अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 3
सु॑त॒पाव्ने॑ सु॒ता इ॒मे शुच॑यो यन्ति वी॒तये॑। सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः ॥
स्वर सहित पद पाठसु॒त॒ऽपाव्ने॑ । सु॒ता: । इ॒मे । शुच॑य: । य॒न्ति॒ । वी॒तये॑ ॥ सोमा॑स: । दधि॑ऽआशिर: ॥६९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
सुतपाव्ने सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये। सोमासो दध्याशिरः ॥
स्वर रहित पद पाठसुतऽपाव्ने । सुता: । इमे । शुचय: । यन्ति । वीतये ॥ सोमास: । दधिऽआशिर: ॥६९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 3
विषय - "शुचयः-दध्याशिरः' सोमासः
पदार्थ -
१. गतमन्त्र के अनुसार जब इन्द्रियों पर वासनाओं का आक्रमण न होगा तब हम सोम की रक्षा कर पाएंगे। (इमे सुता:) = ये उत्पन्न हुए-हुए सोमकण (सुतपाव्ने) = उत्पन्न हुए-हुए सोमकणों की रक्षा करनेवाले के लिए (शुचय:) = पवित्रता करनेवाले होते हैं। सोमकणों का असंयम ही आर्थिक अपवित्रता की ओर ले-जाता है। २. ये सुरक्षित सोमकण वीतये-[वी to shine] हमारे जीवन को चमकाने के लिए (यन्ति) = हमें प्राप्त होते हैं। इनके द्वारा ज्ञानाग्नि दीप्त हो उठती है। ये (सोमास:) = सोमकण (दध्याशिरः) = [धत्ते, आशृणाति] हमारे शरीरों को धारण करते हैं और सब दोषों को शीर्ण कर देते हैं।
भावार्थ - हम उत्पन्न सोमकणों का रक्षण करके पवित्र मनवाले [शुच्यः], दीस मस्तिष्कवाले [वीतये] व सबल शरीरवाले बनें।
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