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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 19

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 19/ मन्त्र 4
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१९

    पु॑रुष्टु॒तस्य॒ धाम॑भिः श॒तेन॑ महयामसि। इन्द्र॑स्य चर्षणी॒धृतः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒रु॒ऽस्तु॒तस्य॑ । धाम॑ऽभि: । श॒तेन॑ । म॒ह॒या॒म॒सि॒ । इन्द्र॑स्य । च॒र्ष॒णि॒ऽधृत॑: ॥१९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुरुष्टुतस्य धामभिः शतेन महयामसि। इन्द्रस्य चर्षणीधृतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुरुऽस्तुतस्य । धामऽभि: । शतेन । महयामसि । इन्द्रस्य । चर्षणिऽधृत: ॥१९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 19; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    १. (पुरुष्टुतस्य) = [पुरु स्तुतं यस्य] पालक व पूरक है स्तवन जिनका उन पुरुष्टुत प्रभु का हम (महयामसि) = पूजन करते हैं, जिससे शतेन (धामभिः) = शतवर्षपर्यन्त स्थिर रहनेवाले तेजों को हम प्राप्त कर सकें। इन तेजों के हेतु से ही हम प्रभु का पूजन करते हैं। २. (इन्द्रस्य) = सर्वशक्तिमान् (चर्षणीधृत:) = सब मनुष्यों का धारण करनेवाले प्रभु के पूजन से हम आजीवन तेजस्वी बने रहेंगे।

    भावार्थ - प्रभु का पूजन हमें शतवर्ष के जीवन में तेजस्वी बनाए रखता है।

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