Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 29
    ऋषिः - तापस ऋषिः देवता - अर्य्यमादिमन्त्रोक्ता देवताः छन्दः - भूरिक आर्षी गायत्री, स्वरः - षड्जः
    2

    प्र नो॑ यच्छत्वर्य॒मा प्र पू॒षा बृह॒स्पतिः॑। प्र वाग्दे॒वी द॑दातु नः॒ स्वाहा॑॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र। नः॒। य॒च्छ॒तु॒। अ॒र्य्य॒मा। प्र। पू॒षा। प्र। बृह॒स्पतिः॑। प्र। वाक्। दे॒वी। द॒दा॒तु॒। नः॒। स्वाहा॑ ॥२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र नो यच्छत्वर्यमा प्र पूषा प्र बृहस्पतिः । प्र वाग्देवी ददातु नः स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। नः। यच्छतु। अर्य्यमा। प्र। पूषा। प्र। बृहस्पतिः। प्र। वाक्। देवी। ददातु। नः। स्वाहा॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 29
    Acknowledgment

    पदार्थ -

    गत मन्त्र में ( धनदाः ) = ‘हे राजन्! आप ही धन देनेवाले हो’ ऐसा कहा था। उसी को कुछ विस्तार से कहते हैं कि १. ( नः ) = हमें ( अर्यमा ) = [ अरीन् यच्छति ] शत्रुओं का नियमन करनेवाला राजा ( प्रयच्छतु ) = प्रकृष्ट धन देनेवाला हो। राजा हमें ऐसा धन दे जिसे प्राप्त करके हम काम-क्रोधादि शत्रुओं के विजेता बनें। यह धन हमें व्यसनी बनानेवाला न हो २. ( पूषा ) = सारे राष्ट्र का पोषण करनेवाला राजा ( प्र ) = हमें प्रकृष्ट धन प्राप्त कराये, अर्थात् प्रजा में प्रत्येक व्यक्ति को पोषण के लिए पर्याप्त धन अवश्य प्राप्त हो। 

    ३. ( बृहस्पतिः ) = सर्वोच्च दिशा का अधिपति [ ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिः ] ( नः ) = हमें उत्तम धन को ( प्र ) = ख़ूब ही प्राप्त करानेवाला हो। यह बृहस्पति अपना ज्ञानरूप उत्तम धन हमें दे, जिससे हमारा जीवन अधिकाधिक पवित्र हो। 

    ५. ( वाग्देवी ) = वाणी की अधिदेवता ( नः ) = हमें ( प्रददातु ) = ख़ूब ही ज्ञान देनेवाली हो। राष्ट्र में ऐसी सुव्यवस्था होनी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर सके। प्रत्येक व्यक्ति पर ‘सरस्वती’ की कृपा हो, अर्थात् राष्ट्र में कोई अविद्वान् न हो। 

    ६. ( स्वाहा ) = इस प्रकार से व्यवस्था करनेवाले राजा के लिए हम [ सु+आह ] प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और उचित कर देते हैं [ स्व+हा ]।

    भावार्थ -

    भावार्थ — राष्ट्र में कोई निर्धन व अतिधनी न हो। राष्ट्र में कोई अविद्वान् न हो। इस प्रकार से व्यवस्था करनेवाला राजा ही प्रशंसनीय है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top