Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 25
    ऋषिः - औतथ्यो दीर्घतमा ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - ब्राह्मी बृहती,आर्षी पङ्क्ति, स्वरः - मध्यमः, पञ्चमः
    2

    र॒क्षो॒हणो॑ वो बलग॒हनः॒ प्रोक्षा॑मि वैष्ण॒वान् र॑क्षो॒हणो॑ वो बलग॒हनोऽव॑नयामि वैष्ण॒वान् र॑क्षो॒हणो॑ वो बलग॒हनोऽव॑स्तृणामि वैष्ण॒वान् र॑क्षो॒हणौ॑ वां बलग॒हना॒ऽउप॑दधामि वैष्ण॒वी र॑क्षो॒हणौ॑ वां बलग॒हनौ॒ पर्यू॑हामि वैष्ण॒वी वै॑ष्ण॒वम॑सि वैष्ण॒वा स्थ॑॥२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    र॒क्षो॒हणः॑। र॒क्षो॒हन॒ इति॑ रक्षः॒ऽहनः॑। वः॒। ब॒ल॒ग॒हन॒ इति॑ बलग॒ऽहनः॑। प्र। उ॒क्षा॒मि॒। वै॒ष्ण॒वान्। र॒क्षो॒हणः॑। र॒क्षो॒हन॒ इति॑ रक्षः॒ऽहनः॑। वः॒। ब॒ल॒ग॒हन॒ इति॑ बलग॒ऽहनः॑। अव॑। न॒या॒मि॒। वै॒ष्ण॒वान्। र॒क्षो॒हणः॑। र॒क्षो॒हन॒ इति॑ रक्षः॒ऽहनः॑। वः॒। ब॒ल॒ग॒हन॒ इति॑ बलग॒ऽहनः॑। अव॑। स्तृ॒णा॒मि॒। वै॒ष्ण॒वान्। र॒क्षो॒हणौ॑। र॒क्षो॒हना॒विति॑ रक्षः॒ऽहनौ॑। वा॒म्। ब॒ल॒ग॒हना॒विति॑ बलग॒ऽहनौ॑। उप॑। द॒धा॒मि॒। वै॒ष्ण॒वीऽइति॑ वैष्ण॒वी। र॒क्षो॒हणौ॑। र॒क्षो॒हना॒विति॑ रक्षः॒ऽहनौ॑। वा॒म्। ब॒ल॒ग॒हना॒विति॑ बलग॒ऽहनौ॑। परि॑। ऊ॒हा॒मि॒। वैष्ण॒वीऽइति॑ वैष्ण॒वी। वै॒ष्ण॒वम्। अ॒सि॒। वै॒ष्ण॒वाः। स्थः॒। ॥२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रक्षोहणो वो वलगहनः प्रोक्षामि वैष्णवान्रक्षोहणो वो वलगहनोवनयामि वैष्णवान्रक्षोहणो वो वलगहनोवस्तृणामि वैष्णवान्रक्षोहणौ वाँवलगहनाऽउप दधामि वैष्णवी रक्षोहणौ वाँवलगहनौ पर्यूहामि वैष्णवी वैष्णवमसि वैष्णवा स्थ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    रक्षोहणः। रक्षोहन इति रक्षःऽहनः। वः। बलगहन इति बलगऽहनः। प्र। उक्षामि। वैष्णवान्। रक्षोहणः। रक्षोहन इति रक्षःऽहनः। वः। बलगहन इति बलगऽहनः। अव। नयामि। वैष्णवान्। रक्षोहणः। रक्षोहन इति रक्षःऽहनः। वः। बलगहन इति बलगऽहनः। अव। स्तृणामि। वैष्णवान्। रक्षोहणौ। रक्षोहनाविति रक्षःऽहनौ। वाम्। बलगहनाविति बलगऽहनौ। उप। दधामि। वैष्णवीऽइति वैष्णवी। रक्षोहणौ। रक्षोहनाविति रक्षःऽहनौ। वाम्। बलगहनाविति बलगऽहनौ। परि। ऊहामि। वैष्णवीऽइति वैष्णवी। वैष्णवम्। असि। वैष्णवाः। स्थः।॥२५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 25
    Acknowledgment

    पदार्थ -

    १. २३वें मन्त्र में राक्षसी वृत्तियों व काम के विध्वंस का उल्लेख था। उन्हीं के विषय में प्रभु कहते हैं कि ( वः ) = तुममें से ( रक्षोहणः ) = इन राक्षसी वृत्तियों का विध्वंस करनेवालों को ( वलगहनः ) = संवृत [ veiled ] रूप में गति करनेवाले इस काम का हनन करनेवालों को ( प्रोक्षामि ) = मैं ज्ञान से सिक्त करता हूँ। जो तुम ( वैष्णवान् ) = वासना को जीतकर व्यापक मनोवृत्तिवाले बने हो [ विष् व्याप्तौ ]। 

    २. ( वः ) = तुममें से ( रक्षोहणः ) = रोगकृमियों का संहार करनेवालों को तथा ( वलगहनः ) = काम का हनन करनेवाले राक्षसों को ( अवनयामि ) = इन बन्धनों से दूर ले-जाता हूँ, क्योंकि तुम ( वैष्णवान् ) = यज्ञिय जीवनवाले बने हो [ विष्णुर्वै यज्ञः ] 

    ३. ( रक्षोहणः ) =  अपने रमण के लिए औरों का क्षय करनेवालें राक्षसों का हनन करनेवाले ( वलगहनः ) = वासना को नष्ट करनेवाले ( वः ) = तुम्हें ( अवस्तृणामि ) = संसार के कष्टों से दूर आच्छादित करता हूँ, क्योंकि तुम ( वैष्णवान् ) = विष्णु—व्यापक प्रभु के उपासक बने हो। 

    ४. गृहस्थ में ( रक्षोहणौ ) =  रोगकृमियों का नाश करनेवाले ( वाम् ) = तुम दोनों ( वलगहनौ ) = वासना का हनन करनेवाले पति-पत्नी को ( उपदधामि ) = मैं अपने समीप स्थापित करता हूँ। ( वैष्णवी ) = वह वेदवाणी इन पति-पत्नी के हृदयों को विशाल बनानेवाली है। ( रक्षोहणौ ) = राक्षसी भावों का नाश करनेवाले ( वाम् ) = तुम दोनों ( वलगहनौ ) = कामघाती पति-पत्नी को ( पर्यूहामि ) = इस वेदवाणी के द्वारा [ परि ऊहामि = परि प्रापयामि ] सब सन्देहों के परे पहुँचाता हूँ। आपको आपके मार्ग का निश्चय कराता हूँ। ( वैष्णवी ) = यह वेदवाणी व्यापक ज्ञानवाली है। ( वैष्णवम् असि ) = वेद का ज्ञान यज्ञों व विष्णु का ज्ञान है। इनमें परमात्मा व यज्ञों का प्रतिपादन है।( वैष्णवाः स्थ ) = तुम सब उस व्यापक प्रभु के उपासक बनो।

    भावार्थ -

    भावार्थ — प्रभु हमें ज्ञान से अभिषिक्त करते हैं, वासनाओं के बन्धनों से दूर ले-जाते हैं, संसार के कष्टों से सुदूर सुरक्षित करते हैं, अपने समीप स्थापित करते हैं और सब सन्देहों से परे पहुँचाते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top