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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 6
    ऋषिः - बृहस्पतिर्ऋषिः देवता - अश्वो देवता छन्दः - भूरिक जगती, स्वरः - निषादः
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    अ॒प्स्वन्तर॒मृत॑म॒प्सु भे॑ष॒जम॒पामु॒त प्रश॑स्ति॒ष्वश्वा॒ भव॑त वा॒जिनः॑। देवी॑रापो॒ यो व॑ऽऊ॒र्मिः प्रतू॑र्तिः क॒कुन्मा॑न् वाज॒सास्तेना॒यं वाज॑ꣳ सेत्॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प्स्वित्य॒प्ऽसु। अ॒न्तः। अ॒मृत॑म्। अ॒प्स्वित्य॒प्ऽसु। भे॒ष॒जम्। अ॒पाम्। उ॒त। प्रश॑स्ति॒ष्विति॒ प्रऽश॑स्तिषु। अश्वाः॑। भव॑त। वा॒जिनः॑। देवीः॑। आ॒पः॒। यः। वः॒। ऊ॒र्मिः। प्रतू॑र्त्तिरिति॒ प्रऽतू॑र्त्तिः। क॒कुन्मा॒निति॑ क॒कुत्ऽमा॑न्। वा॒ज॒सा इति॑ वाज॒ऽसाः। तेन॑। अ॒यम्। वाज॑म्। से॒त् ॥६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजमपामुत प्रशस्तिष्वश्वा भवत वाजिनः । देवीरापो यो वऽऊर्मिः प्रतूर्तिः ककुन्मान्वाजसास्तेनायं वाजँ सेत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अप्स्वित्यप्ऽसु। अन्तः। अमृतम्। अप्स्वित्यप्ऽसु। भेषजम्। अपाम्। उत। प्रशस्तिष्विति प्रऽशस्तिषु। अश्वाः। भवत। वाजिनः। देवीः। आपः। यः। वः। ऊर्मिः। प्रतूर्त्तिरिति प्रऽतूर्त्तिः। ककुन्मानिति ककुत्ऽमान्। वाजसा इति वाजऽसाः। तेन। अयम्। वाजम्। सेत्॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 6
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    पदार्थ -

    १. गत मन्त्र में शत्रु-आक्रमण से राष्ट्र की रक्षा का विषय वर्णित था। राष्ट्र-रक्षा के लिए वीर पुरुषों को जन्म देना माताओं का काम है, अतः कहते हैं कि ( अप्सु अन्तः ) =  [ आप् व्याप्तौ ] निरन्तर कर्मों में व्याप्त—व्यस्त रहनेवाली [ योषा वा अपः ] स्त्रियों में ही ( अमृतम् ) =  अमृत है, अर्थात् वे ही ऐसी सन्तानों को जन्म देती हैं जो असमय में रोगाक्रान्त होकर मृत्यु को प्राप्त नहीं हो जाती। ( अप्सु ) = इन निरन्तर क्रिया में व्याप्त, कर्मशील स्त्रियों में ही ( भेषजम् ) = औषध है, अर्थात् इनके सन्तानों को रोग नहीं सता पाते। इनके भोजन, रस व दूध में रोगकृमियों को नष्ट करने की शक्ति होती है। 

    २. ( उत ) = और ( अपाम् ) = इन कर्मों में व्याप्त स्त्रियों के ( प्रशस्तिषु ) = प्रशस्त कार्यों में ही तुम ( अश्वाः ) = उत्तम वीर्यवान् [ वीर्यं वा अश्वः ], सदा कर्मों में व्याप्त रहनेवाले ( वाजिनः ) = शक्तिशाली व [ वज गतौ ] गतिशील ( भवत ) = होवो, अर्थात् कर्मों में व्याप्त होनेवाली माताएँ शक्तिशाली, गतिशील सन्तानों को जन्म देती हैं। 

    ३. ( देवीः ) = हे दिव्य गुणोंवाली ( आपः ) = उत्तम कर्मों में व्यापनेवाली माताओ! ( यः ) = जो ( वः ) = तुम्हारी ( ऊर्मिः ) = लहर—तरङ्ग व उत्साह है, ( प्रतूर्तिः ) = [ प्रत्वरणः ] वेग है तथा ( ककुन्मान् ) = शिखरवाला, शिखर पर पहुँचने की भावना है ( तेन ) = उससे ( अयम् वाजसाः ) = यह संग्रामों का विजय करनेवाला ( वाजम् सेत् ) = संग्राम का प्रबन्ध करे। माताएँ ऐसी ही सन्तानों को जन्म दें जो तरंगित हृदयोंवाले, अर्थात् उत्साहमय हृदयोंवाले, वेगवाले, न मरियल, शिखर तक पहुँचने की भावनावाले हों। ऐसी ही सन्तान राष्ट्र की रक्षा करने में समर्थ होगी।

    भावार्थ -

    भावार्थ — माताएँ वीर सन्तानों को जन्म देनेवाली हों।

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