अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 15
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - याजुषी गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
अर॑दुपरम ॥
स्वर सहित पद पाठअर॑दुपरम् ॥१३१.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
अरदुपरम ॥
स्वर रहित पद पाठअरदुपरम् ॥१३१.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 15
विषय - ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ -
(अरदुपरम) हे हिंसा से निवृत्तिवाले ! ॥१॥
भावार्थ - मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥
टिप्पणी -
१−(अरदुपरम) वर्त्तमाने पृषद्बृहन्महज्। उ० २।८४। ऋ हिंसायाम-अति+उप-रम निवृत्तौ-घञ्। हिंसनात् निवृत्तिशील ॥