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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 18
    सूक्त - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त

    याश्चा॒हं वेद॑ वी॒रुधो॒ याश्च॒ पश्या॑मि॒ चक्षु॑षा। अज्ञा॑ता जानी॒मश्च॒ या यासु॑ वि॒द्म च॒ संभृ॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या: । च॒ । अ॒हम् । वेद॑ । वी॒रुध॑: । या: । च॒ । पश्या॑मि । चक्षु॑षा । अज्ञा॑ता: । जा॒नी॒म: । च॒ । या: । यासु॑ । वि॒द्म । च॒ । सम्ऽभृ॑तम् ॥७.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    याश्चाहं वेद वीरुधो याश्च पश्यामि चक्षुषा। अज्ञाता जानीमश्च या यासु विद्म च संभृतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या: । च । अहम् । वेद । वीरुध: । या: । च । पश्यामि । चक्षुषा । अज्ञाता: । जानीम: । च । या: । यासु । विद्म । च । सम्ऽभृतम् ॥७.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 18

    पदार्थ -
    (च) और (याः) जिन (वीरुधः) ओषधियों को (अहम्) मैं (वेद) जानता हूँ, (च) और (याः) जिनको (चक्षुषा) नेत्र से (पश्यामि) देखता हूँ। (च) और (याः) जिन (अज्ञाताः) अनजानी हुई [औषधियों को] (जानीमः) हम जानें (च) और (यासु) जिनमें (संभृतम्) पोषण सामर्थ्य (विद्म) हम जानें, [वे] (सर्वाः समग्राः) सबकी सब (ओषधीः) ओषधियाँ (मम वचसः) मेरे वचन का (बोधन्तु) बोध करें। (यथा) जिससे (इमम् पुरुषम्) इस पुरुष को (दुरितात्) कष्ट से (अधि) यथावत् (पारयामसि) हम पार लगावें ॥१८, १९॥

    भावार्थ - विद्वान् वैद्य शास्त्रोक्त ओषधियों का और अपनी आविष्कृत ओषधियों का प्रचार संसार में नीरोगता बढ़ने के लिये करें ॥१८, १९॥ मन्त्र १८, १९ युग्मक हैं। मन्त्र —१९ का उत्तर भाग मन्त्र सात में आ चुका है ॥

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