Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 69

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 2
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९

    यस्य॑ सं॒स्थे न वृ॒ण्वते॒ हरी॑ स॒मत्सु॒ शत्र॑वः। तस्मा॒ इन्द्रा॑य गायत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । स॒म्ऽस्थे । न । वृ॒ण्वते॑ । हरी॒ इति॑ । स॒मत्ऽसु॑ । शत्र॑व: ॥ तस्मै॑ । इन्द्रा॑य । गा॒य॒त॒ ॥६९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य संस्थे न वृण्वते हरी समत्सु शत्रवः। तस्मा इन्द्राय गायत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । सम्ऽस्थे । न । वृण्वते । हरी इति । समत्ऽसु । शत्रव: ॥ तस्मै । इन्द्राय । गायत ॥६९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    १. (यस्य) = जिसके (संस्थे) = हृदयदेश में स्थित होने पर (शत्रवः) = काम-क्रोध आदि शत्रु (समत्सु) = अध्यात्म-संग्रामों में (हरी) = ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप अश्वों को न वृपवते आक्रमण के लिए नहीं (चुनते) = इनपर आक्रमण नहीं करते-इनपर आवरण के रूप में नहीं आ जाते। (तस्मा इन्द्राय गायत) = उस प्रभु का मिलकर गायन करो। २. प्रभु-स्मरण हमें काम आदि के आक्रमण से बचाता है। जिस घर में परिवार के सदस्य मिलकर प्रभु का गायन करते हैं, वहाँ शरीर रोगादि से आक्रान्त नहीं होते और मन काम-क्रोध का शिकार नहीं होता।

    भावार्थ - प्रभु-स्मरण होने पर इन्द्रियाँ काम-क्रोध आदि से आक्रान्त नहीं होती।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top