारे, जो (वनेषु) वनों में रहनेवाले (व्यंसम्) कपटी हैं भुजा जिसकी, ऐसे चोर को (अहन्) मारे और (राम्याणाम्) आनन्द देनेवाले उपदेशकों की (धेनाः) वाणियों को (आविः, अकृणोत्) प्रकट करे, वही राजा होने को योग्य है॥२६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सूर्य के तुल्य सुशिक्षित वाणियों को प्रकट करते, जैसे अग्नि वनों को वैसे दुष्ट शत्रुओं को मारते, दिन जैसे रात्रि को निवृत्त करे वैसे छल, कपटता और अविद्यारूप अन्धकारादि को निवृत्त करते और बल को प्रकट करते हैं, वे अच्छे प्रतिष्ठित राजपुरुष होते हैं॥२६॥

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    विषय

    साहसी पुरुष के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (शर्धनीतिः) बल, सेनाबल को अग्रणी होकर ले चलने वाला (इन्द्रः) शत्रुसंहारक सेनापति ( वृत्रम् अवृणोत् ) नगररोधी शत्रु को रोक ले और (वर्पणीतिः) नानारूपों के व्यूहों के करने और चलाने में चतुर सेनापति ( मायिनाम् ) मायावी पुरुषों को भी (अमिनात्) विनाश करे । (वनेषु) वनों में लगा ( उशधग् ) अग्नि जैसे सबको भस्म कर देता है । वैसे ( उशधग्) पराये धन के लोभी चोर डाकू आदि को पीड़ित करने में कुशल राजा (वनेषु) वनों में स्थित ( व्यंसम् ) अपने पराये धनों को हरने वाले चोर को उसके बाहुएं या कन्धे काट करके ( अहन् मारे और ( राम्याणाम् ) प्रसन्न करने बाले स्तुति पाठकों की (धेना) वाणियों को (आवि: अकृणोत् ) प्रकट करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्रः । इन्द्रः । भुरिक् पंक्तिः । पंचमः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सूर्याप्रमाणे तेजस्वी असतात व सुसंस्कृत वाणीचा प्रयोग करतात. अग्नी जसा वनाला जाळतो तसे जे दुष्ट शत्रूंचा नाश करतात, दिवस जसे रात्रींचा नाश करतात तसे जे छल कपट अविद्येचा अंधःकार नष्ट करून आपले सामर्थ्य प्रकट करतात तेच योग्य (प्रतिष्ठा प्राप्त) राजपुरुष असतात.

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    विषय

    राजपुरूष कसे असावेत

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (शर्द्धर्पनीतिः) बलवान (वर्षणीतिः) नानाविध रूप धारण करणारा (उशधक्) शत्रूच्या पदार्थांना जिंकून आणणारा आणि चोर, लुटारूंचा नाश करणारा (इन्द्रः) सूर्यवत प्रतापी आपचा सभापती धर्मविरोधी सुष्ट शत्रूंना (अवृणोत्) शोधून काढो आणि त्यांचा नाश करो. कशाप्रकारे की जसा (वृत्रम्) प्रकाशाचा विरोध करणार्‍या मेघमंडळाला सूर्य छिन्न-भिन्न करतो. तद्वत आमच्या सभापतीने (मायिनाम्) दुर्बुद्धी, कपट, ठक आदी लोकांना (प्र, अमिनात्) ठार मारावे (वनेषु) तसेच वनात राहणार्‍या (व्यंसम्) लुटारू, दरोडेखोर, चोर आदीना (अहन्) पकडावे वा मारावे आणि (राम्याणाम्) आनंददायी उपदेशकांनी (धेनाः) वाणी सर्व लोकांना पवित्र वा सदाचारी करील अशी व्यवस्था राजाने (आविः अकृणोत्) करावी. जो राजा वरील सर्व कामें करणारा असेल, तोच राजा होण्यास पात्र असतो. ॥26॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जे लोक सूर्याप्रमाणे स्वच्छ, प्रेरणादायक वाणी बोलतात. अग्नी जसा वनांना तसे जे शत्रूंना नष्ट करतात, दिवस जसा रात्रीला निवृत्त करतो तद्वत जे छल-कपट, अविधारूप अंधकाराला दूर करतात आणि शक्ती वाढवतात, तेच प्रतिष्ठित राजपुरूष म्हणविले जातात ॥26॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    He alone is fit to be elected the head of the State, who possesses power, knows how to arrange his army in different military arrays, is majestic like the sun; challenges for battle his impious foes, chastises the wily and deceitful persons, kills the dacoits hidden in forests, and makes apparent the words of preachers who diffuse happiness.

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    Meaning

    Indra, ruling lord of light and power, challenges the dark clouds of evil and crime. Strong of policy and versatile of working ways and forms, he frustrates the designs of the cunning. Scourge of thieves and grabbers hiding in the forests, he breaks their arms and burns them to dust. And he gives full expression to the voice and actions of those who contribute to delightful peace and prosperity.

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    Translation

    The resplendent self, the inspirer of glorious deeds, destroys evils; resistless in combat, he overcomes deceivers who resolve to consume him. He completely annihilates the mutilated demoniac ideas lurking in the confused human brain and recovers the stolen wisdom to win over conflicts of life. (1)

    Notes

    Sardhanitih, one, whose policy is of strength; believer in 'might is right. ' Vrtram avrnot, destroyed, or besieged the evil foe. Māyinām pra aminät, he overcomes or annihilates the deceivers. Varpanitih, वर्प इति रूपनाम, by a policy of assuming dif ferent forms. Vyamsam,दुष्टं, wicked person. Rāmyānām, रमयन्ति आनन्दयन्ति ये तेषां, परोपकारिणां, of benevolent persons. Dhena āviḥ akṛṇot,brings out or recovers the lost wisdom.

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    बंगाली (1)

    विषय

    রাজপুরুষাঃ কীদৃশাঃ স্যুরিত্যাহ ॥
    রাজপুরুষ কেমন হইবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–(শর্দ্ধনীতিঃ) বল প্রাপ্ত (বর্পনীতিঃ) নানা প্রকারের রূপযুক্ত (উশধক) অপরের বস্তু কামনাকারী চোরাদিকে বিনাশকারী (ইন্দ্রঃ) সূর্য্যতুল্য প্রতাপী সভাপতি (বৃত্রম্) প্রকাশের আবরণকারী মেঘের তুল্য ধর্মের নিরোধক দুষ্ট শত্রুকে (অবৃণোৎ) যুদ্ধের জন্য স্বীকার করিবে, (মায়িনাম্) দুষ্ট বুদ্ধিযুক্ত ছল-কপট যুক্ত আদিকে (প্র, অমিনাৎ) মারিবে, যাহারা (বনেষু) বনে নিবাসকারী (ব্যংসম্) কপটযুক্ত ভুজ যাহার, এমন চোরকে (অহন্) মারিবে এবং (রাম্যাণাম্) আনন্দদাতা উপদেশকের (ধেনাঃ) বাণীকে (আবিঃ, অকৃণোৎ) আবির্ভূত করিবেন, তিনিই রাজা হইবার যোগ্য ॥ ২৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যাহারা সূর্য্যের তুল্য সুশিক্ষিত বাণীসমূহকে প্রকট করে, যেমন অগ্নি বনকে সেইরূপ দুষ্ট শত্রুদিগকে মারিবে, দিন যেমন রাত্রিকে নিবৃত্ত করে তদ্রূপ ছল, কপটতা এবং অবিদ্যারূপ অন্ধকারাদিকে নিবৃত্ত করে এবং বলকে প্রকট করে, তাহারা উত্তম প্রতিষ্ঠিত রাজপুরুষ হয় ॥ ২৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ইন্দ্রো॑ বৃ॒ত্রম॑বৃণো॒চ্ছর্দ্ধ॑নীতিঃ॒ প্র মা॒য়িনা॑মমিনা॒দ্বর্প॑ণীতিঃ ।
    অহ॒ন্ ব্য᳖ꣳসমু॒শধ॒গ্বনে॑ষ্বা॒বির্ধেনা॑ऽঅকৃণোদ্রা॒ম্যাণা॑ম্ ॥ ২৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ইন্দ্র ইত্যস্য বিশ্বামিত্র ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । ভুরিক্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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