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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 11
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - विराड्गायत्री सूक्तम् - विराट् सूक्त

    तां र॑ज॒तना॑भिः काबेर॒कोधो॒क्तां ति॑रो॒धामे॒वाधो॑क्।

    स्वर सहित पद पाठ

    ताम् । र॒ज॒तऽना॑भि: । का॒बे॒र॒क: । अ॒धो॒क् । ताम् । ति॒र॒:ऽधाम् । ए॒व । अ॒धो॒क् ॥१४.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तां रजतनाभिः काबेरकोधोक्तां तिरोधामेवाधोक्।

    स्वर रहित पद पाठ

    ताम् । रजतऽनाभि: । काबेरक: । अधोक् । ताम् । तिर:ऽधाम् । एव । अधोक् ॥१४.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 5; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (ताम्) उस [विराट्] को (काबेरकः) प्रशंसनीय गुणों के निवास (रजतनाभिः) ज्ञान के प्रबन्धक [वा क्षत्रिय] ने (अधोक्) दुहा है, (ताम्) उस (तिरोधाम्) अन्तर्धान शक्ति को (एव) ही (अधोक्) दुहा है ॥११॥

    भावार्थ - ज्ञानी शूर पुरुष ईश्वरशक्ति से उपकार लेते हैं ॥११॥

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