यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 2
ऋषिः - परमेष्ठी वा कुत्स ऋषिः
देवता - रुद्रो देवता
छन्दः - स्वराडर्ष्यनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
0
या ते॑ रुद्र शि॒वा त॒नूरघो॒राऽपा॑पकाशिनी। तया॑ नस्त॒न्वा शन्त॑मया॒ गिरि॑शन्ता॒भि चा॑कशीहि॥२॥
स्वर सहित पद पाठया। ते॒। रु॒द्र॒। शि॒वा। त॒नूः। अघो॑रा। अपा॑पकाशि॒नीत्यपा॑पऽकाशिनी। तया॑। नः॒। त॒न्वा᳕। शन्त॑म॒येति॒ शम्ऽत॑मया। गिरि॑श॒न्तेति॒ गिरि॑ऽशन्त। अ॒भि। चा॒क॒शी॒हि॒ ॥२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
या ते रुद्र शिवा तनूरघोरापापकाशिनी । तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि ॥
स्वर रहित पद पाठ
या। ते। रुद्र। शिवा। तनूः। अघोरा। अपापकाशिनीत्यपापऽकाशिनी। तया। नः। तन्वा। शन्तमयेति शम्ऽतमया। गिरिशन्तेति गिरिऽशन्त। अभि। चाकशीहि॥२॥
विषय - गिरिशन्त
पदार्थ -
१. गत मन्त्र के ज्ञान का ही उल्लेख करते हुए कहते हैं कि हे रुद्र ज्ञान देकर दुःखों का द्रावण करनेवाले प्रभो ! (या) = जो (ते) = आपकी (तनूः) = सत्योपेदेशनीति [द०] = सत्योपदेश का मार्ग है वह [क] (शिवा) = अभ्युदय व निःश्रेयस के साधन से सचमुच हमारा कल्याण करनेवाला है। [ख] (अघोरा) = हमारे जीवनों को विषयशून्य व सौम्य बनानेवाला है। [ग] यह सत्योपदेशनीति (अपापकाशिनी) = अपापों को- सत्यधर्मों को ही प्रकाशित करनेवाली है। आपके वेदज्ञान में सत्यधर्म का ही उपदेश है। २. हे (गिरिशन्त) = [ यो गिरिणा सत्योपदेशेन शं सुखं तनोति - द० ] सत्योपदेश की वाणी से सुख व शान्ति का विस्तार करनेवाले प्रभो! [गिरि वाचि स्थितः शं तनोति - म० ] आप इस वाणी के द्वारा परिमित भोजन का उपदेश देते हुए [आज्यं तौलस्य प्राशान घी को तोलकर खाओ, नपा-तुला खाओ] हमें नीरोग व सुखी करते हैं तथा परिमित मधुर बोलने का उपदेश देते हुए [वाचं स्वदतु - स्वादवाली, मधुरवाणी ही बोलो] हमारे जीवनों को कलहों से ऊपर उठाकर शान्त करते हैं। आप (तया तन्वा) = उस सत्योपदेश नीति से जो (नः) = हमारे लिए (शन्तमया) = अधिक-से-अधिक शान्ति का विस्तार करनेवाली है, (अभिचाकशीहि) = हमें देखिए, हमारी रक्षा का ध्यान कीजिए [चाकशीतिः पश्यतिकर्मा - नि० ३।११ देखना = to look after ध्यान करना] ३. हे प्रभो ! आप (गिरिशन्त) = 'गिरीश' वेदवाणी में स्थित होनेवाले तथा 'अन्त' [अमति गच्छति जानाति] सर्वज्ञ हैं। आप सब सत्यविद्याओं की आश्रयभूत, अत्यन्त सुखकारिणी इस वेदवाणी से हमारा पालन कीजिए।
भावार्थ - भावार्थ-उस प्रभु का दिया हुआ ज्ञान 'शिव, अघोर व पुण्य का प्रकाशक' है और शन्तम=अधिक-से-अधिक शान्ति देनेवाला है। इस ज्ञान से ही प्रभु हमारा पालन करते हैं।
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal