Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 57

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 57/ मन्त्र 16
    सूक्त - मेध्यातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती सूक्तम् - सूक्त-५७

    कण्वे॑भिर्धृष्ण॒वा धृ॒षद्वाजं॑ दर्षि सह॒स्रिण॑म्। पि॒शङ्ग॑रूपं मघवन्विचर्षणे म॒क्षू गोम॑न्तमीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒ण्वे॑भि: । धृ॒ष्णो॒ इति॑ । आ । धृ॒षत् । वाज॑म् । द॒र्षि॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् ॥ पि॒शङ्ग॑ऽरूपम् । म॒घ॒ऽव॒न् । वि॒ऽच॒र्ष॒णे॒ । म॒क्षू । गोम॑न्तम् । ई॒म॒हे॒ ॥५७.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कण्वेभिर्धृष्णवा धृषद्वाजं दर्षि सहस्रिणम्। पिशङ्गरूपं मघवन्विचर्षणे मक्षू गोमन्तमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कण्वेभि: । धृष्णो इति । आ । धृषत् । वाजम् । दर्षि । सहस्रिणम् ॥ पिशङ्गऽरूपम् । मघऽवन् । विऽचर्षणे । मक्षू । गोमन्तम् । ईमहे ॥५७.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 57; मन्त्र » 16

    पदार्थ -
    ज्ञान और शक्ति को प्राप्त करके मानव हित में तत्पर 'न-मेध' अगले सूक्त के प्रथम दो मन्त्रों का ऋषि है। इसी उद्देश्य से स्वास्थ्य का पूर्ण ध्यान करनेवाला 'जमदग्नि' [जमत्

    भावार्थ - अग्नि-जिसकी जाठराग्नि मन्द नहीं] तीसरे व चौथे मन्त्र का ऋषि है -

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top