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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 93

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 93/ मन्त्र 3
    सूक्त - प्रगाथः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-९३

    त्वमी॑शिषे सु॒ताना॒मिन्द्र॒ त्वमसु॑तानाम्। त्वं राजा॒ जना॑नाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । ई॒षि॒षे॒ । सु॒तानाम्॑ । इन्द्र॑ । त्वम् । असु॑तानाम् ॥ त्वम् । राजा॑ । जना॑नाम् ॥९३.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमीशिषे सुतानामिन्द्र त्वमसुतानाम्। त्वं राजा जनानाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । ईषिषे । सुतानाम् । इन्द्र । त्वम् । असुतानाम् ॥ त्वम् । राजा । जनानाम् ॥९३.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 93; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    १. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (त्वम्) = आप (सुतानाम्) = कर्मानुसार उस-उस शरीर को ग्रहण करनेवाले-जन्म-धारण करनेवाले लोगों के इशिवे-ईश हैं। (त्वम्) = आप ही असतानाम् शरीर न धारण करनेवाले-जन्म न धारण करनेवाले मुक्त पुरुषों के भी ईश हैं। २. (त्वम्) = आप ही (जनानाम्) = सब जन्मधारियों के (राजा) = व्यवस्थापक-कर्मानुसार फल देनेवाले हैं।

    भावार्थ - प्रभु सभी के ईश हैं-चाहे वे जन्म लिये हुए हों, चाहे मुक्त हों। सबको कर्मानुसार जन्म देनेवाले प्रभु ही हैं।

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