यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 49
ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः
देवता - रुद्रा देवताः
छन्दः - आर्ष्युष्णिक्
स्वरः - गान्धारः
178
या ते॑ रुद्र शि॒वा त॒नूः शि॒वा वि॒श्वाहा॑ भेष॒जी। शि॒वा रु॒तस्य॑ भेष॒जी तया॑ नो मृड जी॒वसे॑॥४९॥
स्वर सहित पद पाठया। ते॒। रु॒द्र॒। शि॒वा। त॒नूः। शि॒वा। वि॒श्वाहा॑। भे॒ष॒जी। शि॒वा। रु॒तस्य॑। भे॒ष॒जी। तया॑। नः॒। मृ॒ड। जी॒वसे॑ ॥४९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
या ते रुद्र शिवा तनूः शिवा विश्वाहा भेषजी । शिवा रुतस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे ॥
स्वर रहित पद पाठ
या। ते। रुद्र। शिवा। तनूः। शिवा। विश्वाहा। भेषजी। शिवा। रुतस्य। भेषजी। तया। नः। मृड। जीवसे॥४९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे रुद्र! त्वं या ते शिवा तनूः शिवा भेषजी रुतस्य शिवा भेषज्यस्ति तया जीवसे विश्वाहा नो मृड॥४९॥
पदार्थः
(या) (ते) तव (रुद्र) राजवैद्य (शिवा) कल्याणकारिणी (तनूः) शरीरं विस्तृता नीतिर्वा (शिवा) प्रियदर्शना (विश्वाहा) सर्वाणि दिनानि (भेषजी) औषधानीव रोगनिवारिका (शिवा) सुखप्रदा (रुतस्य) रुग्णस्य। अत्र पृषोदरादित्वाज्जलोपः। (भेषजी) आधिविनाशिनी (तया) (नः) अस्मान् (मृड) सुखय (जीवसे) जीवितुम्॥४९॥
भावार्थः
राजवैद्यादिविद्वद्भिर्धर्मनीत्यौषधिदानेन हस्तक्रियाकौशलेन शस्त्रैश्छित्त्वा भित्त्वा च रोगेभ्यो निवार्य्य सर्वाः सेनाः प्रजाश्च रञ्चनीयाः॥४९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (रुद्र) राजा के वैद्य तू (या) जो (ते) तेरी (शिवा) कल्याण करने वाली (तनूः) देह वा विस्तारयुक्त नीति (शिवा) देखने में प्रिय (भेषजी) ओषधियों के तुल्य रोगनाशक और (रुतस्य) रोगी को (शिवा) सुखदायी (भेषजी) पीड़ा हरने वाली है (तया) उससे (जीवसे) जीने के लिये (विश्वाहा) सब दिन (नः) हम को (मृड) सुख कर॥४९॥
भावार्थ
राजा के वैद्य आदि विद्वानों को चाहिये कि धर्म की नीति, ओषधि के दान, हस्तक्रिया की कुशलता और शस्त्रों से छेदन-भेदन करके रोगों से बचा के सब सेना और प्रजाओं को प्रसन्न करें॥४९॥
विषय
नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।
भावार्थ
हे ( रुद्र ) सत् अर्थात् प्राणियों की चीख पुकारवाली पीड़ा को दूर करने हारे ! ( या ) जो ( ते ) तेरी ( शिवा ) मङ्गलमय ( तनूः ) विस्तृत राजशक्ति है वह ( विश्वाहा ) सब दिनों (शिवा) मङ्गलमय, सुखकारिणी और ( भेषजी ) औषधि के समान कष्ट पीड़ाओं को दूर करने वाली हो। वह (शिवा) शिव, कल्याणकारिणी ( रुतस्य ) देह की व्याधिको ( भेषजी ) दूर करने वाली हो । ( तया ) उससे ही तु ( नः ) हमें( जीवसे ) दीर्घ जीवन तक ( मृड् ) सुखी कर ।
टिप्पणी
'शिवमृतस्य', 'मूळ' इति काण्व० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
आर्ष्यनुष्टुप । गांधारः ॥
विषय
शिवा तनूः
पदार्थ
१. हे (रुद्र) = राष्ट्र के दुःखों को दूर करनेवाले राजन् ! (या) = जो (ते) = तेरी शिवा कल्याणकर (तनूः) = विस्तृत राजनीति है [द०] वह (शिवा) = सचमुच कल्याणकर हो । २. (विश्वाहा) = सदा (भेषजी) = कष्टों की औषधरूप हो, अर्थात् सब कष्टों को दूर करनेवाली हो। ३. (शिवा) = वह कल्याणकर नीति (रुतस्य) = रोगों की (भेषजी) = औषध हो, सब रोगों को दूर करनेवाली हो। ४. (तया) = अपनी उस नीति से (नः) = हमें (मृड) सुखी कीजिए तथा ५. (जीवसे) = हमारे दीर्घ जीवन का कारण बनो ।
भावार्थ
भावार्थ - राजा की राजनीति ऐसी सुन्दर हो कि उससे १. प्रजा के कष्ट दूर हों । ३. वह कल्याणकर होती हुई सब रोगों को दूर करनेवाली हो। २. उससे प्रजा के जीवन सुखी हों। ४. प्रजा दीर्घजीवी बने ।
मराठी (2)
भावार्थ
राजाचे वैद्य वगैरे विद्वानांनी धर्मनीतीचे पालन, औषधांचे दान, शस्त्रक्रिया करून प्रजेला व सेनेला रोगापासून वाचवावे व पुष्ट बनवून प्रसन्न ठेवावे.
विषय
पुढील मंत्रात तोच विषय प्रतिपादित आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (रुद्र) राजवैद्य, (ते) आपली (या) जी (शिवा) कल्याणकारिणी (तनू:) शरीराला नीरोगकारिणी नीती (वैद्यक विद्या) आहे, ती (शिवा) सेवनामुळे प्रिय व पोषक असणार्या (भेषजी) औषधीप्रमाणेच (रुतस्य) रोगी मनुष्यांच्यासाठी (शिरा) सुरषकर (भेषजी) आणि पीडाहारक आहे (रोगनिवारक औषधी आणि वैद्याची वैद्यक ज्ञान दोन्ही रोग्याचे भले करणारे आहेत) (तथा) आपल्याला ज्ञान आणि अनुभवाद्वारे तुम्ही (जीवसे) आम्हाला (मृड) सुखी आणि निरोगी ठेवा ॥49॥
भावार्थ
भावार्थ - राजवैद्याला तसेच कुशल वैद्यांना पाहिजे की त्यांनी धर्मात सांगितलेल्या नीतीप्रमाणे वागावे, उत्तम औषधी घ्याव्यात, हस्तक्रिया (शल्यक्रिया) मधे कौशल्य मिळवावे आणि शस्त्रांद्वारे छेदन, भेदन आदी क्रियांद्वारे (शल्यकर्म-सर्जरी) सर्व प्रजाजनांनी रोगापासून युक्त करावे आणि सैनिकांनादेखील रोगमुक्त करावे ॥49॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O royal physician, thy auspicious, vast and fascinating skill, is like medicine the killer of disease. It gives comfort to the patient and removes his affliction. Make us enjoy this life with pleasure for all days.
Meaning
Rudra, lord of health and well-being, your auspicious presence in body and mind, your knowledge and approach is gracious, a panacea for all ailments, universal antidote to suffering and disease. With that healing touch bless us with good health and happiness for life.
Translation
O terrible Lord, with that form of yours, which is pleasing and auspicious, a perpetual remedy, and pleasing remedy for all the ills, may you favour us, so that we may live. (1)
Notes
Viśvāhā, विश्वेषु सर्वेषु अहःसु, सर्वदा, on all the days; every day; always.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (রুদ্র) রাজার বৈদ্য তুমি (য়া) যে (তে) তোমার (শিবা) কল্যাণকারিণী (তনুঃ) দেহ বা বিস্তারযুক্ত নীতি (শিবা) দেখিতে প্রিয় (ভেষজী) ওষধিসমূহের তুল্য রোগনাশক এবং (রুতস্য) রুগীকে (শিবা) সুখদায়ী (ভেষজী) পীড়া হরণকারিণী, (তয়া) উহা দ্বারা (জীবসে) বাঁচিবার জন্য (বিশ্বাহা) সকল দিন (নঃ) আমাদেরকে (মৃড) সুখী কর ॥ ৪ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–রাজার বৈদ্যাদি বিদ্বান্দিগের উচিত যে, ধর্মের নীতি, ওষধির দান, হস্তক্রিয়ার কুশলতা এবং শস্ত্র দ্বারা ছেদন, ভেদন করিয়া রোগ হইতে রক্ষা করিয়া সকল সেনা এবং প্রজাসকলকে প্রসন্ন করিবে ॥ ৪ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়া তে॑ রুদ্র শি॒বা ত॒নূঃ শি॒বা বি॒শ্বাহা॑ ভেষ॒জী ।
শি॒বা রু॒তস্য॑ ভেষ॒জী তয়া॑ নো মৃড জী॒বসে॑ ॥ ৪ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়া তে রুদ্র ইত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ ।
আর্ষ্যনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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