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यजुर्वेद अध्याय - 16

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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 2
    ऋषिः - परमेष्ठी वा कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - स्वराडर्ष्यनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    530

    या ते॑ रुद्र शि॒वा त॒नूरघो॒राऽपा॑पकाशिनी। तया॑ नस्त॒न्वा शन्त॑मया॒ गिरि॑शन्ता॒भि चा॑कशीहि॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या। ते॒। रु॒द्र॒। शि॒वा। त॒नूः। अघो॑रा। अपा॑पकाशि॒नीत्यपा॑पऽकाशिनी। तया॑। नः॒। त॒न्वा᳕। शन्त॑म॒येति॒ शम्ऽत॑मया। गिरि॑श॒न्तेति॒ गिरि॑ऽशन्त। अ॒भि। चा॒क॒शी॒हि॒ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ते रुद्र शिवा तनूरघोरापापकाशिनी । तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    या। ते। रुद्र। शिवा। तनूः। अघोरा। अपापकाशिनीत्यपापऽकाशिनी। तया। नः। तन्वा। शन्तमयेति शम्ऽतमया। गिरिशन्तेति गिरिऽशन्त। अभि। चाकशीहि॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ शिक्षकशिष्यव्यवहारमाह॥

    अन्वयः

    हे गिरिशन्त रुद्र! या ते तवाघोराऽपापकाशिनी शिवा तनूरस्ति, तया शन्तमया तन्वा नस्त्वमभिचाकशीहि॥२॥

    पदार्थः

    (या) (ते) तव (रुद्र) दुष्टानां भयङ्कर श्रेष्ठानां सुखकर (शिवा) कल्याणकारिणी (तनूः) शरीरं विस्तृतोपदेशनीतिर्वा (अघोरा) अविद्यमानो घोर उपद्रवो यया सा (अपापकाशिनी) अपापान् सत्यधर्मान् काशितुं शीलमस्याः सा (तया) (नः) अस्मान् (तन्वा) विस्तृतया (शन्तमया) अतिशयेन सुखप्रापिकया (गिरिशन्त) यो गिरिणा मेघेन सत्योपदेशेन वा शं सुखं तनोति तत्सम्बुद्धौ। गिरिरिति मेघनामसु पठितम्॥ (निघं॰१।१०) (अभि) सर्वतः (चाकशीहि) भृशं कक्ष्व पुनः पुनः शाधि। अयं कशधातोर्यङ्लुगन्तः प्रयोगः। वा छन्दसि (अष्टा॰३। ४। ८८) इति पित्त्वादीट्॥२॥

    भावार्थः

    शिक्षकाः शिष्येभ्यः धर्म्यां नीतिं शिक्षित्वा निष्पापान् कल्याणाचरणान् सम्पादयन्तु॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब शिक्षक और शिष्य का व्यवहार अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (गिरिशन्त) मेघ वा सत्य उपदेश से सुख पहुँचाने वाले (रुद्र) दुष्टों को भय और श्रेष्ठों के लिये सुखकारी शिक्षक विद्वन्! (या) जो (ते) आप की (अघोरा) घोर उपद्रव से रहित (अपापकाशिनी) सत्य धर्मों को प्रकाशित करने हारी (शिवा) कल्याणकारिणी (तनूः) देह वा विस्तृत उपदेश रूप नीति है (तया) उस (शन्तमया) अत्यन्त सुख प्राप्त कराने वाली (तन्वा) देह वा विस्तृत उपदेश की नीति से (नः) हम लोगों को आप (अभि, चाकशीहि) सब ओर से शीघ्र शिक्षा कीजिये॥२॥

    भावार्थ

    शिक्षक लोग शिष्यों के लिये धर्मयुक्त नीति की शिक्षा दें और पापों से पृथक् करके कल्याणरूपी कर्मों के आचरण में नियुक्त करें॥२॥

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    विषय

    रुद्र की शिव तनु, शान्तिकारिणी राजव्यवस्था ।

    भावार्थ

    हे (रुद्र) शत्रुओं के रुलाने और सज्जनों को सुख देने हारे ! राजन् ! (या) जो (ते) तेरी ( शिवा ) कल्याणकारिणी ( अघोरा ) अघोर, उपदवरहित, शान्त, सौम्य रूप वाली ( अपापकाशिनी ) पाप से अतिरिक्त पुण्य का ही प्रकाश करने वाली ( तनूः ) विस्तृत कानूनादि की व्यवस्था या आज्ञा रूप वाणी है ( तया ) उस ( तन्वा ) ( शन्तमया ) अति अधिक कल्याण और शान्तिदायिनी वाणी, राज्यव्यवस्था से, हे ( गिरिशन्त ) आज्ञारूप, व्यावस्था या वाणी से ही सब को शान्ति देने वाले ! तू ( अभि चाकशीहि ) सब को देख सब पर दृष्टि रख या तू राज्य का शासन कर ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्वराड् अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    गिरिशन्त

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र के ज्ञान का ही उल्लेख करते हुए कहते हैं कि हे रुद्र ज्ञान देकर दुःखों का द्रावण करनेवाले प्रभो ! (या) = जो (ते) = आपकी (तनूः) = सत्योपेदेशनीति [द०] = सत्योपदेश का मार्ग है वह [क] (शिवा) = अभ्युदय व निःश्रेयस के साधन से सचमुच हमारा कल्याण करनेवाला है। [ख] (अघोरा) = हमारे जीवनों को विषयशून्य व सौम्य बनानेवाला है। [ग] यह सत्योपदेशनीति (अपापकाशिनी) = अपापों को- सत्यधर्मों को ही प्रकाशित करनेवाली है। आपके वेदज्ञान में सत्यधर्म का ही उपदेश है। २. हे (गिरिशन्त) = [ यो गिरिणा सत्योपदेशेन शं सुखं तनोति - द० ] सत्योपदेश की वाणी से सुख व शान्ति का विस्तार करनेवाले प्रभो! [गिरि वाचि स्थितः शं तनोति - म० ] आप इस वाणी के द्वारा परिमित भोजन का उपदेश देते हुए [आज्यं तौलस्य प्राशान घी को तोलकर खाओ, नपा-तुला खाओ] हमें नीरोग व सुखी करते हैं तथा परिमित मधुर बोलने का उपदेश देते हुए [वाचं स्वदतु - स्वादवाली, मधुरवाणी ही बोलो] हमारे जीवनों को कलहों से ऊपर उठाकर शान्त करते हैं। आप (तया तन्वा) = उस सत्योपदेश नीति से जो (नः) = हमारे लिए (शन्तमया) = अधिक-से-अधिक शान्ति का विस्तार करनेवाली है, (अभिचाकशीहि) = हमें देखिए, हमारी रक्षा का ध्यान कीजिए [चाकशीतिः पश्यतिकर्मा - नि० ३।११ देखना = to look after ध्यान करना] ३. हे प्रभो ! आप (गिरिशन्त) = 'गिरीश' वेदवाणी में स्थित होनेवाले तथा 'अन्त' [अमति गच्छति जानाति] सर्वज्ञ हैं। आप सब सत्यविद्याओं की आश्रयभूत, अत्यन्त सुखकारिणी इस वेदवाणी से हमारा पालन कीजिए।

    भावार्थ

    भावार्थ-उस प्रभु का दिया हुआ ज्ञान 'शिव, अघोर व पुण्य का प्रकाशक' है और शन्तम=अधिक-से-अधिक शान्ति देनेवाला है। इस ज्ञान से ही प्रभु हमारा पालन करते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    गुरुजनांनी शिष्यांना धर्मयुक्त नीतीचे शिक्षण द्यावे व पापांपासून दूर करून चांगले आचरण करण्यास उद्युक्त करावे.

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    विषय

    आता शिक्षक आणि शिष्याच्या आचरणाविषयी पुढील मंत्रात कथन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (जिज्ञासूजनांची विद्वानाप्रत विनंती) (गिरिशन्त) मेघाप्रमाणे सुखकारी वा सत्योपदेशाद्वारे मार्ग दाखविणार्‍या (रुड) दुष्टांना भयकारी आणि श्रेष्ठजनांना सुखकारी विद्वानाप्रत विनंती) (गिरिशन्त) मेघाप्रमाणे सुखकारी वा सत्योपदेशाद्वारे मार्ग दाखविणार्‍या (रुद्र) दुष्टांना भयकारी आणि श्रेष्ठजनांना सुखकारी विद्वान महोदय, (ते) आपली (या) जी (अघोरा) उपद्रवरहित वा हितकारी, तसेच (अपापकाशिनी) सत्यधर्म प्रकट करणारी आणि (शिवा) कल्याणकारिणी (तनू:) उपदेशात्मक वाणी आहे अथवा जे निर्मळ शरीर आहे (तया) त्या (शन्तमया) अत्यंत शांती देणार्‍या (तन्वा) शरीराद्वारे अथवा महान उपदेशात्मक नीतीद्वारे (न:) आम्हा (जिज्ञासू वा रक्षणार्थी जनांना) (अभिचाकशीही) सर्व प्रकारे शीघ्र उपकृत करा (अशी विनंती करीत आहोत) ॥2॥

    भावार्थ

    भावार्थ - शिक्षकांनी शिष्यांना नेहमी धर्ममय नीतीचा उपदेश द्यावा आणि त्यांना पापकर्मांपासून निवृत्त करून कल्याणकारी कर्म करण्याकडे प्रवृत्त करावे. ॥2॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned person, the comforter of people with thy noble teachings, the administrator of fear for the miscreants and happiness for the good, educate us again and again, with thy system of teaching, which is highly delightful, conducive to progress, expository of true principles, and free from violence.

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    Meaning

    Rudra, lord of justice, love and peace, lord sublime of the clouds and the mountains, commanding veneration and admiration, the manifestation of your presence is auspicious and blissful, free from fear and magnificent without a shade of sin and darkness. With that same gracious manifestation of your divinity, emanate the blessings of peace and mercy for us.

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    Translation

    O terrible Lord, with that one of your forms, which is auspicious, not dreadful, and is benign in appearance, О lover of mountains, with that most pleasing form, be kind enough to look at us. (1)

    Notes

    Tanuḥ,शरीरं , body; form. Sivä, auspicious. God has two forms, one terrific and the other benign and auspicious. Aghora,अविषम ,सौम्या , not terrific; benign; gentle. Apāpakāśini, which is pleasing to behold. पापं असुखं प्रकाशयति या सा पापकाशिनी; न पापकाशिनी अपापकाशिनी, that which brings unpleasantness on seeing is pāpakāśiní; opposite to that. Girisanta, गिरौ शेते, अमति गच्छति जानाति वा यः, one that sleeps, travels in and knows the mountains. Santamaya, अत्यन्तं सुखदायिन्या, with the most pleasing. Abhicāksihi, चाकशीति: पश्यतिकर्मा,to see; to look at. Look at us. Also, appear before us so that we may see.

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    बंगाली (2)

    विषय

    অথ শিক্ষকশিষ্যব্যবহারমাহ ॥
    এখন শিক্ষক ও শিষ্যের ব্যবহার পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (গিরিশন্ত) মেঘ বা সত্য উপদেশ দ্বারা সুখ উপস্থিতকারী (রুদ্র) দুষ্টদিগকে ভয় এবং শ্রেষ্ঠদিগের জন্য সুখকারী শিক্ষক বিদ্বান্! (য়া) যে (তে) আপনার (অঘোরা) ঘোর উপদ্রব রহিত (অপাপকাশিনী) সত্য ধর্ম্মের প্রকাশক (শিবা) কল্যাণকারিণী (তনুঃ) দেহ বা বিস্তৃত উপদেশ রূপ নীতি, (তয়া) সেই (শন্তময়া) অত্যন্ত সুখ প্রাপ্তকারিণী (তন্বা) দেহ বা বিস্তৃত উপদেশের নীতি দ্বারা (নঃ) আমাদিগকে আপনি (অভি, চাকশীহি) সব দিক দিয়া শীঘ্র শিক্ষা প্রদান করুন ॥ ২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–শিক্ষক গণ শিষ্যদিগের জন্য ধর্মযুক্ত নীতির শিক্ষা দিবেন এবং পাপ হইতে পৃথক করিয়া কল্যাণকারিণী কর্ম্মের আচরণে নিযুক্ত করিবেন ॥ ২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়া তে॑ রুদ্র শি॒বা ত॒নূরঘো॒রাऽপা॑পকাশিনী ।
    তয়া॑ নস্ত॒ন্বা᳕ শন্ত॑ময়া॒ গিরি॑শন্তা॒ভি চা॑কশীহি ॥ ২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়া ত ইত্যস্য পরমেষ্ঠী বা কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রো দেবতা । স্বরাডার্ষ্যনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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    পদার্থ

     

    যা তে রুদ্র শিবা তনুরঘোরাঽপাপকাশিনী।

    তয়া নস্তন্বা শন্তময়া গিরিশন্তাভি চাকশীহি।।৩৫।।

    (যজু ১৬।২)

    পদার্থঃ (রুদ্র) হে পরমেশ্বর! (যা) যে (তে) তোমার (তনুঃ) সত্য উপদেশ নীতির মার্গ দ্বারা (শিবা) আমাদের কল্যাণ, (অঘোরা) আমাদের জীবনকে বিষয়শূন্য এবং সৌম্য করো, (অপাপকাশিনী) অপাপকে অর্থাৎ সত্যধর্মকে প্রকাশিত করো; (গিরিশন্ত) সত্যোপদেশ বাণীর বিস্তারকারী পরমেশ্বর! (তয়া তন্বা) সেই সত্যোপদেশ নীতি দ্বারা (নঃ) আমাদের জন্য (শন্তময়া) অধিক শান্তির বিস্তার করে (অভিচাকশীহি) আমাদের দর্শন করাও, সত্যবিদ্যার আশ্রয়ভূত বেদবাণী দ্বারা আমাদের পালন করো।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ মঙ্গলময় পরমাত্মার সেই প্রদানকৃত জ্ঞান অধিক শান্তিদানকারী। পরমাত্মার নিকট আমাদের প্রার্থনা যে, হে জ্ঞানস্বরূপ! তুমি তোমার সত্যোপদেশ নীতিরূপ বেদবাণী দ্বারা আমাদের পালন করো।।৩৫।।

     

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