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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 19

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 19/ मन्त्र 3
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१९

    नामा॑नि ते शतक्रतो॒ विश्वा॑भिर्गी॒र्भिरी॑महे। इन्द्रा॑भिमाति॒षाह्ये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नामा॑नि । ते॒ । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । विश्वा॑भि: । गी॒ऽभि: । ई॒म॒हे॒ ॥ इन्द्र॑ । अ॒भि॒मा॒ति॒ऽसह्ये॑ ॥१९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नामानि ते शतक्रतो विश्वाभिर्गीर्भिरीमहे। इन्द्राभिमातिषाह्ये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नामानि । ते । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । विश्वाभि: । गीऽभि: । ईमहे ॥ इन्द्र । अभिमातिऽसह्ये ॥१९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 19; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    १. हे (शतक्रतो) = अनन्तशक्ति व प्रज्ञानवाले प्रभो! (ते नामानि) = आपके नामों को (विश्वाभिः गीर्भिः) = सब वाणियों के द्वारा (ईमहे) = चाहते हैं-संकीर्तित करते हैं। २. हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो। (अभिमातिषाह्यो) = पाप व अभिमानरूप शत्रु के पराभव के लिए हम विविध वाणियों से आपके नामों का कीर्तन करते हैं।

    भावार्थ - प्रभु-नाम-कीर्तन हमें अभिमानरूप शत्रु का पराभव करने में समर्थ करे ।

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