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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 23
    ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः देवता - मनुष्या देवताः छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    उप॒ प्रागा॒च्छस॑नं वा॒ज्यर्वा॑ देव॒द्रीचा॒ मन॑सा॒ दीध्या॑नः। अ॒जः पु॒रो नी॑यते॒ नाभि॑र॒स्यानु॑ प॒श्चात् क॒वयो॑ यन्ति रे॒भाः॥२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑। प्र। अ॒गा॒त्। शस॑नम्। वा॒जी। अर्वा॑। दे॒व॒द्रीचा॑। मन॑सा। दीध्या॑नः। अजः॑। पु॒रः। नी॒य॒ते॒। नाभिः॑। अ॒स्य। अनु॑। प॒श्चात्। क॒वयः॑। य॒न्ति॒। रे॒भाः ॥२३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपप्रागाच्छसनँवाज्यर्वा देवद्रीचा मनसा दीध्यानः । अजः पुरो नीयते नाभिरस्यानु पश्चात्कवयो यन्ति रेभाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उप। प्र। अगात्। शसनम्। वाजी। अर्वा। देवद्रीचा। मनसा। दीध्यानः। अजः। पुरः। नीयते। नाभिः। अस्य। अनु। पश्चात्। कवयः। यन्ति। रेभाः॥२३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 23
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    पदार्थ -
    १. (वाजी) = गतमन्त्र के अनुसार अरण्य प्रदेशों में उपासना के द्वारा शक्तिशाली बना हुआ यह पुरुष (शसनम्) = वासनाओं के संहार को (उपप्रागात्) = समीपता से सम्यक्तया प्राप्त करता है। वस्तुतः शक्ति के साथ ही गुणों का वास होता है और निर्बलता में वासनाएँ पनपती हैं। २. शक्तिशाली बनकर (अर्वा) = वासनाओं का संहार करनेवाला यह 'भार्गव' (देवद्रीचा) = [देवान् अञ्चति] दिव्य गुणों व दिव्य गुणों के पुञ्ज प्रभु के प्रति जानेवाले (मनसा) = मन से (दीध्यान:) = देदीप्यमान होता है। ३. इसके द्वारा अपने प्रत्येक कर्म में (अजः) = [अज गतिक्षेपणयोः] गति के द्वारा सब बुराइयों का संहार करनेवाला प्रभु (पुरः) = आगे (नीयते) = प्राप्त कराया जाता है, अर्थात् यह प्रत्येक कार्य के प्रारम्भ में प्रभु का स्मरण करता है । ४. यह प्रभु ही (अस्य) = इस भार्गव के जीवन का (नाभिः) = केन्द्र होता है, अर्थात् यह अपने जीवन में प्रभु को केन्द्र बनाकर चलता है। ५. (पश्चात्) = पीछे, अर्थात् प्रभु स्मरण के बाद (कवयः) = क्रान्तदर्शी, तत्त्वज्ञानी (रेभा:) = स्तोता लोग (अनुयन्ति) = अनुकूलता से चलते हैं, अर्थात् लोगों के अविरोध से जीवनयापन करते हैं। ये किन्हीं भी लोकविद्विष्ट कार्यों को नहीं करते।

    भावार्थ - भावार्थ- शक्तिशाली बनकर हम वासनाओं का संहार करें। प्रभु में मन लगाकर हम देदीप्यमान जीवनवाले हों। प्रत्येक कार्य को प्रभु स्मरण से प्रारम्भ करें। प्रभु ही हमारा केन्द्र हो। हम ज्ञानी स्तोता बनकर अनुकूलता से कार्यों को करनेवाले बनें।

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