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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 13

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 13/ मन्त्र 5
    सूक्त - अप्रतिरथः देवता - इन्द्रः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - एकवीर सूक्त

    ब॑लविज्ञा॒यः स्थवि॑रः॒ प्रवी॑रः॒ सह॑स्वान्वा॒जी सह॑मान उ॒ग्रः। अ॒भिवी॑रो अ॒भिष॑त्वा सहो॒जिज्जैत्र॑मिन्द्र॒ रथ॒मा ति॑ष्ठ गो॒विद॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब॒ल॒ऽवि॒ज्ञा॒यः। स्थवि॑रः। प्रऽवी॑रः। सह॑स्वान्। वा॒जी। सह॑मानः। उ॒ग्रः। अ॒भिऽवी॑रः। अ॒भिऽस॑त्वा। स॒हः॒ऽजित्। जैत्र॑म्। इ॒न्द्र॒। रथ॑म्। आ। ति॒ष्ठ॒। गो॒ऽविद॑न् ॥१३.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बलविज्ञायः स्थविरः प्रवीरः सहस्वान्वाजी सहमान उग्रः। अभिवीरो अभिषत्वा सहोजिज्जैत्रमिन्द्र रथमा तिष्ठ गोविदम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बलऽविज्ञायः। स्थविरः। प्रऽवीरः। सहस्वान्। वाजी। सहमानः। उग्रः। अभिऽवीरः। अभिऽसत्वा। सहःऽजित्। जैत्रम्। इन्द्र। रथम्। आ। तिष्ठ। गोऽविदन् ॥१३.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 13; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    १. गतमन्त्र का उपासक (बलविज्ञायः) = बल के कारण प्रसिद्ध होता है [Known for his vigour] (गोविदन्) = वेदवाणियों का ज्ञाता बनकर (जैत्रं रथम् आतिष्ठ) = विजयशील शरीर-रथ पर आसीन हो। तुझमें बल व ज्ञान का समन्वय हो-यह समन्वय तुझे विजयी बनाए। (अभिवीरः अभिषत्वा) [सत्वा] = तू वीरता की ओर चलनेवाला हो और सत्त्वगुण की ओर चलनेवाला हो ज्ञान की ओर । तूने वीरता व ज्ञान दोनों को अपनाना है। २. (स्थविर:) = स्थिरमति का बनना है और (प्रवीरः) = खूब वीर बनना है। (सहस्वान्) = ज्ञानी बनकर सहनशक्तिवाला [Toleration] बनना है और (वाजी) = शक्तिशाली होना है। (सहमान:) = ज्ञान के द्वारा सहनशक्तिवाला व (उग्र:) = तेजस्वी बनना है। संक्षेप में (सहोजित्) = तूने सहस् के द्वारा शत्रुओं का विजेता होना है।

    भावार्थ - हम अपने जीवनों में बल व ज्ञान का समन्वय करते हुए सदा विजयी बनें।

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