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यजुर्वेद अध्याय - 16

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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 47
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - भुरिगार्षी बृहती स्वरः - मध्यमः
    128

    द्रापे॒ऽअन्ध॑सस्पते॒ दरि॑द्र॒ नील॑लोहित। आ॒सां प्र॒जाना॑मे॒षां प॑शू॒नां मा भे॒र्मा रो॒ङ् मो च॑ नः॒ किं च॒नाम॑मत्॥४७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्रापे॑। अन्ध॑सः। प॒ते॒। दरि॑द्र। नील॑लोहि॒तेति॒ नील॑ऽलोहित। आ॒साम्। प्र॒जाना॒मिति॑ प्र॒ऽजाना॑म्। ए॒षाम्। प॒शू॒नाम्। मा। भेः॒। मा। रो॒क्। मोऽइति॒ मो। च॒। नः॒। किम्। च॒न। आ॒म॒म॒त् ॥४७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्रापे अन्धसस्पते दरिद्र नीललोहित । आसाम्प्रजानामेषाम्पशूनाम्मा भेर्मा रोङ्मो च नः किञ्चनाममत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    द्रापे। अन्धसः। पते। दरिद्र। नीललोहितेति नीलऽलोहित। आसाम्। प्रजानामिति प्रऽजानाम्। एषाम्। पशूनाम्। मा। भेः। मा। रोक्। मोऽइति मो। च। नः। किम्। चन। आममत्॥४७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 47
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे द्रापे अन्धसस्पते दरिद्र नीललोहित राजप्रजाजन! त्वमासां प्रजानामेषां पशूनां च सकाशान्मा भेः। मा रोक् नोऽस्मान् किञ्चन मो आममत्॥४७॥

    पदार्थः

    (द्रापे) यो द्रः कुत्साया गतेः पाति रक्षति तत्संबुद्धौ (अन्धसः) अन्नादेः (पते) स्वामी (दरिद्र) यो दरिद्राति तत्सम्बुद्धौ (नीललोहित) यो नीलान् वर्णान् रोहयति तत्सम्बुद्धौ (आसाम्) प्रत्यक्षाणाम् (प्रजानाम्) मनुष्यादीनाम् (एषाम्) (पशूनाम्) गवादीनाम् (मा) (भेः) मा भयं प्रापयेः (मा) (रोक्) रोगं कुर्याः (मो) (च) (नः) अस्मान् (किम्) (चन) (आममत्) अम रोगे। अमागमः लङि रूपम्॥४७॥

    भावार्थः

    य आढ्यास्ते दरिद्रान् पालयेयुर्ये राजप्रजाजनास्ते प्रजापशुहिंसनं कदापि मा कुर्युर्यतः सर्वेषां सुखं वर्द्धेत॥४७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (द्रापे) निन्दित गति से रक्षक (अन्धसः) अन्न आदि के (पते) स्वामी (दरिद्र) दरिद्रता को प्राप्त हुए (नीललोहित) नीलवर्णयुक्त पदार्थों का सेवन करने हारे राजा वा प्रजा के पुरुष! तू (आसाम्) इन प्रत्यक्ष (प्रजानाम्) मनुष्यादि (च) और (एषाम्) इन (पशूनाम्) गौ आदि पशुओं के रक्षक होके इनसे (मा) (भेः) मत भय को प्राप्त कर (मा) (रोक्) मत रोग को प्राप्त कर (नः) हम को और अन्य (किम्) किसी को (चन) भी (मो) मत (आममत्) रोगी करे॥४७॥

    भावार्थ

    जो धनाढ्य हैं, वे दरिद्रों का पालन करें तथा जो राजा और प्रजा के पुरुष हैं, वे प्रजा के पशुओं को कभी न मारें, जिससे प्रजा में सब प्रकार सब का सुख बढ़े॥४७॥

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    विषय

    नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे (द्रापे) शत्रुओं को कुत्सित गति अर्थात् दुर्दशा में पहुंचा देने हारे! हे ( अन्धसः पते ) अन्न आदि भोग्य पदार्थ, एवं जीवनप्रद पदार्थों के पालक ! स्वामिन्! हे ( दरिद्र) शत्रुओं को दुर्गति में डालने वाले ! अथवा दुर्गंत ! दुष्प्राप्य ! एकाकी अधिकारिन् ! हे ( नीललोहित ) कंठ देश में नीले और शेष देह पर लाल वर्ण के वस्त्र पहनने हारे राजन् ! वीर ! तू (आसाम) इन प्रजाओं में से और ( एषाम् पशूनाम् ) इन पशुओं में से किसी को ( मा भेः ) भयभीत मत कर ( मा रोड् ) रोग से पीड़ित मत कर, ( मो च) और न ( किंचन ) किसी प्रकार से ( आममत् ) पीडा, कष्ट दे । शत० ९ । १ । १ । २४ ॥

    टिप्पणी

    ' मा भेर्मो रोङ्मो' इति काण्व० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    एको रुद्रो देवता । भुरिगार्षी बृहती । मध्यमः॥

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    विषय

    दरिद्र: आदर्श राजा

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र में राष्ट्र के सब अधिकारियों व अन्य कर्मकरों का उल्लेख करके कहते हैं कि (द्रापे) = [द्रा कुत्सायां गतौ तस्याः पाति] कुत्सित गति से सबकी रक्षा करनेवाले ! वस्तुतः राजा का मौलिक कर्त्तव्य यही है कि वह सभी को स्वधर्म में स्थापित करे और कुत्सित आचरण से बचाये। २. (अन्धसस्पते) = [क] हे अन्नों के पति ! [ अन्धस् - अन्न] राजा का दूसरा कर्त्तव्य यह है कि राजा राष्ट्र में किसी को भूखा न मरने दे ['नास्य विषये क्षुधा अवसीदेत्'- आपस्तम्ब] । धान्यों के अष्टम भाग को कर रूप में लेनेवाला राजा अन्नों का स्वामी तो बनता ही है। अचानक वृष्ट्यभाव में अन्न की कम उत्पत्ति होने पर राजा के वे अन्नकोश प्रजा के अन्नाभाव के कष्ट को दूर करनेवाले होते हैं। [ख] अन्धसस्पते' का अर्थ 'सोमपते' भी है [ अन्धस्= सोम] = राजा अपने (सोम) = वीर्य-शक्ति की रक्षा करनेवाला हो। स्वयं संयमी राजा ही औरों का भी संयमन कर पाता है। ३. (दरिद्र) = निष्परिग्रह ! राजा का यह सम्बोधन स्पष्ट कर रहा है कि राजा को प्रजा से कर प्रजा के कल्याण के लिए ही लेना है। उस कर का विनियोग उसे अपने लिए नहीं करना है। 'प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलिमग्रहीत्'-' प्रजाओं के ही कल्याण के लिए वह उनसे कर लेता था - यह राजा के जीवन का आदर्श होना चाहिए।' सारे कोश का स्वामी होते हुए भी राजा स्वयं निष्परिग्रह ही बना रहे। यह कोशरूप धेनु प्रजा के लिए धेनु-दूध पिलानेवाली हो, राजा के लिए तो यह 'वशा' बाँझ गौ ही हो। ४. (नीललोहित) = [कण्ठे नीलः, अन्यत्र लोहितः -म० ] कण्ठ में नील हो, अर्थात् विविध विद्याओं से विभूषित कण्ठवाला हो और शरीर में अत्यन्त तेजस्वी हो । एवं ब्रह्म व क्षत्र के उचित विकासवाला हो। ५. हे राजन् ! तू ऐसी व्यवस्था कर कि (आसां प्रजानाम्) = इन प्रजाओं में से तथा (एषां पशूनाम्) = इन पशुओं में से (मा भेः) = कोई भयभीत न हो। सब प्रजाओं व पशुओं का सारे राष्ट्र में अकुतोभय सञ्चार हो । मार्गों में व अन्धकार के समय चोर डाकुओं आदि का ख़तरा न हो। ६. (मा रोक्) = [रुजो भङ्ग] इनका किसी प्रकार का भङ्ग न हो। ऐसी उत्तम व्यवस्था कर कि न्यायमार्ग पर चलनेवाले किसी का भी कार्य असफल न हो। ७. (उ) = और (च) = फिर (नः) = हममें से किंचन-कोई भी (मा आममत्) = रोगी न हो [अम रोगे]। एवं राजा तीन व्यवस्थाएँ अवश्य शीघ्रातिशीघ्र करे [क] सब निर्भीक होकर आवागमन कर सकें, न्याय्यकार्यों में असफलताएँ न हों तथा रोग न फैलें।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा 'द्रापि अन्धसस्पति-दरिद्र व नीललोहित' हो और उसकी व्यवस्था इतनी उत्तम हो कि किसी को मार्गों में भय न हो, असफलताएँ न हों और रोग न फैलें ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे धनाढ्य असतात त्यांनी दरिद्री लोकांचे पालन करावे. राजा व प्रजा यांनी पशूंना कधीही मारू नये, कारण पशूंमुळे प्रजेचे सुख वाढते.

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    विषय

    पुढील मंत्रातही तोच विषय प्रतिपादित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (द्रापे) निन्दनीय मार्गाने न जाणार्‍या व जाण्यापासून इतरांना रोकणार्‍या (अन्धस:) (पते) अन्न आदीचे स्वामी हे राजा व प्रजाजनातील प्रमुख माणसा, तू (दरिद्र) दारिद्याने ग्रासलेल्या आणि (नीललोहित) निळ्या व लाल पदार्थांचे सेवन करणार्‍या (निकृष्ट अभोग्य वस्तूंचे सेवन करणार्‍या निर्धन लोकांना आश्रय दे) तसेच तू (आसाम्) या (प्रजानाम्) प्रजाजनांचा (च) आणि (एषाम्) या (पशूनाम्) गौ आदी पशूंचा रक्षक हो (या प्रजेपासून न पशूंपासून) तू कधीही (मा) (भे:) भयभीत होऊ नकोस. (मो) (रोक्) कधी रोगी होऊ नकोस आणि (न:) आम्हाला तसेच अन्य (किम्) कोणाला (चन) देखील (मो) (आममत्) रोग होऊ नये (असा प्रबंध कर) ॥47॥

    भावार्थ

    भावार्थ - राष्ट्रात जे धनवंत आहेत, त्यांनी दीन-निर्धनांचे पालन-पोषण केले पाहिजे आणि जे राजा व प्रजा प्रमुख, नेता आहेत, त्यांनी प्रजेच्या पशूंना कधीही मारूं नये. अशा प्रकारे वर्तन केल्याने प्रजा सर्वदृष्ट्या सुखी-समाधानी राहील. ॥47॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O King, our saviour from degradation, lord of wealth, driver of foes to the abyss of poverty, robed in blue and red dress, terrify not these people and cattle, nor make them diseased. Let not us or any one else be sick.

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    Meaning

    Redeemer of the fallen, lord of food and sustenance, saviour of the poor and down-trodden, lord of growth and greenery, cause no fear to these people and these animals. Cause no ailment or injury. Let none of us suffer any disease or damage.

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    Translation

    O torturer of wicked, Lord of food, devoid of all sorts of possessions, O Lord with azure and red hue, may you never frighten our people and our animals. May you never cause any injury to them and nothing whatsoever of ours be ever sick. (1)

    Notes

    Drāpe, द्रापयति कुत्सितां गतिं प्रापयति पापिनः यः सः, one that tortures the wicked (vocative case). Andhasaspate, अन्धः अन्नं, तस्य पते, O Lord of food. Also, अन्धः सोम, तस्य पते पालक, o protector of Soma. Daridra, निष्परिग्रह, devoid of possessions. Also, O cleaver. Mā bheh, भयं मा कुरु, do not frighten. Prajā, sons, grandsons etc. Also, people, subjects. Māmamat, from √अम् रोगे, may not fall sick.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থ –হে (দ্রাপে) নিন্দিত গতিপূর্বক রক্ষক (অন্ধসঃ) অন্নাদির (পতে) স্বামী (দরিদ্র) দারিদ্র্য প্রাপ্ত (নীললোহিত) নীলবর্ণযুক্ত বস্তুসকলের সেবনকারী রাজা বা প্রজার পুরুষ! তুমি (আসাম্) এই প্রত্যক্ষ (প্রজানাম্) মনুষ্যাদি (চ) এবং (এষাম্) এই সব (পশুনাম্) গাভি আদি পশুদের রক্ষক হইয়া তদ্দ্বারা (মা)(মে) ভয়কে প্রাপ্ত হইও না (মা) (রোক্) রোগকে প্রাপ্ত হইও না (নঃ) আমাদেরকে এবং অন্যান্য (কিম্) কাহাকে (চন)(মো) না (আমসৎ) রুগী করিবে ॥ ৪৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যাহারা ধনাঢ্য তাহারা দরিদ্রদিগের পালন করিবে তথা যাহারা রাজা ও প্রজার পুরুষ তাহারা প্রজার পশুদিগকে কখনও নিধন করিবে না যাহাতে প্রজাদের মধ্যে সর্ব প্রকার সুখের বৃদ্ধি হয় ॥ ৪৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    দ্রাপে॒ऽঅন্ধ॑সস্পতে॒ দরি॑দ্র॒ নীল॑লোহিত । আ॒সাং প্র॒জানা॑মে॒ষাং প॑শূ॒নাং মা ভে॒র্মা রো॒ঙ্ মো চ॑ নঃ॒ কিং চ॒নাऽऽম॑মৎ ॥ ৪৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    দ্রাপ ইত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ ।
    ভুরিগার্ষী বৃহতী ছন্দঃ । মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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