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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 21

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 21/ मन्त्र 8
    सूक्त - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त

    हिर॑ण्यपाणिं सवि॒तार॒मिन्द्रं॒ बृह॒स्पतिं॒ वरु॑णं मि॒त्रम॒ग्निम्। विश्वा॑न्दे॒वानङ्गि॑रसो हवामह इ॒मं क्र॒व्यादं॑ शमयन्त्व॒ग्निम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हिर॑ण्यऽपाणिम् । स॒वि॒तार॑म् । इन्द्र॑म् । बृह॒स्पति॑म् । वरु॑णम् । मि॒त्रम् । अ॒ग्निम् । विश्वा॑न् । दे॒वान् । अङ्गि॑रस: । ह॒वा॒म॒हे॒ । इ॒मम् । क्र॒व्य॒ऽअद॑म् । श॒म॒य॒न्तु॒ । अ॒ग्निम् ॥२१.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिरण्यपाणिं सवितारमिन्द्रं बृहस्पतिं वरुणं मित्रमग्निम्। विश्वान्देवानङ्गिरसो हवामह इमं क्रव्यादं शमयन्त्वग्निम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हिरण्यऽपाणिम् । सवितारम् । इन्द्रम् । बृहस्पतिम् । वरुणम् । मित्रम् । अग्निम् । विश्वान् । देवान् । अङ्गिरस: । हवामहे । इमम् । क्रव्यऽअदम् । शमयन्तु । अग्निम् ॥२१.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 21; मन्त्र » 8

    पदार्थ -

    १. (सवितारम्) = उस प्रेरक (अग्निम्) = प्रभु को (हवामहे)  पुकारते हैं, जोकि (हिरण्यपाणिम्) = हितरमणीय पाणि-[हाथ]-वाले हैं-जिनका वरदहस्त हमारा हित-ही-हित करता है, हम उस प्रभु को पुकारते हैं जो (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली है, (बृहस्पतिम्) = ज्ञान के स्वामी हैं, (वरुणम्) = पाप के निवारक व (मित्रम्) = सबसे स्नेह करनेवाले हैं। इस प्रभु का आराधन ही हमारे जीवन में कामाग्नि को शान्त करेगा। २. हम (विश्वान्) = सब (अङ्गिरस:) = अङ्ग-प्रत्यङ्ग में रस का सञ्चार करनेवाले (देवान्) = ज्ञानी पुरुषों को पुकारते हैं, इनके सम्पर्क में हम ज्ञान की वृद्धि करनेवाले बनते हैं। ये विद्वान् (इमम्) = इस (क्रव्यादम्) = हमारे मांस को खा जानेवाले (अग्रिम्) = कामाग्नि को (शमयन्तु) = शान्त करें।

    भावार्थ -

    प्रभु का उपासन व विद्वानों का संग हमें कामाग्नि को शान्त करने में समर्थ करे ।

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