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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 10
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - भुरिगार्ष्युष्णिक् स्वरः - गान्धारः
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    विज्यं॒ धनुः॑ कप॒र्दिनो॒ विश॑ल्यो॒ बाण॑वाँ२ऽउ॒त। अने॑शन्नस्य॒ याऽइष॑वऽआ॒भुर॑स्य निषङ्ग॒धिः॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विज्य॒मिति॒ विऽज्य॑म्। धनुः॑। क॒प॒र्द्दिनः॑। विश॑ल्य॒ इति॒ विऽश॑ल्यः। बाण॑वा॒निति॒ बाण॑ऽवान्। उ॒त। अने॑शन्। अ॒स्य॒। याः। इष॑वः। आ॒भुः। अ॒स्य॒। नि॒ष॒ङ्ग॒धिरिति॑ निषङ्ग॒ऽधिः ॥१० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विज्यन्धनुः कपर्दिनो विशल्यो वाणवाँऽउत । अनेशन्नस्य याऽइषव आभुरस्य निषङ्गधिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विज्यमिति विऽज्यम्। धनुः। कपर्द्दिनः। विशल्य इति विऽशल्यः। बाणवानिति बाणऽवान्। उत। अनेशन्। अस्य। याः। इषवः। आभुः। अस्य। निषङ्गधिरिति निषङ्गऽधिः॥१०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 10
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    पदार्थ -
    १. शत्रुओं को दूर भगाकर (कपर्दिनः) = केन सुखेन परं पूर्ति ददाति 'प्रजाओं में सुख - विस्तार से तृप्ति देनेवाले, प्रजाओं में सुख को फैलानेवाले इस राजा का (धनुः) = धनुष, अब शत्रु-विजय के बाद (विज्यम्) = ज्यारहित हो जाता है। शत्रुओं को मारने के लिए गत मन्त्र में जिस धनुष पर ज्या को चढ़ाया था, वह धनुष अब विजय के बाद उतारी हुई ज्यावाला कर दिया गया है। २. (उत) और (बाणवान्) = वह धनुष जोकि अब तक उत्तम बाणोंवाला था, अब (विशल्यः) = शल्यों से रहित हो गया है। ३. (अस्य) = इसके (याः इषवः) = जो शत्रु - शातन करनेवाले शर थे, वे सब अब (अनेशन्) = [णश् अदर्शन] अदृष्ट हो गये हैं। उन्हें अस्त्रागार में सुरक्षित रख दिया गया है। ४. (अस्य) = इसका (निषङ्गधिः) = [निषज्यते इति निषङ्गः खड्गः तद्यस्मिन् धीयते] म्यान, जिसमें कि अब तक तलवार विद्यमान थी, वह अब (आभुः) = रिक्तखाली है। तलवार को भी ठीक-ठाक व तेज़ करने के लिए म्यान से निकाल कर अलग रख दिया गया है। ५. संक्षेप में, शत्रु को जीतकर यह राजा अब 'न्यस्तसर्वशस्त्र' हो गया है। अपनी प्रजा पर इसने अस्त्रों का प्रयोग थोड़े ही करना है।

    भावार्थ - भावार्थ - प्रजा में सुख-सञ्चार करनेवाले राजा का अस्त्रागार शत्रुओं के संहार के लिए है, प्रजा पर अत्याचार के लिए नहीं ।

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