यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 17
ऋषिः - कुत्स ऋषिः
देवता - रुद्रो देवता
छन्दः - निचृदतिधृतिः
स्वरः - षड्जः
251
नमो॒ हिर॑ण्यबाहवे सेना॒न्ये दि॒शां च॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ वृ॒क्षेभ्यो॒ हरि॑केशेभ्यः पशू॒नां पत॑ये॒ नमो॒ नमः॑ श॒ष्पिञ्ज॑राय॒ त्विषी॑मते पथी॒नां पत॑ये॒ नमो॒ नमो॒ हरि॑केशायोपवी॒तिने॑ पु॒ष्टानां॒ पत॑ये॒ नमः॑॥१७॥
स्वर सहित पद पाठनमः॑। हिर॑ण्यबाहव॒ इति॒ हिर॑ण्यऽबाहवे। से॒ना॒न्य᳖ इति॑ सेना॒ऽन्ये᳖। दि॒शाम्। च॒। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। वृ॒क्षेभ्यः॑। हरि॑केशेभ्य॒ इति॒ हरि॑ऽकेशेभ्यः। प॒शू॒नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। श॒ष्पिञ्ज॑राय। त्विषी॑मते। त्विषी॑मत॒ इति॒ त्विषी॑ऽमते। प॒थी॒नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। हरि॑केशा॒येति॒ हरि॑ऽकेशाय। उ॒प॒वी॒तिन॒ इत्युप॑ऽवी॒तिने॑। पु॒ष्टाना॑म्। पत॑ये। नमः॑ ॥१७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नमो हिरण्यबाहवे सेनान्ये दिशाञ्च पतये नमो नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यः पशूनाम्पतये नमो नमः शष्पिञ्जराय त्विषीमते पथीनाम्पतये नमो नमो हरिकेशायोपवीतिने पुष्टानाम्पतये नमो नमो बभ्लुशाय ॥
स्वर रहित पद पाठ
नमः। हिरण्यबाहव इति हिरण्यऽबाहवे। सेनान्य इति सेनाऽन्ये। दिशाम्। च। पतये। नमः। नमः। वृक्षेभ्यः। हरिकेशेभ्य इति हरिऽकेशेभ्यः। पशूनाम्। पतये। नमः। नमः। शष्पिञ्जराय। त्विषीमते। त्विषीमत इति त्विषीऽमते। पथीनाम्। पतये। नमः। नमः। हरिकेशायेति हरिऽकेशाय। उपवीतिन इत्युपऽवीतिने। पुष्टानाम्। पतये। नमः॥१७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
राजप्रजाजनैः किं कर्त्तव्यमित्युपदिश्यते॥
अन्वयः
हे रुद्र सेनाधीश! हिरण्यबाहवे सेनान्ये तुभ्यं नमोऽस्तु, दिशां च पतये नमोऽस्तु, त्वं हरिकेशेभ्यो वृक्षेभ्यो नमो गृहाण, पशूनां पतये नमोऽस्तु, शष्पिञ्जराय त्विषीमते नमोऽस्तु, पथीनां पतये नमोऽस्तु, हरिकेशायोपवीतिने नमोऽस्तु, पुष्टानां पतये नमो भवतु॥१७॥
पदार्थः
(नमः) वज्रः (हिरण्यबाहवे) हिरण्यं ज्योतिरिव तीव्रतेजस्कौ बाहू यस्य तस्मै (सेनान्ये) यः सेनां नयति शिक्षां प्रापयति तस्मै (दिशाम्) सर्वासु दिक्षु स्थितानां राज्यप्रदेशानाम् (च) (पतये) पालकाय। अत्र षष्ठीयुक्तश्छन्दसि वा [अष्टा॰१.४.९] इति घिसंज्ञा। (नमः) अन्नादिकम् (नमः) वज्रादिशस्त्रसमूहः (वृक्षेभ्यः) आम्रादिभ्यः (हरिकेशेभ्यः) हरयो हरणशीलाः सूर्यरश्मयो येषु तेभ्यः (पशूनाम्) गवादीनाम् (पतये) रक्षकाय (नमः) सत्करणम् (नमः) (शष्पिञ्जराय) शडुत्प्लुतं पिञ्जरं बन्धनं येन तस्मै (त्विषीमते) बह्व्यस्त्विषयो न्यायदीप्तयो विद्यन्ते यस्य तस्मै। शरादीनां च [अष्टा॰६.३.१२०] इति दीर्घः। (पथीनाम्) मार्गे गन्तॄ᳖णाम् (पतये) पालकाय (नमः) सत्करणमन्नं च (नमः) अन्नादिकम् (हरिकेशाय) हरिता केशा यस्य तस्मै (उपवीतिने) प्रशस्तमुपवीतं यज्ञोपवीतं विद्यते यस्य तस्मै (पुष्टानाम्) अरोगाणाम् (पतये) रक्षकाय (नमः) सत्कारः॥१७॥
भावार्थः
मनुष्यैः श्रेष्ठानां सत्कारेण बुभुक्षितानामन्नदानेन चक्रवर्तिराज्यशासनेन पशूनां पालनेन गन्तुकानां दस्युचोरादिभ्यो रक्षणेन यज्ञोपवीतधारणेन पुष्ट्या च सहानन्दितव्यम्॥१७॥
हिन्दी (3)
विषय
राज-प्रजा के पुरुषों को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे शत्रुताड़क सेनाधीश! (हिरण्यबाहवे) ज्योति के समान तीव्र तेजयुक्त भुजा वाले (सेनान्ये) सेना के शिक्षक तेरे लिये (नमः) वज्र प्राप्त हो (च) और (दिशाम्) सर्व दिशाओं के राज्य भागों के (पतये) रक्षक तेरे लिये (नमः) अन्नादि पदार्थ मिले (हरिकेशेभ्यः) जिन में हरणशील सूर्य की किरण प्राप्त हों ऐसे (वृक्षेभ्यः) आम्रादि वृक्षों को काटने के लिये (नमः) वज्रादि शस्त्रों को ग्रहण कर (पशूनाम्) गौ आदि पशुओं के (पतये) रक्षक तेरे लिये (नमः) सत्कार प्राप्त हो (शष्पिञ्जराय) विषयादि के बन्धनों से पृथक् (त्विषीमते) बहुत न्याय के प्रकाशों से युक्त तेरे लिये (नमः) नमस्कार और अन्न हो (पथीनाम्) मार्ग में चलने हारों के (पतये) रक्षक तेरे लिये (नमः) आदर प्राप्त हो (हरिकेशाय) हरे केशों वाले (उपवीतिने) सुन्दर यज्ञोपवीत से युक्त तेरे लिये (नमः) अन्नादि पदार्थ प्राप्त हों और (पुष्टानाम्) नीरोगी पुरुषों की (पतये) रक्षा करने हारे के लिये (नमः) नमस्कार प्राप्त हो॥१७॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि श्रेष्ठों के सत्कार, भूख से पीडि़तों को अन्न देने, चक्रवर्ति राज्य की शिक्षा, पशुओं की रक्षा, जाने-आने वालों को डाकू और चोर आदि से बचाने, यज्ञोपवीत के धारण करने और शरीरादि की पुष्टि के साथ प्रसन्न रहें॥१७॥
विषय
नाना रुद्र की नियुक्ति । उनका मानपद, अधिकार एवं नियन्त्रण ।
भावार्थ
१. ( हिरण्यबाहवे सेनान्ये नमः ) बाहु पर सुवर्णरेखा या विशेष आभूषण या नाम या संख्या चिन्ह को धारण करने वाला अथवा ज्योति या सूर्य के समान प्रखर वीर्यवान् बाहुओं या सेनारूप तेजस्वी बाहुओं वाले, सेना नायक को बज्र का बल प्राप्त हो । २. (दिशां च पतये नमः) दिशाओं के पालक को अन्न आदि प्राप्त हो । ३. (हरिकेशेभ्यः) पीले या नीले पत्तों के समान पीले या नीले या मनोहरी केशों को धारण करने वाले (वृक्षेभ्यः) वृक्षों के समान सब के आश्रय दाता पुरुषों को (नमः) नमस्कार है । अथवा ( हरिकेशेभ्यः ) केशों को हरण करने वाले ( वृक्षेभ्यः ) शत्रुओं को ब्रश्चन करने वाले रुद्ररूप वीर पुरुषों को (नमः) अन्न बल प्राप्त हो । अथवा हरे पत्तोंवाले वृक्षों को (नमः) परशु से काटो । ४. ( पशूनां पतये नमः) पशुओं के पालक को (नमः) अन्न और बल पदाधिकार प्राप्त हो । ५. ( शय्पिञ्जराय ) सूखे घास के समान पति कान्तिमान् वर्ण वाले ( त्विषीमते) दीप्ति से युवक तेजस्वी पुरुष को अथवा 'शष्पि' = घास आदि को 'जर' =जलाने वाले, अग्नि वालों को, अथवा (शष्पिन्जराय नमः) छहों, आंख, नाक, रसना, कान, त्वचा और मन से ग्रहण योग्य विषय बन्धन को त्यागने हारे, (विषीमते ) कान्तिमान् को ( नमः ) अन्न आदि बल और आदर प्राप्त हो । ( पथीनाम् ) मार्गों के और मार्गगामी यात्रियों के ( पतये ) पालक मार्गाध्यक्ष को भी ( नमः ) राष्ट्र के अन्न में भाग एवं पदाधिकार, या बल प्राप्त हो । ( हरिकेशाय ) हरित अर्थात् नील केशनाले अति युवक ( उपवीतेन ) यज्ञोपवीत के धारण करने वाले बालब्रह्मचारी को नम / अन्न भाग और आदर, वीर्य सब प्राप्त हो । ( पुष्टानां पतये ) हृष्ट पुष्ट बालकों के पालक माता पिता को अधिकार एवं अन्नादि पदार्थ और आदर प्राप्त हो । अथवा – सेनानी, दिशाम्पति, वृक्षपति, पशुपति, शष्पिजरपति, पथी- केशपति, उपवीतपति, ये राष्ट्र के भिन्न २ विभागों के अधिकारी हैपरधव, हिरण्यबाहु, हरिकेश, त्विषीमान्, आदि ये मानवाचक पद हैं। उनका( नमः ) राष्ट्र के अन्न के भाग प्राप्त हों । अथवा - १. सुवर्ण आदि धन के बलपर शासन करने वाला, पुरुष 'हिरण्यबाहु' । २. सेना का नायक 'सेनानी' । ३. दिशाओं का पालक दिक्पाल, 'दिशाम्पाल' । ४. वृक्षों के समान शरण प्रद बड़े धनाढ्य लोग, सब शरण योग्य 'वृत्त' नामक अधिकारी । ५. केशों के हरण करने वाले स्वयंसेवक, लोग 'हरिकेश' । ६. पशुओं के पालक 'पशुपति' । ७. शष्प अथवा घास का चरने का प्रबन्ध कर्त्ता 'शपिञ्जर' । नगर में प्रकाश का प्रबन्धकर्त्ता 'त्विषीमान्' । ८. मार्गों का स्वामी 'पथीनांपति' । १. क्रेशों का हत्ती वैध 'हरिकेश' । १० यज्ञोपवीत धारण करने कराने वाले गुरुशिष्य 'उपवीति' । ११. पुष्ट पशुओं का पालक 'पुष्टपति' ये सब भिन्न २ नाम के रुद्र 'जातसंज्ञ' अर्थात् नाम पदधारी रुद्र कहाते हैं उनके ( नमः ) राष्ट्र में भाग अधिकार प्राप्त हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
( १७-४६ ) त्र्यशीती रुद्रा देवताः । निचृदतिधृतिः । षड्जः ।
विषय
नमः = आदर
पदार्थ
१. राष्ट्र में सबसे पहले हम (हिरण्यबाहवे) = हितरमणीय प्रयत्नवाले [हिरण्य-हितरमणीय, बाह्र प्रयत्ने] अथवा भुजाओं में शक्ति को धारण करनेवाले [द०] अथवा [हिरण्यालंकारभूषितबाहवे] स्वर्णाभूषण से अलंकृत भुजावाले (सेनान्ये) = सेनापति के लिए (नमः) = आदर देते हैं। उस सेनापति के लिए जो (दिशां च पतये) = राष्ट्र की सब दिशाओं में रक्षा करनेवाला है, हम (नमः) = नमन करते हैं। एवं, सेनापति का कार्य राष्ट्र-रक्षा करने के लिए सदा हित- रमणीय प्रयत्नों में प्रवृत्त रहना है। २. उन (वृक्षेभ्यः) = वृक्षों के लिए जो (हरिकेशेभ्यः) = हरित वर्ण के पत्र- केशोंवाले हैं, अथवा जिनमें हरणशील सूर्य किरणें प्राप्त हैं, [द०] (नमः) = हम आदर करते हैं, इस बात का हम पूर्ण ध्यान करते हैं कि राष्ट्र में वृक्षों की कमी न हो जाए। इन वृक्षों के साथ (पशूनां पतये नमः) = राष्ट्र के उस अधिकारी का भी हम आदर करते हैं जो पशुओं का रक्षण करता है, जो राष्ट्र में गवादि उत्तम पशुओं की कमी नहीं होने देता। सेनापति ने देश की सब दिशाओं से रक्षा करनी है तो वनाध्यक्ष ने वृक्षों का रक्षण करना है और पशुओं के अध्यक्ष ने राष्ट्र की पशु- सम्पत्ति को नष्ट नहीं होने देना। ३. हम (शष्पिञ्जराय) = [शडुत्प्लुतं पिञ्जरं बन्धनं येन - द०] विषयादि के बन्धनों से पृथक् (त्विषीमते) = [ बह्व्यस्त्विषयो न्यायदीप्तयो विद्यन्ते यस्य - द०] न्याय के प्रकाशों से युक्त राष्ट्र के न्यायाधीश के लिए (नमः) = नतमस्तक होते हैं। उस न्यायाधीश के लिए जो (पथीनां पतये) = न्याय के द्वारा मार्गों का रक्षक है हम (नमः) = नतमस्तक होते हैं। जिस भी राष्ट्र में दण्ड का प्रणयन न्यायपूर्वक होता है, उस राष्ट्र में ही प्रजा धर्म के मार्ग पर चलती है। 'दण्डं धर्मं विदुर्बुधाः 'न्याय-प्रणीत दण्ड को ही विद्वान् लोग धर्म का रक्षक जानते हैं । ४. अन्त में नमः = उसका हम आदर करते हैं जो हरिकेशाय प्रजाओं के दुःखहरण से 'हरि' है, सुखप्रापण से 'क' और न्यायशासन करने से 'ईश' है। (उपवीतिने) = प्रशस्त यज्ञोपवीतवाले के लिए, अर्थात् जिसने उपवीत के तीन तारों को धारण करते हुए तीन व्रत लिये हैं कि [क] शरीर को वज्रतुल्य बनाऊँगा । [ख] मन की वासनाओं को छेदने के लिए 'परशु' बनूँगा। [ग] मेरा जीवन अविच्छिन्न ज्ञान का होगा [अश्मा भव, परशुर्भव, हिरण्यमस्तृतं भव]। उसके लिए (नमः) = हम नतमस्तक होते हैं जो (पुष्टानां पतये)[पुष् + क्त भावे ] = सब पोषणों का पति है। शारीरिक, मानस व बौद्ध पोषण करनेवाला है, इस आदर्श राष्ट्रपुरुष, के लिए भी हम आदर देते हैं । ५. सेनापति, वनाध्यक्ष, पश्वाध्यक्ष, न्यायाधीश व मुख्य राष्ट्रपुरुष, अर्थात् राजा ये सब 'कुत्स' हैं, ये सब राष्ट्र की खराबियों को दूर करनेवाले हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम राष्ट्र के मन्त्र-वर्णित अधिकारियों के उचित आदर से राष्ट्रोन्नति में सहायक हों।
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी श्रेष्ठांचा सत्कार करावा व भुकेने व्याकूळ झालेल्यांना अन्न द्यावे. चक्रवर्ती राज्याचे व पशूंचे रक्षण करावे. चोर व डाकू यांच्यापासून वाटसरूंना अभय द्यावे. यज्ञोपवीत धारण करून शरीराची पुष्टी करावी व प्रसन्न राहावे.
विषय
राजपुरुषांनी आणि प्रजाजनानी काय केले पाहिजे, पुढील मंत्रात याविषयी कथन केले आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे शत्रुताइक सेवाधीश (हिरण्यवाहवे) ज्योतीप्रमाणे तीन तेजाने तळपणार्या बाहू असलेल्या (सेनान्ये) सैन्याला प्रशिक्षण देणार्या आपणाला (नम:) वज्र अस्त्र प्राप्त होवो. (च) आणि (दिशाम्) राज्याच्या सर्व दिशांमध्ये असलेल्या प्रदेशांचे (पतये) रक्षण करणार्या तुम्हाला (नम:) अन्नादी पदार्थ मिळो (हरिकेशभ्य:) ज्यामधे सूर्याच्या हरणशील किरणें व्याप्त आहेत (अथवा हिरवेपण गेलेल्या, वाळलेल्या पानांनी भरलेल्या) (वृक्षेभ्य:) आम्र आदी वृक्ष तोडण्यासाठी तुम्हाला (नम:) वज्र आदी शास्त्र प्राप्त व्हावेत (पशूनाम्) गौ आदी पशूंचे (पतये) रक्षण करणार्या तुमचा (नम:) आम्ही सत्कार करतो. (शष्पिञ्जराय) विषयांपासून अलिप्त असणार्या आणि (त्विषीमते) न्यायाच्या प्रकाशाने युतिमान असलेल्या आपणांस आम्ही (नम:) नमस्कार करतो (वा आपणास अन्न-धान्यादी मिळो, अशी कामना व्यस्त करतो) (पधीनाम्) पथिजनांचे (पतये) रक्षण करणार्या आपला (नम:) आम्ही आदर-सत्कार करतो. (हरिकेशाय) हिरवे (दाट काळे) केश असलेल्या आणि (उपवीतिने) सुंदर यज्ञोवतीत धारण करणार्या तुम्हाला (नम:) अनादी पदार्थ प्राप्त व्हावेत तसेच (पुष्टानाम्) नीरोग पुरुषांची (पतये) रक्षा करणार्या तुम्हाला (नम:) आमचे नमस्कार असोत. ॥17॥
भावार्थ
भावार्थ - सर्व मनुष्यांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी श्रेष्ठजनांचा नेहमी सत्कार करावा, भुकेल्यांना भोजन द्यावे, चक्रवर्ती राज्याच्या रक्षणासाठी यत्न करावेत, पशूंचे रक्षण करावे. पथिक, यात्रेकरूंचे चोर-लुटारू टोळ्यांपासून रक्षण करावे, यज्ञोपनीत धारण करावे तसेच शरीर पुष्ट आणि नीरोग राहण्यासाठी यत्न करून सदा प्रसन्न राहावे. ॥17॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O commander of the army, may thou with strong sparkling arms, and leader of hosts, get arms. May thou lord of the regions get food. Take thou in hand the axe to cut the mango trees exposed to the rays of the sun. Homage to thee, the protector of cattle like cows. Homage to thee free from the bondage of passions, full of the light of justice. Homage to thee the guardian of the way-farers. Food to thee, the golden-haired wearer of the yajnopavit (sacrificial cord). Homage to thee the protector of the healthy.
Meaning
Salutations to Rudra, warrior of the golden arms of steel. Salutations to the lord protector of the nation in all directions. Love and care for the trees of green foliage. All hail to the lord protector and promoter of animals. All reverence and faith for the light of justice and controller of wild passion. Salutations to the protector of travellers, and promoter of the highways. Love and reverence for the golden-haired wearer of the sacred thread initiated in learning. Salutations to the protector and promoter of the young and strong rising generation.
Translation
Our homage be to the army's commander, whose arms are decorated with gold. (1) And to the lord of the regions our homage be. (2) Our homage be to the trees having green hair. (3) To the lord of animals our homage be. (4) Our homage be to him, whose skin is yellow like straw. (5) To the lustrous lord of the highways our homage be. (6 Our homage be to the golden-haired, wearing the sacred thread. (7) To the lord of the strong and stout our homage be. (8)
Notes
Hiranyabāhave, हिरण्यालंकारभूषितवाहवे, to one, whose arms are decorated with gold. Senānye, सेनां नयतीति सेनानीः तस्मै, to the commander of the army. Disām pataye, lord or protector of the regions. Harikeśebhyah, हरितवर्णाः केशाः पर्णरूपा येषां, तेभ्यः, those which have green hair in the form of leaves. skin is yellowish red like straw. to Saspinjarāya, शष्पवत् पिञ्जराय पीतवर्णाय, to him whose Tvişimate,दीप्तिमते , to the radiant one. Pathinam,मार्गाणां , of the highways or roads. Harikeśaya, लोहितकेशाय, to the blond; to one having golden, or reddish hair. Also, having dark black hair, i. e. a young person. Puṣṭānām, गुणपूर्णानां नराणां, of strong and stout persons; of the meritorious men.
बंगाली (1)
विषय
রাজপ্রজাজনৈঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যুপদিশ্যতে ॥
রাজা প্রজার পুরুষদিগকে কী করা উচিত, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–হে শত্রুনাশক সেনাধীশ! (হিরণ্যবাহবে) জ্যোতি সমান তীব্র তেজযুক্ত ভুজা যুক্ত (সেনান্যে) সেনার শিক্ষক তোমার জন্য (নমঃ) বজ্র প্রাপ্ত হউক (চ) এবং (দিশাম্) সর্ব দিকের রাজ্য ভাগের (পতয়ে) রক্ষক তোমার জন্য (নমঃ) অন্নাদি পদার্থ প্রাপ্ত হউক (হরিকেশেভ্যঃ) যাহাতে হরণশীল সূর্য্যের কিরণ প্রাপ্ত হয় এমন (বৃক্ষেভ্যঃ) আম্রাদি বৃক্ষগুলিকে কাটিবার জন্য (নমঃ) বজ্রাদি শস্ত্রকে গ্রহণ কর (পশূনাম্) গাভি আদি পশুদিগের (পতয়ে) রক্ষক তোমার জন্য (নমঃ) সৎকার প্রাপ্ত হউক, (শষ্পিঞ্জরায়) বিষয়াদির বন্ধন হইতে পৃথক (ত্বিষীমতে) বহু ন্যায়ের প্রকাশ দ্বারা যুক্ত তোমার জন্য (নমঃ) নমস্কার এবং অন্ন হউক, (পথীনাম্) পথগুলিতে গমনশীলের (পতয়ে) রক্ষক তোমার জন্য (নমঃ) আদর প্রাপ্ত হউক, (হরিকেশায়) সবুজ কেশ যুক্ত (উপবীতিনে) সুন্দর যজ্ঞোপবীত যুক্ত তোমার জন্য (নমঃ) অন্নাদি পদার্থ প্রাপ্ত হউক এবং (পুষ্টানাম্) নীরোগ পুরুষদিগের (পতয়ে) রক্ষাকারীর জন্য (নমঃ) নমস্কার প্রাপ্ত হউক ॥ ১৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, শ্রেষ্ঠদিগের সৎকার, ক্ষুধায় পীড়িতকে অন্ন দেওয়া, চক্রবর্ত্তী রাজ্যের শিক্ষা, পশুদিগের রক্ষা, যাতায়াতকারীদের ডাকাইত এবং চোরাদি হইতে বাঁচাইবার, যজ্ঞোপবীত ধারণ করিবার এবং শরীরাদি পুষ্টি সহ প্রসন্ন থাকিবে ॥ ১৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
নমো॒ হির॑ণ্যবাহবে সেনা॒ন্যে᳖ দি॒শাং চ॒ পত॑য়ে॒ নমো॒ নমো॑ বৃ॒ক্ষেভ্যো॒ হরি॑কেশেভ্যঃ পশূ॒নাং পত॑য়ে॒ নমো॒ নমঃ॑ শ॒ষ্পিঞ্জ॑রায়॒ ত্বিষী॑মতে পথী॒নাং পত॑য়ে॒ নমো॒ নমো॒ হরি॑কেশায়োপবী॒তিনে॑ পু॒ষ্টানাং॒ পত॑য়ে॒ নমঃ॑ ॥ ১৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
নমো হিরণ্যবাহব ইত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রো দেবতা । নিচৃদতিধৃতিশ্ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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