यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 29
ऋषिः - तापस ऋषिः
देवता - अर्य्यमादिमन्त्रोक्ता देवताः
छन्दः - भूरिक आर्षी गायत्री,
स्वरः - षड्जः
79
प्र नो॑ यच्छत्वर्य॒मा प्र पू॒षा बृह॒स्पतिः॑। प्र वाग्दे॒वी द॑दातु नः॒ स्वाहा॑॥२९॥
स्वर सहित पद पाठप्र। नः॒। य॒च्छ॒तु॒। अ॒र्य्य॒मा। प्र। पू॒षा। प्र। बृह॒स्पतिः॑। प्र। वाक्। दे॒वी। द॒दा॒तु॒। नः॒। स्वाहा॑ ॥२९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र नो यच्छत्वर्यमा प्र पूषा प्र बृहस्पतिः । प्र वाग्देवी ददातु नः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र। नः। यच्छतु। अर्य्यमा। प्र। पूषा। प्र। बृहस्पतिः। प्र। वाक्। देवी। ददातु। नः। स्वाहा॥२९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
विषयः
राजा मात्रादयश्च प्रजाः किं किमुपदिशेयुरित्याह॥
अन्वयः
यथाऽर्यमा नोऽस्मभ्यं सुशिक्षां प्रयच्छतु, यथा पूषा पुष्टिं प्रददातु, यथा बृहस्पतिः स्वाहा प्रार्पयतु, तथा वाग्देवी माताऽस्मभ्यं विद्यां ददातु॥२९॥
पदार्थः
(प्र) (नः) अस्मभ्यम् (यच्छतु) ददातु (अर्य्यमा) न्यायाधीशः (प्र) (पूषा) पोषकः (प्र) (बृहस्पतिः) विद्वान् (प्र) (वाक्) विद्यासुशिक्षितवाणीयुक्ता (देवी) देदीप्यमानाऽध्यापिका माता (ददातु) (नः) अस्मभ्यम् (स्वाहा) सत्यविद्यायुक्तां वाणीम्। अयं मन्त्रः (शत॰५। २। २। ११) व्याख्यातः॥२९॥
भावार्थः
अत्राऽऽह जगदीश्वरः। राजादयः सर्वे पुरुषा मात्रादिस्त्रियश्च सर्वदा प्रजाः पुत्रादीन् प्रति सत्युमपदेशं कुर्य्युर्विद्यां सुशिक्षां च सततं ग्राहयेयुर्यतः प्रजाः सदाऽऽनन्दिताः स्युः॥२९॥
विषयः
राजा मात्रादयश्च प्रजाः किं किमुपदिशेयुरित्याह ॥
सपदार्थान्वयः
यथाऽर्यमा न्यायधीशः नः अस्मभ्यं सुशिक्षां प्रयच्छतु ददातु, यथा पूषा पोषक: पुष्टिं प्रददातु, यथा बृहस्पतिः विद्वान् स्वाहा सत्यविद्यायुक्तां वाणींप्रार्पयतु, तथा वाग् विद्यासुशिक्षितवाणीयुक्ता देवी=देदीप्यमानाऽध्यापिका माता [नः]=अस्मभ्यं विद्यां [प्र] ददातु ॥ ९ ।२९ ।। [अर्यमा नः=अस्मभ्यं सुशिक्षां प्रयच्छतु,.......बृहस्पतिः स्वाहा प्रार्पयतु, वाग् देवी=माता [नः] अस्मभ्यं विद्यां [प्र] ददातु]
पदार्थः
(प्र) (नः) अस्मभ्यम् (यच्छतु) ददातु (अर्य्यमा) न्यायाधीश: (प्र) (पूषा) पोषक: (प्र) (बृहस्पतिः) विद्वान् (प्र) (वाक्) विद्यासुशिक्षितवाणीयुक्ता (देवी) देदीप्यमानाऽध्यापिका माता (ददातु) (नः) (स्वाहा) सत्यविद्यायुक्तां वाणीम् ॥अयं मन्त्रः शत० ५ । २ । २ । ११ व्याख्यातः ॥ २९॥
भावार्थः
अत्राऽऽह जगदीश्वरः--राजादयः सर्वे पुरुषा मात्रादिस्त्रियश्च सर्वदा प्रजाः पुत्रादीन् प्रति सत्यमुपदेशं कुर्य्युर्विद्यां सुशिक्षां च सततं ग्राहयेयुर्यतः प्रजाः सदाऽऽनन्दिताः स्युः ॥ ९। २९॥
विशेषः
तापसः । अर्य्यमादिमन्त्रोक्ताः=न्यायाधीशादयः ॥ भुरिगार्षी गायत्री । षड्जः ॥
हिन्दी (4)
विषय
प्रजा और सन्तानों से राजा और माता आदि कैसे वर्तें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ
जैसे (अर्य्यमा) न्यायाधीश (नः) हमारे लिये उत्तम शिक्षा (प्रयच्छतु) देवे, जैसे (पूषा) पोषण करने वाला शरीर और आत्मा की पुष्टि की शिक्षा (प्र) अच्छे प्रकार देवे, जैसे (बृहस्पतिः) विद्वान् (प्र) (स्वाहा) अत्युत्तम विद्या देवे, जैसे (वाक्) उत्तम विद्या सुशिक्षा सहित वाणीयुक्त (देवी) प्रकाशमान पढ़ाने वाली माता हमारे लिये सत्यविद्यायुक्त वाणी का (प्रददातु) उपदेश सदा किया करे॥२९॥
भावार्थ
यहां जगदीश्वर उपदेश करता है कि राजा आदि सब पुरुष और माता आदि स्त्री सदा प्रजा और पुत्रादिकों को सत्य-सत्य उपदेश कर विद्या और अच्छी शिक्षा को निरन्तर ग्रहण करावें, जिससे प्रजा और पुत्र-पुत्री आदि सदा आनन्द में रहें॥२९॥
विषय
निर्धनता व अज्ञान का निरसन
पदार्थ
गत मन्त्र में ( धनदाः ) = ‘हे राजन्! आप ही धन देनेवाले हो’ ऐसा कहा था। उसी को कुछ विस्तार से कहते हैं कि १. ( नः ) = हमें ( अर्यमा ) = [ अरीन् यच्छति ] शत्रुओं का नियमन करनेवाला राजा ( प्रयच्छतु ) = प्रकृष्ट धन देनेवाला हो। राजा हमें ऐसा धन दे जिसे प्राप्त करके हम काम-क्रोधादि शत्रुओं के विजेता बनें। यह धन हमें व्यसनी बनानेवाला न हो २. ( पूषा ) = सारे राष्ट्र का पोषण करनेवाला राजा ( प्र ) = हमें प्रकृष्ट धन प्राप्त कराये, अर्थात् प्रजा में प्रत्येक व्यक्ति को पोषण के लिए पर्याप्त धन अवश्य प्राप्त हो।
३. ( बृहस्पतिः ) = सर्वोच्च दिशा का अधिपति [ ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिः ] ( नः ) = हमें उत्तम धन को ( प्र ) = ख़ूब ही प्राप्त करानेवाला हो। यह बृहस्पति अपना ज्ञानरूप उत्तम धन हमें दे, जिससे हमारा जीवन अधिकाधिक पवित्र हो।
५. ( वाग्देवी ) = वाणी की अधिदेवता ( नः ) = हमें ( प्रददातु ) = ख़ूब ही ज्ञान देनेवाली हो। राष्ट्र में ऐसी सुव्यवस्था होनी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर सके। प्रत्येक व्यक्ति पर ‘सरस्वती’ की कृपा हो, अर्थात् राष्ट्र में कोई अविद्वान् न हो।
६. ( स्वाहा ) = इस प्रकार से व्यवस्था करनेवाले राजा के लिए हम [ सु+आह ] प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और उचित कर देते हैं [ स्व+हा ]।
भावार्थ
भावार्थ — राष्ट्र में कोई निर्धन व अतिधनी न हो। राष्ट्र में कोई अविद्वान् न हो। इस प्रकार से व्यवस्था करनेवाला राजा ही प्रशंसनीय है।
विषय
न्यायाधीश आदि के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(अर्यमा ) अर्यमा, न्यायाधीश ( पूषा ) राष्ट्र का पोषक, सब को वेतनादि देने हारा, भागधुक् नामक वेतनाध्यक्ष या कराध्यक्ष ( बृहस्पतिः ) वेद का विद्वान् और ये सब ( प्रयच्छतु ) हमें उत्तम पदार्थ प्रदान करें और ( वाग् देवी ) वाणी, देवी अथवा विद्या से युक्त (देवी) माता (नः) हमें ( स्वाहा ) उत्तम रीति से ज्ञान और पुष्टि ( प्र ददातु ) प्रदान
करे ॥ शत० ५२ ।२ । ११ ॥
टिप्पणी
२९ ० बृहस्पतिः प्र सरस्वती । प्र वाग्' ० इति काण्व० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
तापस ऋषिः । अर्यमादयो देवताः । भुरिगार्षी गायत्री । षड्जः ॥
विषय
प्रजा और सन्तानों को राजा और माता आदि क्या-क्या उपदेश करें, यह उपदेश किया है॥
भाषार्थ
जैसे (अर्यमा) न्यायाधीश (नः) हमें सुशिक्षा (प्रयच्छतु) प्रदान करे, जैसे (पूषा) पोषक वैश्य पुष्टि प्रदान करे, जैसे (बृहस्पतिः) विद्वान ब्राह्मण (स्वाहा) सत्य विद्यायुक्त वाणी अर्पित करें, वैसे (वाक्) विद्या और सुशिक्षा वाली वाणी से युक्त, (देवी) विद्या से देदीप्यमान अध्यापिका माता [नः] हमें विद्या ([प्र] ददातु) प्रदान करे ॥ ९। २९ ॥
भावार्थ
यह जगदीश्वर उपदेश करता है कि राजा आदि सब पुरुष और माता आदि स्त्रियाँ सदा प्रजा और पुत्र आदिकों के प्रति सत्य उपदेश करें, विद्या और सुशिक्षा को सदा ग्रहण करावें जिससे प्रजा सदा आनन्दित रहे ॥ ९। २९॥
प्रमाणार्थ
इस मन्त्र की व्याख्या (५ । २ । २ । ११) में की गई है ॥९। २९॥
भाष्यसार
१. राजा का प्रजा को उपदेश--राजा उपदेश करता है कि हे प्रजा जनो! मैं तुम्हें उत्तम शिक्षा प्रदान करता हूँ, पोषक बनकर तुम्हारा पोषण करता है, सत्य विद्यायुक्त वाणी से सत्य उपदेश करता हूँ, वैसे तुम भी किया करो। जिससे तुम सदा आनन्दित रहो। २. माता का पुत्रों को उपदेश--माता प्रथम विद्या और सुशिक्षा से युक्त वाणी वाली हो, दिव्य गुणों से देदीप्यमान देवी हो। वह अपने पुत्र आदिकों को सत्य उपदेश करती है। विद्या और सुशिक्षा को ग्रहण कराती है। जिससे प्रजा (सन्तान) सदा आनन्दित रहती है ॥९ । २९ ॥
मराठी (2)
भावार्थ
जगदीश्वर असा उपदेश करतो की राजपुरुषांनी प्रजेला व मातांनी आपल्या पुत्रांना सत्य उपदेश करून विद्या व चांगले शिक्षण द्यावे. ज्यामुळे प्रजा व संतती सदैव आनंदात राहतील.
विषय
प्रजेशी राजाने आणि संतानाशी मातेने कशाप्रकारे वर्तावे, पुढील मंत्रात हा विषय प्रतिपादित आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - राज्याचा (अर्य्यमा) न्यायाधीश (न:) आम्हाला उत्तम ज्ञान (प्रयच्छतु) देवो. (पूषा) पोषण करणारा पोषक राजा आमच्या शरीर व आत्म्यात शक्ती (प्र) चांगल्याप्रकारे देवो. (बृहस्पति:) विद्वान (प्र) (स्वाहा) आम्हाला अत्युत्तम विद्या देवो. त्याचप्रमाणे (वाक्) उत्तमविद्या जाणणारी व उत्तमवाणी असलेली (देवी) आम्हास उत्तम शिक्षण देणारी माता आम्हास सत्यविद्यायुक्त वाणीद्वारे (प्रददातु) सदा उपदेश देत जावो. ॥29॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्राद्वारे जगदीश्वर उपदेश करीत आहे की राजा आणि राजपुरुष यांनी प्रजेला, तसेच माता आदी स्त्रीजनांनी पुत्रादींना नेहमी सत्य उपदेश द्यावा आणि त्यांना सतत चांगली विद्या व चांगले शिक्षण, संस्कार देत जाने, ज्यामुळे प्रजाजन आणि पुत्र-पुत्री आदी संतानें सदैव आनंदी राहतील. ॥29॥
इंग्लिश (3)
Meaning
As the Lord of Justice gives us good instruction, as the nourisher gives us strength of body and soul, just as a learned man gives us knowledge, so let the mother, a sweet-tongued and nice instructor impart knowledge unto us.
Meaning
May Aryama, man of justice (Kshatriya) give us justice for all. May Pusha (Vaishya), producer of food and wealth, give us food and prosperity. May Brihaspati (Brahmana) man of knowledge, wisdom and virtue, give us knowledge and the sacred word. And may the pious and brilliant women of knowledge and vision give us instruction in the meaning of life and conduct. All these and all this be in truth of word and action.
Translation
May the impartial adjudicating Lord, the nourisher Lord, the Lord Supreme grant and the speech divine give gifts to us. Svaha. (2)
Notes
Aryama, the impartial adjudicating Lord. Pusa, the nourisher Lord.
बंगाली (1)
विषय
রাজা মাত্রাদয়শ্চ প্রজাঃ কিং কিমুপদিশেয়ুরিত্যাহ ॥
প্রজাও সন্তানদিগের সহিত রাজা ও মাতাদি কীভাবে ব্যবহার করিবে, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- যে রূপ (অর্য়্যমা) ন্যায়াধীশ (নঃ) আমাদের জন্য উত্তম শিক্ষা (প্রয়চ্ছতু) দিবেন, যেরূপ (পূষা) পোষণকারী শরীর এবং আত্মার পুষ্টির শিক্ষা (প্র) সম্যক্ প্রকার দিবেন, যেরূপ (বৃহস্পতিঃ) বিদ্বান্ (প্র) (স্বাহা) অত্যুত্তম বিদ্যা প্রদান করিবেন সেইরূপ (বাক্) উত্তম বিদ্যা সুশিক্ষা সহিত বাণী যুক্ত (দেবী) প্রকাশমান অধ্যয়নকারিণী মাতা আমাদের জন্য সত্যবিদ্যাযুক্ত বাণীর (প্রদদাতু) উপদেশ সর্বদা করিতে থাকিবেন ॥ ২ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এখানে জগদীশ্বর উপদেশ করিতেছেন যে, রাজাদি সকল পুরুষ ও মাতাদি নারী সর্বদা প্রজা ও পুত্রাদিগণকে সত্য সত্য উপদেশ করিয়া বিদ্যা ও উত্তম শিক্ষাকে নিরন্তর গ্রহণ করাইবেন যাহাতে প্রজা এবং পুত্র-পুত্রী ইত্যাদি সর্বদা আনন্দে থাকে ॥ ২ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
প্র নো॑ য়চ্ছত্বর্য়॒মা প্র পূ॒ষা বৃহ॒স্পতিঃ॑ ।
প্র বাগ্দে॒বী দ॑দাতু নঃ॒ স্বাহা॑ ॥ ২ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
প্র ন ইত্যস্য তাপস ঋষিঃ । অর্য়্যমাদিমন্ত্রোক্তা দেবতাঃ । ভুরিগার্ষী গায়ত্রী ছন্দঃ । ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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