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यजुर्वेद अध्याय - 16

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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 15
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - निचृदार्षी जगती स्वरः - निषादः
    365

    मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ऽअर्भ॒कं मा न॒ऽउक्ष॑न्तमु॒त मा न॑ऽउक्षि॒तम्। मा नो॑ वधीः पि॒तरं॒ मोत मा॒तरं॒ मा नः॑ प्रि॒यास्त॒न्वो रुद्र रीरिषः॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा। नः॒। म॒हान्त॑म्। उ॒त। मा। नः॒। अ॒र्भ॒कम्। मा। नः॒। उक्ष॑न्तम्। उ॒त। मा। नः॒। उ॒क्षि॒तम्। मा। नः॒। व॒धीः॒। पि॒तर॑म्। मा। उ॒त। मा॒तर॑म्। मा। नः॒। प्रि॒याः। त॒न्वः᳖। रु॒द्र॒। री॒रि॒ष॒ इति॑ रीरिषः ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो महान्तमुत मा नोऽअर्भकम्मा नऽउक्षन्तमुत मा नऽउक्षितम् । मा नो वधीः पितरम्मोत मातरम्मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मा। नः। महान्तम्। उत। मा। नः। अर्भकम्। मा। नः। उक्षन्तम्। उत। मा। नः। उक्षितम्। मा। नः। वधीः। पितरम्। मा। उत। मातरम्। मा। नः। प्रियाः। तन्वः। रुद्र। रीरिष इति रीरिषः॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    राजजनैः किं न कार्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे रुद्र! त्वं नो महान्तं मा वधीरुत नोऽर्भकं मा वधीर्न उक्षन्तं मा वधीरुत न उक्षितं मा वधीः। नः पितरं मा वधीरुत नो मातरं च मा वधीः। नः प्रियास्तन्वो मा रीरिषः॥१५॥

    पदार्थः

    (मा) निषेधार्थे (नः) अस्माकम् (महान्तम्) महागुणविशिष्टं पूज्यं जनम् (उत) अपि (मा) (नः) (अर्भकम्) अल्पं क्षुद्रम् (मा) (नः) (उक्षन्तम्) वीर्य्यसेक्तारम् (उत) (मा) (नः) (उक्षितम्) सिक्तम् (मा) (नः) (वधीः) हिंस्याः (पितरम्) पालकं जनकम् (मा) (उत) (मातरम्) मान्यप्रदां जननीम् (मा) (नः) (प्रियाः) स्त्र्यादेः प्रीत्युत्पादकानि (तन्वः) शरीराणि (रुद्र) युद्धसेनाधिकृतविद्वन् (रीरिषः) हिंस्याः। अत्र लिङर्थे लुङडभावश्च॥१५॥

    भावार्थः

    योद्धृभिर्युद्धसमये कदाचिद् वृद्धा बालका अयोद्धरो युवानो गर्भा योद्धृणां मातरः पितरश्च सर्वेषां स्त्रियः संप्रेक्षितारो दूताश्च नो हिंसनीयाः, किन्तु सदा शत्रुसम्बन्धिनो वशे स्थापनीयाः॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    राजपुरुषों को क्या नहीं करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (रुद्र) युद्ध की सेना के अधिकारी विद्वन् पुरुष! आप (नः) हमारे (महान्तम्) उत्तम गुणों से युक्त पूज्य को (मा) मत (उत) और (अर्भकम्) छोटे क्षुद्र पुरुष को (मा) मत (नः) हमारे (उक्षन्तम्) गर्भाधान करने हारे को (मा) मत (उत) और (नः) हमारे (उक्षितम्) गर्भ को (मा) मत (नः) हमारे (पितरम्) पालन करने हारे पिता को (मा) मत (उत) और (नः) हमारी (मातरम्) मान्य करने हारी माता को भी (मा) मत (वधीः) मारिये और (नः) हमारे (प्रियाः) स्त्री आदि के पियारे (तन्वः) शरीरों को (मा) मत (रीरिषः) मारिये॥१५॥

    भावार्थ

    योद्धा लोगों को चाहिये कि युद्ध के समय वृद्धों, बालकों, युद्ध से हटने वाले ज्वानों, गर्भों, योद्धाओं के माता पितरों, सब स्त्रियों, युद्ध के देखने वा प्रबन्ध करने वालों और दूतों को न मारें, किन्तु शत्रुओं के सम्बन्धी मनुष्यों को सदा वश में रक्खें॥१५॥

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    विषय

    प्रजा की अभय प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! सेनापते ! तू (नः) हमारे ( महान्तम् ) बड़े, वृद्ध, आदरणीय, पूजनीय ( उत ) और (नः) हमारे ( अर्भकम् ) छोटे, बालक अथवा छोटे पद के पुरुष को भी ( मा वधीः ) मत मार । ( नः उक्षन्तम् ) हमारे वीर्यसेचन में समर्थ तरुण पुरुष को भी ( मा ) मत मार । ( उत) और (न:) हमारे ( उक्षितम् ) गर्भाशय में निषिक, वीर्य अर्थात् गर्भस्थ डिम्ब को ( मा वधीः) विनष्ट मत कर। ( नः पितरम् ) हमारे पालक, पिता को ( मा वधीः ) मत मार ( उत मातरम् मा वधी: ) और माता को भी मत मार । हे (रुद्र) दुष्टों के रुलाने हारे शत्रु के दुर्गों को रोधन करने हारे रुद (नः) हमारे ( प्रियाः तन्वः ) प्रिय शरीरों को( मा रीरिषः ) मत पीड़ित कर । या ( तन्वः ) हमारे कुल के विस्तारक होना चाहिए आदि प्रजाओं को भी मत मार । परि ते शरीराणि (द०) । शरीराणि पुत्रपौत्रादिलक्षणानि इत्युव्वटः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृदार्षी जगती । निषादः ॥

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    विषय

    सर्वरक्षण

    पदार्थ

    १. राज्य व्यवस्था के उत्तम होने पर अपने जीवनों को उत्तम बनाकर हम प्रभु से- प्रार्थना करें हे (रुद्र) = ज्ञान देनेवाले और उस ज्ञान के अनुसार आचरण करनेवालों के दुःखों को दूर करनेवाले प्रभो! (नः) = हमारे (महान्तम्) = बड़े पुरुष को (मा रीरिषः) = मत हिंसित कीजिए। आपकी कृपा से उनके दीर्घ जीवन के परिणामस्वरूप हमारे सिरों पर उनकी छत्रछाया बनी रहे। २. (उत) = और (नः) = हमारे (अर्भकम्) = छोटों को भी (मा रीरिषः) = मत हिंसित कीजिए। बड़ों के निर्देश व निरीक्षण छोटों के कल्याण का कारण होते ही हैं। ३. (नः) = (उक्षन्तम्) = गृहस्थ में नव प्रवेशवाले सन्तति के लिए वीर्यसेक्ता तरुण को (मा) = मत हिंसित कीजिए। वे संयमी जीवनवाले होकर दीर्घ जीवी बनें। ४. (उत) = और (नः) = हमारे (उक्षितम्) = सिक्त, गर्भस्थ बालक को (मा) = मत हिंसित कीजिए । वीर्यसेक्ता के परिपक्व वीर्यवाला होने पर गर्भस्थ सन्तान कभी विपन्न नहीं होती । ५. (नः) = हमारे (पितरम्) = पिता को (मा वधीः) = मत विपन्न कीजिए। पिता के चले जाने पर घर का रक्षण कैसे होगा? ६. (उत) = और (मातरं मा वधी:) = हमारी माता को भी सुरक्षित कीजिए। वस्तुतः उसे सन्तानों में कुल-धर्मों की परम्परा को सुरक्षित करना है, सन्तानों के चरित्र का निर्माण माता ने ही करना है। ७. हे रुद्र! आप (न:) = हमारे (प्रियाः तन्व:) = जिनका तर्पण किया गया है (प्रीञ् तर्पणे) उचित भोजनादि के द्वारा जिनका ठीक पोषण किया गया है, जिन्हें हमने स्वास्थ्य की कान्ति प्राप्त कराने का प्रयत्न किया है, उन हमारे प्रिय शरीरों को (मा रीरिषः) = मत हिंसित होने दीजिए। ८. 'रुद्र' राजा का सेनापति भी है जो शत्रुओं को रुलाने का कारण बनता है। युद्ध के अवसर पर उन 'योद्धा लोगों को चाहिए कि वृद्धों, बालकों, युद्ध न कर रहे युवकों, गर्भो, योद्धाओं के माता-पिताओं, सब स्त्रियों, युद्ध के देखनेवालों और दूतों को न मारें' [द०] । यदि ये लोग कैदी बनाये जा सकें तो इनको वश में रक्खें, परन्तु मारें नहीं। सेनापति 'कुत्स' है [कुथ हिंसायाम्] वह राष्ट्र के शत्रुओं का संहार करता है, परन्तु युद्ध में भाग न लेनेवालों को नहीं मारता ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु हम सबका रक्षण करनेवाले हैं। हमें भी चाहिए कि युद्ध उपस्थित होने पर भी युद्ध में भाग न लेनेवालों का हम संहार न करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    योद्ध्यांनी युद्धाच्या वेळी सर्व वृद्ध, बालके, युद्धातून माघार घेणारे सैनिक, जवान, गर्भवती, योद्ध्यांचे माता-पिता, सर्वांच्या स्त्रिया, युद्ध पाहणारे व त्याची व्यवस्था करणारे यांना व दूतांनाही मारू नये. शत्रूंकडील माणसांना मात्र सदैव आपल्या ताब्यात ठेवावे.

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    विषय

    राजपुरुषांनी काय करू नये, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (दोन राज्यात युद्ध होत असताना दोन्ही पक्षांनी काही नीति-नियम पाळले पाहिजेत. त्यासंबंधी एक नागरिक शत्रुपक्षातील सेवाधिकार्‍यास सांगत आहे) हे (रुद्र) सेनाधिकारी विद्यावान महोदय, आपण (न:) आमच्या (आमच्यानगर वा राज्यातील) (महान्तम्) उत्तम गुणवान पूजनीय व्यक्तींना (मा) (कधी:) मारू नका. (उत) तसेच (अर्भकम्) तान्ह्या बाळाला (मा) मारू नका. (न:) आमच्या (उक्षन्तम्) गर्भाधान करण्यास योग्य व्यक्तीस (मा) मारू नका (उत) तसेच (न:) आमच्या (उक्षितम्) मातेच्या पोटातील गर्भाला (मा) मारू नका. (न:) आमच्या (पितरम्) पालककर्ता वडिलांना (मा) मारू नका. (उत) तसेच (न:) आमच्या (मातरम्) आईला (मा) (वधी:) मारू नका. तसेच (न:) आमच्या (प्रिया:) घरातील प्रिय स्त्रियांचा (तन्व:) शरीराला (मा) (रीरिष:) मारू नका (लांछित, वा भ्रष्ट करू नका) (या मंत्रात सांगितलेले युद्धप्रसंगी पाळावयाचे नियम दोन्ही पक्षांना लागू होतात. विजयी वा विजित पक्ष यांनी विरोधी पक्षाच्या राज्यातील वृद्ध, बालकें, आई-वडील, सन्तानोत्पत्तीत समर्थ स्त्री-पुरुष यांची हत्या करू नये. शत्रुसैन्यातील सैनिकांशी युद्धक्षेत्रात लढावे, नागरिकांना त्रास देऊ नये) ॥15॥

    भावार्थ

    भावार्थ - दोन राज्यात युद्ध चालू असताना दोन्ही पक्षातील योद्धाजनांनी वृद्ध, बालकें, युद्धातून पळणारे, युवा, मातेच्या गर्भातील अर्भक, योद्धाचे आई-वडील, पत्नी व घरातील स्त्रिया, युद्ध पाहणारे अथवा शासनासाठी प्रबंध करणारे आणि शत्रूचे दूत यांना मारू नये, मात्र शत्रूच्या नातेवाईकांना (त्यास मदत करणार्‍यांना) कैद करून ठेवावे ॥15॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O commander of the army, kill not our revered elders, nor our children. Harm not our full grown youths, harm not our progeny in embryo. Slay not our rearing father, slay not our loving mother. Harm not the dear bodies of our women.

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    Meaning

    Rudra, commander of the army, strike not our seniors, nor our children, nor our young married men, nor the nation in the womb. Kill not our father, nor mother, nor our dear ones. Strike not our women, the sick, the delicate and the weak. They must not suffer any harm or injury.

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    Translation

    O terrible punisher, may you not kill any of us whether grown up or young child, married adult or the embryo in the womb. May you not kill our father, nor our mother. Please do no injury to our own dear bodies. (1)

    Notes

    Mahantam, वृद्धं, grown up. Arbhakam,बालं, child. Uksantam, from √उक्षू सेचने, सेक्तारं, वीर्यसेक्तारं, one ca pable of impregnating, i. e. one in prime of his youth. Ukşitam, सिक्तं,गर्भस्थं , the embryo in the womb. Priyāḥ tanvaḥ,प्रियाणि शरीराणि, our own dear bodies. gautaff, bodies in the form of sons and grandsons. Mã ririṣaḥ, मा हिंसी:, do not injure.

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    बंगाली (1)

    विषय

    রাজজনৈঃ কিং ন কার্য়মিত্যাহ ॥
    রাজপুরুষগণকে কী করা উচিত নহে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (রুদ্র) যুদ্ধের সেনার অধিকারী বিদ্বন্ পুরুষ! আপনি (নঃ) আমাদের (মহান্তম্) উত্তম গুণযুক্ত পূজ্য পুরুষকে (মা) না (উত) এবং (অর্ভকম্) ক্ষুদ্র ক্ষুদ্র পুরুষকে (মা) না, (নঃ) আমাদের (উক্ষন্তম্) গর্ভাধানকারীকে (মা) না (উত) এবং (নঃ) আমাদের (উক্ষিতম্) গর্ভকে (মা) না, (নঃ) আমাদের (পিতরম্) পালনকারী পিতাকে (মা) না (উত) এবং (নঃ) আমাদের (মাতরম্) মান্যকারিণী মাতাকেও (মা) না (বধীঃ) মারিবেন এবং (নঃ) আমাদের (প্রিয়াঃ) স্ত্রী আদির প্রিয় (তন্বঃ) শরীর গুলিকে (মা) না (রীরিষ) মারিবেন ॥ ১৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যোদ্ধাগণের উচিত যে, যুদ্ধের সময় বৃদ্ধ, বালক, যুদ্ধ হইতে সরিয়া যাওয়া সৈন্য, গর্ভ, যোদ্ধাদিগের মাতা-পিতা, সকল স্ত্রীগণ, যুদ্ধ দেখিবার বা ব্যাবস্থাকারীগণ এবং দূতদের মারিবে না কিন্তু শত্রু সম্পর্কীয় মনুষ্যগণকে সর্বদা বশে রাখিবে ॥ ১৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    মা নো॑ ম॒হান্ত॑মু॒ত মা নো॑ऽঅর্ভ॒কং মা ন॒ऽউক্ষ॑ন্তমু॒ত মা ন॑ऽউক্ষি॒তম্ । মা নো॑ বধীঃ পি॒তরং॒ মোত মা॒তরং॒ মা নঃ॑ প্রি॒য়াস্ত॒ন্বো᳖ রুদ্র রীরিষঃ ॥ ১৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    মা নো মহান্তমিত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রো দেবতা । নিচৃদার্ষী জগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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