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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 11
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    या ते॑ हे॒तिर्मी॑ढुष्टम॒ हस्ते॑ ब॒भूव॑ ते॒ धनुः॑। तया॒स्मान् वि॒श्वत॒स्त्वम॑य॒क्ष्मया॒ परि॑ भुज॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या। ते॒। हे॒तिः। मी॒ढु॒ष्ट॒म॒। मी॒ढु॒स्त॒मेति॑ मीढुःऽतम। हस्ते॑। ब॒भूव॑। ते॒। धनुः॑। तया॑। अ॒स्मान्। वि॒श्वतः॑। त्वम्। अ॒य॒क्ष्मया॑। परि॑। भु॒ज॒ ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ते हेतिर्मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनुः । तयास्मान्विश्वतस्त्वमयक्ष्मया परि भुज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    या। ते। हेतिः। मीढुष्टम। मीढुस्तमेति मीढुःऽतम। हस्ते। बभूव। ते। धनुः। तया। अस्मान्। विश्वतः। त्वम्। अयक्ष्मया। परि। भुज॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 11
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    पदार्थ -
    १. शत्रुओं के नाश व प्रजाओं के कल्याण के द्वारा यह राजा प्रजा पर सुखों की वर्षा करनेवाला है। हे (मीढुष्टम) = अधिक-से-अधिक सुखों के वर्षक राजन् ! (या) = जो (ते) = तेरा (हेतिः) = शत्रुओं का संहार करनेवाला वज्र [नि० २।२०] है और (ते हस्ते) = तेरे हाथ में जो (धनुः बभूव) = धनुष है। २. (तया) = उस (अयक्ष्मया) = [नास्ति यक्ष्मा यस्य] सब रोगों-उपद्रवों को करनेवाले अस्त्र से (अस्मान्) = हमें (विश्वतः) = सब ओर से (त्वं परिभुज) = आप परिपालित दूर कीजिए । ३. राजा प्रान्तभागों पर इस प्रकार सशस्त्र सैन्य को सन्नद्ध रखता है कि राष्ट्र में किसी प्रकार का शत्रुजनित प्रकोप न हो, शान्त- बीमारियों से रहित राज्य में ही प्रजा उन्नत हो पाती है।

    भावार्थ - भावार्थ- 'मीदुष्टम' वह राजा है जो हाथ में धनुष लिये हुए चारों ओर से होनेवाले आक्रमणों से राष्ट्र को सुरक्षित रखता [करता] है।

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