Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 28
    ऋषिः - तापस ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भूरिक अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
    1

    अग्ने॒ऽअच्छा॑ वदे॒ह नः॒ प्रति॑ नः सु॒मना॑ भव। प्र नो॑ यच्छ सहस्रजि॒त् त्वꣳ हि ध॑न॒दाऽअसि॒ स्वाहा॑॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। अच्छ॑। व॒द॒। इ॒ह। नः॒। प्रति॑। नः॒। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। भ॒व॒। प्र। नः॒। य॒च्छ॒। स॒ह॒स्र॒जि॒दिति॑ सहस्रऽजित्। त्वम्। हि। ध॒न॒दा॒ इति॑ धन॒ऽदाः। असि॒। स्वाहा॑ ॥२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने ऽअच्छा वदेह नः प्रति नः सुमना भव । प्र नो यच्छ सहस्रजित्त्वँ हि धनदा ऽअसि स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। अच्छ। वद। इह। नः। प्रति। नः। सुमना इति सुऽमनाः। भव। प्र। नः। यच्छ। सहस्रजिदिति सहस्रऽजित्। त्वम्। हि। धनदा इति धनऽदाः। असि। स्वाहा॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 28
    Acknowledgment

    पदार्थ -

    प्रजा राजा से कहती है कि १. ( अग्ने ) = राष्ट्र को आगे ले-चलनेवाले राजन् ! आप ( इह ) = इस राष्ट्र में ( नः अच्छ ) = हमारी ओर अर्थात् हमें लक्ष्य करके ( आवद ) = सब विषयों का उत्तम ज्ञान दो। राजा को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि राष्ट्र में प्रत्येक व्यक्ति ज्ञानी बने, राष्ट्रोन्नति की बातों को समझे और राष्ट्र के लिए सदा वैयक्तिक स्वार्थों को छोड़ने के लिए उद्यत हो। 

    २. ( नः प्रति ) = हमारे—प्रजा के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति ( सुमनाः ) = उत्तम मनवाले ( भव ) = होओ। राजा प्रजा को अपने पुत्रतुल्य समझे, उनकी रक्षा के लिए सदा उद्यत हो। 

    ३. हे ( सहस्रजित् ) = शतशः धनों के विजेता राजन्! तू ( नः प्रयच्छ ) = हमें उत्तम धन देनेवाला हो। राजा व्यापार आदि की इस प्रकार सुव्यवस्था करे कि राष्ट्र में कोई भी व्यक्ति अपनी जीविका कमाने में असमर्थ न रहे। हे राजन् ! ( त्वम् ) = आप ( हि ) = निश्चय से ( धनदाः ) = धन देनेवाले ( असि ) = हो। वस्तुतः राज्य-व्यवस्था के ठीक न होने पर धनार्जन बड़ा कठिन हो जाता है। मात्स्यन्याय में जिस प्रकार छोटी मछली के लिए जीना सम्भव नहीं होता उसी प्रकार राष्ट्र-व्यवस्था के ठीक न होने पर छोटे व्यापारी के लिए जीना कठिन हो जाता है। बड़े-बड़े पनपते हैं तो छोटे उजड़ते हैं। राष्ट्र में ‘अति सम्पन्न और अति विपन्न’ इन दो श्रेणियों का निर्माण होकर राष्ट्र की अधोगति होती है। 

    ४. ( स्वाहा ) = उत्तम व्यवस्था करनेवाले राजा के लिए हम ( स्व ) = धन का ( हा ) = त्याग करें, उचित कर आदि के देनेवाले हों।

    भावार्थ -

    भावार्थ — जैसे एक पिता सब पुत्रों का ध्यान करता है, इसी प्रकार राजा सारी प्रजा पर प्रीतिवाला हो और सभी को जीविकोपार्जन में सक्षम बनाये।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top