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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 69

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 1
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९

    स घा॑ नो॒ योग॒ आ भु॑व॒त्स रा॒ये स पुरं॑ध्याम्। गम॒द्वाजे॑भि॒रा स नः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । घ॒ । न॒: । योगे॑ । आ । भु॒व॒त् । स: । रा॒ये । स: । पुर॑म्ऽध्याम् ॥ गम॑त् । वाजे॑भि: । आ । स: । न॒: ॥६९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स घा नो योग आ भुवत्स राये स पुरंध्याम्। गमद्वाजेभिरा स नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । घ । न: । योगे । आ । भुवत् । स: । राये । स: । पुरम्ऽध्याम् ॥ गमत् । वाजेभि: । आ । स: । न: ॥६९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    १. (स:) = वे प्रभु (घा) = निश्चय से (न:) = हमारे (योगे) = अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति के विषय में (आभुवत्) = साधक होते हैं। प्रभु के अनुग्रह से ही हमें सब आवश्यक वस्तुएँ मिलती है। (सः) = वे प्रभु (राये) = धन के लिए [आभुवत्-] सहायक होते हैं। (स:) = वे प्रभु ही (पुरन्ध्याम्) = पालन व पूरण करनेवाली बुद्धि की प्राप्ति में सहायक होते हैं-प्रभु ही हमारे लिए बुद्धि प्राप्त कराते हैं। २. (स:) = वे प्रभु नः हमें वाजेभिः सात्त्विक अन्नों व बलों के साथ (आगमत्) = प्राप्त होते हैं।

    भावार्थ - प्रभु ही हमें सब अप्राप्त वस्तुओं को प्राप्त कराते हैं। वे ही धन, बुद्धि व शक्ति देते हैं|

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