यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 38
ऋषिः - कुत्स ऋषिः
देवता - रुद्रा देवताः
छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
99
नमः॒ कूप्या॑य चाव॒ट्याय च॒ नमो॒ वीध्र्या॑य चात॒प्याय च॒ नमो॒ मेघ्या॑य च विद्यु॒त्याय च॒ नमो॒ वर्ष्या॑य चाव॒र्ष्याय॑ च॥३८॥
स्वर सहित पद पाठनमः॑। कूप्या॑य। च॒। अ॒व॒ट्या᳖य। च॒। नमः॑। वीध्र्या॒येति॑ वि॒ऽईध्र्या॑य। च॒। आ॒त॒प्या᳖येत्याऽत॒प्या᳖य। च॒। नमः॑। मेघ्या॑य। च॒। वि॒द्यु॒त्या᳖येति॑ विऽद्यु॒त्या᳖य। च॒। नमः॑। वर्ष्या॑य। च॒। अ॒व॒र्ष्याय॑। च॒ ॥३८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नमः कूप्याय चावट्याय च नमो वीर्ध्याय चातप्याय च नमो मेघ्याय च विद्युत्याय नमो वर्ष्याय चावर्ष्याय च नमो वात्याय ॥
स्वर रहित पद पाठ
नमः। कूप्याय। च। अवट्याय। च। नमः। वीध्र्यायेति विऽईध्र्याय। च। आतप्यायेत्याऽतप्याय। च। नमः। मेघ्याय। च। विद्युत्यायेति विऽद्युत्याय। च। नमः। वर्ष्याय। च। अवर्ष्याय। च॥३८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
मनुष्याः कूप्याय चावट्याय च नमो वीध्र्याय चातप्याय च नमो मेघ्याय च विद्युत्याय च नमो वर्ष्याय चावर्ष्याय च नमो दत्त्वा कृत्वा चानन्दन्तु॥३८॥
पदार्थः
(नमः) अन्नादिकम् (कूप्याय) कूपे भवाय (च) (अवट्याय) अवटेषु गर्त्तेषु भवाय (च) जङ्गलेषु भवाय (नमः) सस्यादिकम् (वीध्र्याय) विविधेषु ईधेषु दीपनेषु भवाय, अत्र विपूर्वकादिन्धिधातोरौणादिको रक् प्रत्ययः। (च) (आतप्याय) आतपेषु भवाय (च) कृष्यादेः प्रबन्धकर्त्रे (नमः) अन्नादिकम् (मेघ्याय) मेघेषु भवाय (च) (विद्युत्याय) विद्युति भवाय (च) अग्निविद्याविदे (नमः) सत्कारक्रियाम् (वर्ष्याय) वर्षासु भवाय (च) (अवर्ष्याय) अविद्यमानासु वर्षासु भवाय (च)॥३८॥
भावार्थः
यदि मनुष्याः कूपादिभ्यः कार्यसिद्धये भृत्यान् सत्कुर्युस्तर्ह्यनेकान्युत्तमानि कार्याणि कर्त्तुं शक्नुयुः॥३८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
मनुष्य लोग (कूप्याय) कूप के (च) और (अवट्याय) गड्ढों (च) तथा जङ्गलों के जीवों को (नमः) अन्नादि दे (च) और (वीध्र्याय) विविध प्रकाशों में रहने (च) और (आतप्याय) घाम में रहने वाले वा (च) खेती आदि के प्रबन्ध करने वाले को (नमः) अन्न दे (मेघ्याय) मेघ में रहने (च) और (विद्युत्याय) बिजुली से काम लेने वाले को (च) तथा अग्निविद्या के जानने वाले को (नमः) अन्नादि दे (च) और (वर्ष्याय) वर्षा में रहने (च) तथा (अवर्ष्याय) वर्षारहित देश में वसने वाले का (नमः) सत्कार करके आनन्दित होवें॥३८॥
भावार्थ
जो मनुष्य कूपादि से कार्यसिद्धि होने के लिये भृत्यों का सत्कार करें तो अनेक उत्तम-उत्तम कार्यों को सिद्ध कर सकें॥३८॥
विषय
नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।
भावार्थ
( कूप्याय च ) कूपों पर नियत पुरुष, ( अवटयाय च ) अवट अर्थात् गढ़ों पर नियत पुरुष, ( वीध्याय च ) विविध प्रकाशों के विज्ञान में कुशल, ( आतप्याय च ) सूर्य के ताप का उत्तम उपयोग या विज्ञान वाले अथवा आपत, धूप में कार्य करने वाले, ( मेध्याय च ) मेघों का विज्ञान जानने वाले, (विद्युत्याय द्य च ) विद्युत् के विज्ञान में कुशल, ( वर्ष्याय च ) वृष्टि के विज्ञान में कुशल और ( वर्ष्याय च ) अवर्ष अर्थात् वर्षाओं के न होने पर जल का उचित प्रबन्ध करने में, अतिवृष्टि को दूर करने में समर्थ इन समस्त पुरुषों के राष्ट्र में उचित आदर, पद, अन्न, वेतन आदि प्राप्त हो ।
टिप्पणी
'नमः ईध्याय' इति काण्व० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भुरिगार्षी पक्तिः । पञ्चमः ॥
विषय
देश-भेद
पदार्थ
१. (कूप्याय) = कूओं से सिंचाई करने योग्य देश के अध्यक्ष के लिए हम (नमः) = नमस्कार करते हैं, (च) = तथा (आवट्याय) = गर्तबहुल [अव गड्ढा गर्त] देश में कृषि की ठीक व्यवस्था करनेवाले पुरुष का (नमः) = हम आदर करते हैं । २. (वीध्र्याय च नमः) = [विगत इधो दीप्तिः यस्मात् स वीध्रो घनागमः] खूब बादलोंवाली वर्षाऋतु के प्राचुर्यवाली भूमि में नियुक्त पुरुष का हम आदर करते हैं, (च) = और (आतप्याय) = [आतपे भवः] खूब प्रचण्ड गरमीवाले प्रदेशों में नियुक्त पुरुष का भी हम मान करते हैं । ३. (मेघ्याय च नमः) = मेघोंवाले प्रदेश में नियुक्त पुरुष का हम आदर करते हैं, (च) = और (विद्युत्याय च) = विद्युत् की विद्या में निपुण व विद्युत्-विभाग में नियुक्त पुरुष का हम आदर करते हैं। ४. (वर्ष्याय च नमः) = उत्तम वृष्टि की व्यवस्था करनेवाले के लिए या वृष्टिकाल में नियुक्त पुरुष का हम आदर करते हैं, (च) = और (अवर्ष्याय) = वर्षा के प्रतिबन्ध में निपुण पुरुष का हम आदर करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - विविध देशों में नियुक्त राजपुरुषों के लिए हम उचित मान दें।
मराठी (2)
भावार्थ
जी माणसे विहिरी इत्यादींचे बांधकाम करणाऱ्या नोकरांचा सत्कार करतात ती अनेक चांगली कामे करू शकतात.
विषय
पुनश्च, तोच विषय-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - मनुष्यांनी (लोकांनी आपल्या कल्याणासाठी) (कूप्याय) विहिरीत राहणार्या (च) आणि (अवट्याय) गढे, खाच-खळगे (च) तसेच वनात राहणार्या प्राण्यांसाठी (नम:) अन्न, खाद्य आदीपदार्थ द्यावेत (च) तसेच (वीघ्रयाय) विविध प्रकाशित (अती ऊन असलेल्या प्रदेशात राहणार्या (च) व (आतप्याय) घाम व ऊष्मा असणार्या प्रदेशात राहून (च) कृषी आदी व्यवसाय करणार्या लोकांसाठी (इतर लोकांनी) (नम:) अन्न-धान्य पुरवावे. याशिवाय (मेघ्याय) ढगात असणार्या विद्युतेचा (च) आणि (विद्युत्याय) उत्पादित विद्युतेपासून उपयोग घेणार्या कर्मचार्यांकरिता (च) आणि विद्युत-अग्नीचे उपयोग जाणणार्या लोकांकरिता (नम:) अन्न-धान्यादी द्यावे. (च) तसेच (वर्ष्याय) वर्षामय प्रदेशात (अतिवृष्टीच्या भागात) वसणार्या (च) आणि (अवर्द्याय) अवर्षणमय भागात राहणार्या लोकांकरिता (इतर सर्व लोकांनी) (नम:) (योग्य प्रमाणात आवश्यक) अन्न आदी पदार्थ पुरविले. पाहिजे ॥38॥
भावार्थ
भावार्थ - जी माणसें विहीर, तलाव आदीचे निर्माण करणार्या श्रमिक, यांत्रिक व वैज्ञानिकांचा, सेवकांचा योग्यप्रकारे आदर-नमन करतात, ते अनेक उत्तमोत्तम कार्य पूर्ण करण्यात समर्थ होतात. ॥38॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Food to the creatures who dwell in wells, pits and forests. Food to him who lives in diverse lights, to him who works in heat, and manages his fields. Homage to him who knows the science of clouds, and to him who knows the science of electricity. Homage to him who lives in a rainy place, and to him who lives in an arid place.
Meaning
Salutations to the specialist of well construction. Salutations to the drilling geologist. Salutations to the scientist explorer of the clear blue sky in the sunlight. Salutations to the expert of solar heat and energy. Salutations to the technologist of cloud formation. Salutations to the scientist and technologist of lightning and electricity. Salutations to the scholar and scientist of rain and water management. Salutations to the scientist of drought and drought management.
Translation
Our homage be to him, who rules over wells; (1)and rules over water-holes. (2) Our homage be to Him, who rules over cloudy weather; (3) and rules over sunshine. (4) Our homage be to him, who rules over cloud ;(5) and rules over lightning. (6) Our homage be to Him, who rules over rain; (7) and rules over draught. (8)
Notes
In the places we have translated 'rules over' Griffith has interpreted as 'dwells in'. Avataḥ, T:, a pit. Vidhryāya, विगतदीप्तिः वीघ्रः घनागमः, cloudy weather; to him who rules over it. Also, who dwells in or comes out in cloudy weather. Ironically, वीघ्र: can be interpreted as विशेषेण दीप्तः, a bright sky.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–মনুষ্যগণ (কূপ্যায়) কূপের (চ) এবং (অবট্যায়) গর্ত্তগুলি (চ) তথা জঙ্গলী প্রাণিদিগকে (নমঃ) অন্নাদি দিবে (চ) এবং (বীধ্র্যায়) বিবিধ আলোকে নিবাসকারী (চ) এবং (আতপ্যায়) রৌদ্রে নিবাসকারী অথবা (চ) কৃষি আদির ব্যবস্থাকারীদেরকে (নমঃ) অন্ন দিবে (মেঘ্যায়) মেঘে বাসকারী (চ) এবং (বিদ্যুত্যায়) বিদ্যুৎ হইতে কাজ লয় যে ব্যক্তিকে (চ) তথা অগ্নিবিদ্যার জ্ঞাতাকে (নমঃ) অন্নাদি দিবে । এবং (বর্ষ্যায়) বর্ষায় বাসকারী (চ) তথা (অবর্ষ্যায়) বর্ষা রহিত দেশে বসবাসকারীদের (নমঃ) সৎকার করিয়া আনন্দিত হইবে ॥ ৩৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যে মনুষ্যগণ কূপাদি দ্বারা কার্য্যসিদ্ধি হওয়ার জন্য ভৃত্যদের সৎকার করে তাহারা বহু উত্তম উত্তম কার্য্য সিদ্ধ করিতে পারিবে ॥ ৩৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
নমঃ॒ কূপ্যা॑য় চাব॒ট্যা᳖য় চ॒ নমো॒ বীধ্র্যা॑য় চাত॒প্যা᳖য় চ॒ নমো॒ মেঘ্যা॑য় চ বিদ্যু॒ত্যা᳖য় চ॒ নমো॒ বর্ষ্যা॑য় চাব॒র্ষ্যায়॑ চ ॥ ৩৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
নমঃ কূপ্যায়েত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রা দেবতাঃ । ভুরিগার্ষী পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
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