यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 50
ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः
देवता - रुद्रा देवताः
छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
116
परि॑ नो रु॒द्रस्य॑ हे॒तिर्वृ॑णक्तु॒ परि॑ त्वे॒षस्य॑ दुर्म॒तिर॑घा॒योः। अव॑ स्थि॒रा म॒घव॑द्भ्यस्तनुष्व॒ मीढ्व॑स्तो॒काय॒ तन॑याय मृड॥५०॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑। नः॒। रु॒द्रस्य॑। हे॒तिः। वृ॒ण॒क्तु॒। परि॑। त्वे॒षस्य॑। दु॒र्म॒तिरिति॑ दुःऽम॒तिः। अ॒घा॒योः। अ॒घा॒योरित्य॑घ॒ऽयोः। अव॑। स्थि॒रा। म॒घव॑द्भ्य॒ इति॑ म॒घव॑त्ऽभ्यः। त॒नु॒ष्व॒। मीढ्वः॑। तो॒काय॑। तन॑याय। मृ॒ड॒ ॥५० ॥
स्वर रहित मन्त्र
परि नो रुद्रस्य हेतिर्वृणक्तु परि त्वेषस्य दुर्मतिरघायोः । अव स्थिरा मघवद्भ्यस्तनुष्व मीढ्वस्तोकाय तनयाय मृड ॥
स्वर रहित पद पाठ
परि। नः। रुद्रस्य। हेतिः। वृणक्तु। परि। त्वेषस्य। दुर्मतिरिति दुःऽमतिः। अघायोः। अघायोरित्यघऽयोः। अव। स्थिरा। मघवद्भ्य इति मघवत्ऽभ्यः। तनुष्व। मीढ्वः। तोकाय। तनयाय। मृड॥५०॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
राजपुरुषैः किं कार्यमित्याह॥
अन्वयः
हे मीढ्वः! भवान् यो रुद्रस्य हेतिस्तेन त्वेषस्याघायोः सकाशन्नः परिवृणक्तु, या दुर्मतिर्भवेत् तस्याश्चास्मान् परिवृणक्तु। या च मघवद्भ्यः प्राप्ता स्थिरा मतिरस्ति, तां तोकाय तनयाय परि तनुष्वैतया सर्वान् सततमवमृड॥५०॥
पदार्थः
(परि) सर्वतः (नः) अस्मान् (रुद्रस्य) सभेशस्य (हेतिः) वज्रः (वृणक्तु) पृथक् करोतु (परि) (त्वेषस्य) क्रोधादिना प्रदीप्तस्य (दुर्मतिः) दुष्टबुद्धिः (अघायोः) आत्मनोऽघमिच्छोर्दुष्टाचारिणः (अव) (स्थिरा) निश्चला (मघवद्भ्यः) पूजितधनेभ्यः (तनुष्व) विस्तृणु (मीढ्वः) सुखसेचक (तोकाय) सद्यो जाताय बालकाय (तनयाय) कुमाराय (मृड) आनन्दय॥५०॥
भावार्थः
राजपुरुषाणां तदेव धर्म्यं सामर्थ्यं येन प्रजारक्षणं दुष्टानां हिंसनं च स्यात्, ततः सद्वैद्याः सर्वेषामारोग्यं स्वातन्त्र्यसुखोन्नतिं च कुर्युर्येन सर्वे सुखिनो भवेयुः॥५०॥
हिन्दी (3)
विषय
राजपुरुषों को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (मीढ्वः) सुख वर्षाने हारे राजपुरुष! आप जो (रुद्रस्य) सभापति राजा का (हेतिः) वज्र है, उससे (त्वेषस्य) क्रोधादिप्रज्वलित (अघायोः) अपने से दुष्टाचार करने हारे पुरुष के सम्बन्ध से (नः) हम लोगों को (परि, वृणक्तु) सब प्रकार पृथक् कीजिये। जो (दुर्मतिः) दुष्टबुद्धि है, उससे भी हम को बचाइये और जो (मघवद्भ्यः) प्रशंसित धनवालों से प्राप्त हुई (स्थिरा) स्थिर बुद्धि है, उस को (तोकाय) शीघ्र उत्पन्न हुए बालक (तनयाय) कुमार पुरुष के लिये (परि, तनुष्व) सब ओर से विस्तृत करिये और इस बुद्धि से सब को निरन्तर (अव, मृड) सुखी कीजिये॥५०॥
भावार्थ
राजपुरुषों का धर्मयुक्त पुरुषार्थ वही है कि जिससे प्रजा की रक्षा और दुष्टों को मारना हो, इससे श्रेष्ठ वैद्य लोग सब को आरोग्य और स्वतन्त्रता के सुख की उन्नति करें, जिससे सब सुखी हों॥५०॥
विषय
नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।
भावार्थ
( मीढ्वः ) समस्त प्रजापर सुखों की वर्षा करने हारे पर्जन्य के समान राजन् ! ( रुद्रस्य ) दुष्टों के रुलाने वाले वीर पुरुषों के ( हेतिः ) शस्त्र (नः) हमें ( परिवृणक्तु ) दूर से ही छोड़ दें, हम पर वे प्रहार न करें। और ( अघायोः ) हम पर पाप और अत्याचार करने की इच्छा वाले ( त्वेषस्य ) क्रोध से जले हुए पुरुष की ( दुर्मतिः ) दुष्ट बुद्धि भी ( न: परिवृणक्तु ) हमसे दूर रहे । ( मघवद्भ्यः ) धन-सम्पन्न प्रजाओं की रक्षा के लिये ( स्थिरा ) स्थिर शस्त्रों को ( अव तनुष्व ) स्थापित कर । और हमारे ( तोकाय तनयाय ) पुत्र और पौत्रों के लिये या छोटे और बड़े बालकों को ( मृड ) सुखी कर ।
टिप्पणी
परिणो हेती रुद्रस्य वृज्यात् परित्वेषस्य दुर्मतिर्महीगात, 'मूळ' इति काण्व।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
आर्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
दण्ड व अपराध-शून्यता
पदार्थ
१. (नः) = हमें (रुद्रस्य) = अन्यायकारियों को रुलानेवाले (रोदयति) राजा का (हेतिः) = अस्त्र (परिवृणक्तु) = छोड़ दे। हमपर दण्ड देनेवाले राजा का वज्र न गिरे, अर्थात् हम राजनियमों का पालन करते हुए राजा के प्रकोप से बचे रहें। २. और इस राजा की उचित व्यवस्था से हमें (त्वेषस्य) = [त्वेषति क्रोधेन ज्वलति, red with anger] क्रोध की ज्वाला से तमतमाते हुए (अघायोः) [अघं परस्य इच्छति] = सदा औरों का अशुभ चाहनेवाले अघायु पुरुष की (दुर्मतिः) = बुरी बुद्धि (परि) = [वृणक्तु] छोड़ दे। हम उसकी बुरी बुद्धि का शिकार न हो जाएँ, अर्थात् उत्तम राष्ट्र-व्यवस्था के परिणामस्वरूप दुष्ट लोग सज्जनों को पीड़ित न कर पाएँ। ३. (स्थिरा) = अपने दृढ़ शस्त्रों को तू (मघवद्भ्यः) = [मघ - मख] यज्ञशील जीवनवालों के लिए (अवतनुष्व) = शिथिल कर दे - धनुष की डोरी को उतार दे । ४. (मीढ्वः) = हे सब सुखों की वर्षा करनेवाले राजन् ! तू (तोकाय) = हमारी सन्तानों के लिए तथा (तनयाय) = सन्तानों की भी सन्तानों के लिए (मृड) = सुख देनेवाला हो ।
भावार्थ
भावार्थ - राजा राष्ट्र में ऐसी उत्तम दण्ड - व्यवस्था करे कि दुर्जन सज्जनों को तङ्ग न कर सकें। यज्ञशीलों पर दण्डपात न हो।
मराठी (2)
भावार्थ
राजपुरुषांचा पुरुषार्थ असा असावा की, त्यांनी प्रजेचे रक्षण करावे, दुष्टांचा नाश करावा, धर्मयुक्त श्रेष्ठ वैद्यांनी सर्वांचे आरोग्य व स्वातंत्र्यता सुरक्षित राहील असा प्रयत्न करावा आणि सर्वांना सुखी करावे.
विषय
राजपुरुषांचे कर्तव्य काय, पुढील मंत्रात याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (मीढ्व:) सुखाची वृष्टी करणारे राजपुरुषहो, (रुद्रस्य) सभापती राजाचे ते जे (हेति:) व्रज (नामक अतिसंहारक अस्त्र) आहे, त्याद्वारे तुम्ही (त्वेषस्य) क्रोधाने स्वत:च जळत असलेल्या (अद्यायो:) आणि स्वत:च स्वत:च्या आत्म्याशी दुर्वर्तन, दुर्विचार करणार्या दुर्जनापासून (न:) आम्हा प्रजाजनांना (परिवृणक्तु) सर्वथा दूर ठेवा (व्रज आदी अस्त्रांने दुष्टांचा संहार करून आमचे रक्षण करा) त्याचप्रमाणे ( हे वैद्यराज), (मद्यवद्भ्य:) धनवंताकडून मिळालेली जी (स्थिरा) प्रभूत वा पुष्कळ धनसंपत्ती आहे, ती तुम्ही (तोकाय) सघ: जात शिशूसाठी तसेच (तनयाय) कुमार, किशोर वयाच्या मुलांसाठी (परितनुष्व) योग्यप्रकारे वापरा आणि (अवमृड) सर्वांना सुखी व नीरोग करा ॥50॥
भावार्थ
भावार्थ - राजपुरुषांनी अशी धर्ममय कामें व प्रयत्न करावेत की ज्यामुळे प्रजा सुरक्षित होईल आणि दुष्टांचा विनाश होईल. त्याचप्रमाणे उत्तम वैद्यांनी सर्वांच्या आरोग्य आणि स्वातंत्र्यासाठी यत्न करून त्यांना सुखी करावे. अशा व्यवहारामुळे ते स्वत: आणि सर्वजण सुखी-समाधानी राहतील ॥50॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O King, giver of pleasure unto us, keep us away from the weapons of the valiant, save us from the evil-mindedness of the indignant sinners. Extend unto our babes and youths, the stable intellect derived from the rich, and make us all delightful with it.
Meaning
May the thunderbolt of Rudra spare us. May the evil disposition of the sinful and the angry keep off from us. May the generous lord giver of life and prosperity elevate the intelligence and constancy of the munificent yajnics and be kind and gracious to our children and our youth.
Translation
May the weapon of the terribe Lord spare us; may the illfeeling of the wrathful malevolent leave us aside. О showerer of benefits, do not aim your bow towards the sacrificers, who offer oblations, and bless our sons and the grandsons with your grace. (1)
Notes
Tvesasya, क्रुद्धस्य, angry; wrathful. Aghāyoh, अघं पापं यः कामयते परस्मै सः बघायुः, तस्य, one who wishes ill for others. Maghavadbhyah, मघं हविर्लक्षणं धनं विद्य। येषां तेभ्यः, for 1 those who have got the riches of offerings, i. e. t e sacrificers.
बंगाली (1)
विषय
রাজপুরুষৈঃ কিং কার্য়মিত্যাহ ॥
রাজপুরুষদিগকে কী করা উচিত, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (মীঢ্বঃ) সুখ বর্ষণকারী রাজপুরুষ! আপনি যে (রুদ্রস্য) সভাপতি রাজার (হেতিঃ) বজ্র তদ্দ্বারা (ত্বেষস্য) ক্রোধাদি প্রজ্বলিত (অঘায়োঃ) স্বীয় আত্মা দ্বারা দুরাচারকারী পুরুষের সম্পর্ক হইতে (নঃ) আমাদিগকে (পরি, বৃণক্তু) সর্ব প্রকার পৃথক করুন । যে (দুর্মতিঃ) দুষ্ট বুদ্ধি তাহার হইতে আমাদেরকে বাঁচান এবং যে (মঘবদ্ভ্যঃ) প্রশংসিত ধনযুক্ত হইতে প্রাপ্ত (স্থিরা) স্থির বুদ্ধি তাহাকে (তোকায়) শীঘ্র উৎপন্ন বালক (তনয়ায়) কুমার পুরুষের জন্য (পরি, তনুষ্ব) সব দিক্ দিয়া বিস্তৃত করুন এবং এই বুদ্ধি দ্বারা সকলকে নিরন্তর (অব, মৃড়) সুখী করুন ॥ ৫০ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ– রাজপুরুষদিগের ধর্মযুক্ত পুরুষার্থ ইহাই যে, প্রজার রক্ষা এবং দুষ্টদিগকে নিধন করা, ইহা দ্বারা শ্রেষ্ঠ বৈদ্যগণ সকলকে আরোগ্য এবং স্বতন্ত্রতার সুখের উন্নতি করিবে যাহাতে সকলেই সুখী হয় ॥ ৫০ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
পরি॑ নো রু॒দ্রস্য॑ হে॒তিবৃর্ণক্॑তু॒ পরি॑ ত্বে॒ষস্য॑ দুর্ম॒তির॑ঘা॒য়োঃ ।
অব॑ স্থি॒রা ম॒ঘব॑দ্ভ্যস্তনুষ্ব॒ মীঢ্ব॑স্তো॒কায়॒ তন॑য়ায় মৃড ॥ ৫০ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
পরি ন ইত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ ।
আর্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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