अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 16
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - याजुषी गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
शयो॑ ह॒त इ॑व ॥
स्वर सहित पद पाठशय॑: । ह॒त: । इ॒व ॥१३१.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
शयो हत इव ॥
स्वर रहित पद पाठशय: । हत: । इव ॥१३१.१६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 16
विषय - ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ -
(शयः) साँप [के समान शत्रु] (हतः) मारा हुआ (इव) जैसे है ॥१६॥
भावार्थ - मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥
टिप्पणी -
१६−(शयः) शीङ् शयने-अच्। सर्पः। सर्प इव शत्रुः (हतः) नाशितः (इव) यथा ॥