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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 16
    सूक्त - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त

    मु॑मुचा॒ना ओष॑धयो॒ऽग्नेर्वै॑श्वान॒रादधि॑। भूमिं॑ सन्तन्व॒तीरि॑त॒ यासां॒ राजा॒ वन॒स्पतिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मु॒मु॒चा॒ना: । ओष॑धय: । अ॒ग्ने: । वै॒श्वा॒न॒रात् । अधि॑ । भूमि॑म् । स॒म्ऽत॒न्व॒ती: । इ॒त॒ । यासा॑म् । राजा॑ । वन॒स्पति॑: ॥७.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मुमुचाना ओषधयोऽग्नेर्वैश्वानरादधि। भूमिं सन्तन्वतीरित यासां राजा वनस्पतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मुमुचाना: । ओषधय: । अग्ने: । वैश्वानरात् । अधि । भूमिम् । सम्ऽतन्वती: । इत । यासाम् । राजा । वनस्पति: ॥७.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 16

    पदार्थ -
    (मुमचानाः) [रोग से] छुड़ानेवाली (ओषधयः) ओषधियाँ (वैश्वानरात्) सब नरों की हितकारक (अग्नेः) अग्नि [सर्वव्यापक परमेश्वर] का आश्रय लेकर (अधि) अधिकारपूर्वक (भूमिम्) भूमि को (सन्तन्वतीः) ढाँकती हुयी तुम (इत) चलो, (यासाम्) जिनका (राजा) राजा (वनस्पतिः) सेवनीय पदार्थों का स्वामी [सोम रस है] ॥१६॥

    भावार्थ - मनुष्य परमेश्वर के उत्पन्न किये पदार्थों से यथावत् उपयोग लेवें ॥१६॥

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