अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 9
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
वनि॑ष्ठा॒ नाव॑ गृ॒ह्यन्ति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठवनि॑ष्ठा॒: ॥ न । अव॑ । गृ॒ह्यन्ति॑ ॥१३१.९॥
स्वर रहित मन्त्र
वनिष्ठा नाव गृह्यन्ति ॥
स्वर रहित पद पाठवनिष्ठा: ॥ न । अव । गृह्यन्ति ॥१३१.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 9
विषय - ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ -
(वनिष्ठाः) अत्यन्त उपकारी लोग (न) नहीं (अव गृह्यन्ति) रुकते हैं ॥९॥
भावार्थ - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥
टिप्पणी -
९−(वनिष्ठाः) वनितृ-इष्ठन्, तृचो लोपः। वनितृतमाः। उपकारितमाः (न) निषेधे (अव गृह्यन्ति) अवग्रहं प्रतिरोधं प्राप्नुवन्ति ॥