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यजुर्वेद अध्याय - 16

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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 11
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    162

    या ते॑ हे॒तिर्मी॑ढुष्टम॒ हस्ते॑ ब॒भूव॑ ते॒ धनुः॑। तया॒स्मान् वि॒श्वत॒स्त्वम॑य॒क्ष्मया॒ परि॑ भुज॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या। ते॒। हे॒तिः। मी॒ढु॒ष्ट॒म॒। मी॒ढु॒स्त॒मेति॑ मीढुःऽतम। हस्ते॑। ब॒भूव॑। ते॒। धनुः॑। तया॑। अ॒स्मान्। वि॒श्वतः॑। त्वम्। अ॒य॒क्ष्मया॑। परि॑। भु॒ज॒ ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ते हेतिर्मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनुः । तयास्मान्विश्वतस्त्वमयक्ष्मया परि भुज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    या। ते। हेतिः। मीढुष्टम। मीढुस्तमेति मीढुःऽतम। हस्ते। बभूव। ते। धनुः। तया। अस्मान्। विश्वतः। त्वम्। अयक्ष्मया। परि। भुज॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 11
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    सेनाधीशादयः कैः कथमुपदेश्या इत्युच्यते॥

    अन्वयः

    हे मीढुष्टम सेनापते! या ते सेनाऽस्ति। यच्च ते हस्ते धनुर्हेतिश्च बभूव। तयाऽयक्ष्मया सेनया तेन चास्मान् प्रजासेनाजनान् त्वं विश्वतः परि भुज॥११॥

    पदार्थः

    (या) सेना (ते) तव (हेतिः) वज्रः। हेतिरिति वज्रनामसु पठितम्॥ (निघं॰२।२०) (मीढुष्टम) अतिशयेन वीर्यस्य सेचक सेनापते! (हस्ते) (बभूव) भवेत् (ते) (धनुः) (तया) (अस्मान्) (विश्वतः) सर्वतः (त्वम्) (अयक्ष्मया) पराजयादिपीडानिवारिकया (परि) समन्तात् (भुज) पालय॥११॥

    भावार्थः

    विद्यावयोवृद्धैरुपदेशकैर्विद्वद्भिः सेनापत्यादय एवमुपदेष्टव्या भवन्तो यावद् बलं तावता सर्वे श्रेष्ठा सर्वथा रक्षणीया दुष्टाश्च ताडनीया इति॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    सेनापति आदि किन से कैसे उपदेश करने योग्य हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (मीढुष्टम) अत्यन्त वीर्य के सेचक सेनापते! (या) जो (ते) तेरी सेना है और जो (ते) तेरे (हस्ते) हाथ में (धनुः) धनुष् तथा (हेतिः) वज्र (बभूव) हो (तया) उस (अयक्ष्मया) पराजय आदि की पीड़ा निवृत्त करने हारी सेना से और उस धनुष् आदि से (अस्मान्) हम प्रजा और सेना के पुरुषों की (त्वम्) तू (विश्वतः) सब ओर से (परि) अच्छे प्रकार (भुज) पालना कर॥११॥

    भावार्थ

    विद्या और अवस्था में वृद्ध उपदेशक विद्वानों को चाहिये कि सेनापति आदि को ऐसा उपदेश करें कि आप लोगों के अधिकार में जितना सेना आदि बल है, उससे सब श्रेष्ठों की सब प्रकार रक्षा किया करें और दुष्टों को ताड़ना दिया करें॥११॥

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    विषय

    शस्त्रों से रक्षा की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे ( मीदुस्तम ) अति अधिक वीर्यशालिन् नरर्षभ ! या शत्रुओं पर मेघ के समान शरवर्षक ! ( या ते ) जो तेरे ( हस्ते ) हाथ में ( हेति : ) वज्र और ( ते धनुः बभूव) और तेरी हाथ में धनुष है । (तया) उस ( अयक्ष्मा ) रोगादि रहित, विशुद्ध बाण से ( त्वम् ) तू ( विश्वतः ) सब प्रकार से ( अस्मान् ) हमें ( परि भुज ) सब तरफ से रक्षा कर । सेना के शस्त्रों और शास्त्रों में रोगकारी, विष आदि का प्रयोग नहीं होना चाहिये ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृदनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

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    पदार्थ

    १. शत्रुओं के नाश व प्रजाओं के कल्याण के द्वारा यह राजा प्रजा पर सुखों की वर्षा करनेवाला है। हे (मीढुष्टम) = अधिक-से-अधिक सुखों के वर्षक राजन् ! (या) = जो (ते) = तेरा (हेतिः) = शत्रुओं का संहार करनेवाला वज्र [नि० २।२०] है और (ते हस्ते) = तेरे हाथ में जो (धनुः बभूव) = धनुष है। २. (तया) = उस (अयक्ष्मया) = [नास्ति यक्ष्मा यस्य] सब रोगों-उपद्रवों को करनेवाले अस्त्र से (अस्मान्) = हमें (विश्वतः) = सब ओर से (त्वं परिभुज) = आप परिपालित दूर कीजिए । ३. राजा प्रान्तभागों पर इस प्रकार सशस्त्र सैन्य को सन्नद्ध रखता है कि राष्ट्र में किसी प्रकार का शत्रुजनित प्रकोप न हो, शान्त- बीमारियों से रहित राज्य में ही प्रजा उन्नत हो पाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- 'मीदुष्टम' वह राजा है जो हाथ में धनुष लिये हुए चारों ओर से होनेवाले आक्रमणों से राष्ट्र को सुरक्षित रखता [करता] है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    वयोवृद्ध व विद्यायुक्त उपदेशकांनी सेनापतींना असा उपदेश करावा की तुमच्या सैन्यशक्तीने श्रेष्ठ माणसांचे रक्षण करावे व दुष्टांना मारावे.

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    विषय

    सेनापती आदी सैन्याधिकार्‍यांना कोणी काय काय उपदेश करावा, पुढील मंत्रात याविषयी कथन केले आहे-

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (मीदुष्टम्) अत्यंत वीर्यवान बलशाली सेनापती, ही (या) जी (ते) तुमची सेना आहे, (ती शस्त्राने समृद्ध असावी) (ते) तुमच्या (हस्ते) हातात (धनु:) धनुष्य आणि (हेति:) वज्र (बभूल) असावे. आणि (तया) त्या (अयक्ष्मया) पराजयरुप रोगाला दूर ठेवणार्‍या सैन्याने आणि धनुष्य आदी शस्त्रांनी (अस्मान्) आम्हा प्रजाजनांचे व सैनिकांचे (त्वम्) तुम्ही (विश्वत:) सर्व बाजूंनी (परि) चांगल्याप्रकारे (भुज) रक्षण आणि पालन करा ॥11॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे विद्या आणि वय या दृष्टीने अनुभव संपन्न उपदेशक विद्वान असतात, त्यांचे कर्तव्य आहे की त्यानी सेनापती आदी अधिकार्‍यांना उपदेश करावा. त्यांना सांगावे की तुमच्या अधिकारात जेवढी सैन्यशक्ती आहे, त्याद्वारे राज्यातील सर्व सज्जनांचे सर्वदृष्ट्या रक्षण करावे आणि दुष्टांना दंडित करावे. ॥11॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O virile commander, protect us well on all sides with thy army, the remover of the pain of defeat, with thy weapon, and the bow in thy hand.

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    Meaning

    Lord of the richest showers of health and joy, the thunderbolt that is in your hand and the mighty bow, with these weapons of defence against suffering, protect us all round and promote our health and prosperity.

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    Translation

    O terrible punisher, your bow in your hand is thé most praiseworthy weapon. With that protect us from all sides, so that it causes no harm to us. (1)

    Notes

    Hetiḥ,आयुध , weapon. Midhustama, सेक्तृतम ,युवतम , O most bountiful or virile. Or, praise-worthy. Pari bhuja, परिपालय, protect. Ayaksmayā, रोगरहितया, अनुपद्रवकारिण्या, with that which does not cause any disease or harm to us.

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    बंगाली (1)

    विषय

    সেনাধীশাদয়ঃ কৈঃ কথমুপদেশ্যা ইত্যুচ্যতে ॥
    সেনাপতি আদি কাহাদের নিকট কেমন উপদেশ কামনা করিবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (মীঢুষ্টম্) অত্যন্ত বীর্যসেচক সেনাপতে! (য়া) যাহা (তে) তোমার সেনা এবং যাহা (তে) তোমার (হস্তে) হস্তে (ধনুঃ) ধনুক তথা (হেতিঃ) বজ্র (বভূব) হউক (তথা) সেই (অয়ক্ষ্ময়া) পরাজয়াদির পীড়া নিবৃত্তকারী সেনা দ্বারা এবং সেই ধনুক আদি দ্বারা (অস্মান্) আমরা প্রজা ও সেনার পুরুষদিগের (ত্বম্) তুমি (বিশ্বতঃ) সব দিক্ দিয়া (পরি) উত্তম প্রকার (ভুজ) পালন কর ॥ ১১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–বিদ্যা ও আয়ুতে বৃদ্ধ উপদেশক বিদ্বান্দিগের উচিত যে, সেনাপতি আদিকে এমন উপদেশ করিবেন যে, আপনাদের অধিকারে যত সেনাবল আছে তাহা দ্বারা সকল শ্রেষ্ঠদিগের সর্ব প্রকার রক্ষা করিবেন এবং দুষ্টদিগকে তাড়না দিবেন ॥ ১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়া তে॑ হে॒তির্মী॑ঢুষ্টম॒ হস্তে॑ ব॒ভূব॑ তে॒ ধনুঃ॑ ।
    তয়া॒স্মান্ বি॒শ্বত॒স্ত্বম॑য়॒ক্ষ্ময়া॒ পরি॑ ভুজ ॥ ১১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়া ত ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । রুদ্রো দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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