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  • यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 3
    ऋषिः - उशना ऋषिः देवता - अश्विनौ देवते छन्दः - विराड्ब्राह्मी बृहती स्वरः - मध्यमः
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    स्वैर्दक्षै॒र्दक्ष॑पिते॒ह सी॑द दे॒वाना॑सु॒म्ने बृ॑ह॒ते रणा॑य। पि॒तेवै॑धि सू॒नव॒ऽआ सु॒शेवा॑ स्वावे॒शा त॒न्वा संवि॑शस्वा॒श्विना॑ध्व॒र्यू सा॑दयतामि॒ह त्वा॑॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वैः। दक्षैः॑। दक्ष॑पि॒तेति॒ दक्ष॑ऽपिता। इ॒ह। सी॒द॒। दे॒वाना॑म्। सु॒म्ने। बृ॒ह॒ते। रणा॑य। पि॒तेवेति॑ पि॒ताऽइ॑व। ए॒धि॒। सू॒नवे॑। आ। सु॒शेवेति॑ सु॒ऽशेवा॑। स्वा॒वे॒शेति॑ सुऽआवे॒शा। तन्वा᳕। सम्। वि॒श॒स्व॒। अ॒श्विना॑। अ॒ध्व॒र्यूऽइत्य॑ध्व॒र्यू। सा॒द॒य॒ता॒म्। इ॒ह। त्वा॒ ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वैर्दक्षैर्दक्षपितेह सीद देवानाँ सुम्ने बृहते रणाय । पितेवैधि सूनवऽआ सुशेवा स्वावेशा तन्वा सँविशस्वाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्वैः। दक्षैः। दक्षपितेति दक्षऽपिता। इह। सीद। देवानाम्। सुम्ने। बृहते। रणाय। पितेवेति पिताऽइव। एधि। सूनवे। आ। सुशेवेति सुऽशेवा। स्वावेशेति सुऽआवेशा। तन्वा। सम्। विशस्व। अश्विना। अध्वर्यूऽइत्यध्वर्यू। सादयताम्। इह। त्वा॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 14; मन्त्र » 3
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    पदार्थ -
    १. (दक्षपिता) = [दक्षं वीर्यं पाति, वीर्यस्य पालयित्री - म०] अपने वीर्य-प्राणशक्ति की रक्षा करनेवाली तू (स्वैः दक्षैः) = [दक्षं वीर्यं बलम्] अपने बलों के साथ (इह) = इस गृहस्थ में (सीद) = स्थित हो, अर्थात् इस गृहस्थ में तू अपनी प्राणशक्ति की रक्षा का पूरा ध्यान करनेवाली बन। (देवानां सुम्ने) = तू सब देवों अर्थात् इन्द्रियों के सुख में स्थित हो। प्राणशक्ति की रक्षा से सब इन्द्रियों का सुख सम्भव क्यों न होगा ? इन सब इन्द्रियों में प्राणशक्ति ही तो कार्य करती है। ३. इस प्राणशक्ति की रक्षा से तू (बृहते रणाय) = महती रमणीयता के लिए हो । वीर्य की रक्षा होने पर तेरा सारा शरीर सुन्दर बना रहेगा। ४. (इव) = जैसे पिता (सूनवे) = पुत्र के लिए सुख देनेवाला होता है, उसी प्रकार तू सारे घर के लिए (आ) = समन्तात् (सुशेवा) = उत्तम कल्याण के लिए हो। तू सबको सुख देनेवाली हो। ५. (स्वावेशा) = [सु-आविश] सर्वथा उत्तमता से घर में प्रवेश करनेवाली तू (तन्वा) = शक्तियों के विस्तार के साथ [तन् विस्तारे] (संविशस्व) = सम्यक्तया स्थित हो, [ अवस्थानं कुरु-म० ] । ६. अश्विनौ स्वयं कार्यों में व्याप्त होनेवाले (अध्वर्यू) = यज्ञ का सञ्चालन करनेवाले माता-पिता (त्वा) = तुझे (इह) = इस गृहस्थ में (सादयताम्) = बिठाएँ। उनसे उत्तम संस्कारों को लेकर तू भी इस घर को उत्तम बनानेवाली हो ।

    भावार्थ - भावार्थ- पत्नी शक्ति की रक्षा करनेवाली हो, जिससे उसकी सब इन्द्रियाँ उत्तम हों और उसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग में रमणीयता हो । घर में सभी के सुख का वह ध्यान करें, उसकी प्रत्येक क्रिया उत्तम हो। वह अपनी शक्तियों का ह्रास न होने दे।

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