Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 69

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 7
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९

    अक्षि॑तोतिः सनेदि॒मं वाज॒मिन्द्रः॑ सह॒स्रिण॑म्। यस्मि॒न्विश्वा॑नि॒ पौंस्या॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अक्षि॑तऽऊति: । स॒ने॒त् । इ॒मम् । वाज॑म् । इन्द्र॑: । म॒ह॒स्रिण॑म् ॥ यस्मि॑न् । विश्वा॑नि । पौंस्या॑ ॥६९.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अक्षितोतिः सनेदिमं वाजमिन्द्रः सहस्रिणम्। यस्मिन्विश्वानि पौंस्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अक्षितऽऊति: । सनेत् । इमम् । वाजम् । इन्द्र: । महस्रिणम् ॥ यस्मिन् । विश्वानि । पौंस्या ॥६९.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    १. (अक्षितोति:) = यह न नष्ट हुए-हुए रक्षणवाला-सोम-रक्षण द्वारा अपनी रक्षा करनेवाला (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (इमम्) = इस (सहस्त्रिणम्) = [स+हस्] सदा हास्य व प्रसन्नता देनेवाले वाजम् अन्न का (सनेत्) = सेवन करे । (यस्मिन्) = जिस सात्त्विक अन्न में (विश्वानि पौंस्या) = सब बल हैं। २. हम सात्त्विक अन्नों का सेवन करते हुए अपनी शक्ति का वर्धन करें और सदा अपना रक्षण करनेवाले हों।

    भावार्थ - हम सात्त्विक अन्न का सेवन करें। इसप्रकार अपने बलों का वर्धन करके अनष्ट रक्षणवाले हों।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top