अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 14/ मन्त्र 6
सूक्त - शुक्रः
देवता - कृत्यापरिहरणम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
यदि॒ स्त्री यदि॑ वा॒ पुमा॑न्कृ॒त्यां च॒कार॑ पा॒प्मने॑। तामु॒ तस्मै॑ नयाम॒स्यश्व॑मिवाश्वाभि॒धान्या॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । स्त्री । यदि॑ । वा॒ । पुमा॑न् । कृ॒त्याम् । च॒कार॑ । पा॒प्मने॑ । ताम् । ऊं॒ इति॑ । तस्मै॑ । न॒या॒म॒सि॒ । अश्व॑म्ऽइव । अ॒श्व॒ऽअ॒भि॒धान्या॑ ॥१४.६॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि स्त्री यदि वा पुमान्कृत्यां चकार पाप्मने। तामु तस्मै नयामस्यश्वमिवाश्वाभिधान्या ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । स्त्री । यदि । वा । पुमान् । कृत्याम् । चकार । पाप्मने । ताम् । ऊं इति । तस्मै । नयामसि । अश्वम्ऽइव । अश्वऽअभिधान्या ॥१४.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 14; मन्त्र » 6
विषय - अश्वम् इव अश्वाभिधान्या
पदार्थ -
१. (यदि) = यदि (स्त्री) = कोई स्त्री (यदि वा) = अथवा (पुमान्) = पुरुष (पाप्मने) = पाप के लिए-अशुभ के लिए (कृत्यां चकार) = हिंसक प्रयोग करता है तो (ताम्) = उस हिंसक प्रयोग को (उ) = निश्चय से (तस्मै नयामसि) = उस कृत्याकृत के लिए ही प्राप्त कराते है, उसी प्रकार (इव) = जैसेकि (अश्वाभिधान्या) = घोड़े को बाँधनेवाली रज से (अश्वम्) = अश्व को पुनः उसके स्थान पर पहुँचाया जाता है। २. हम कृत्याकृत् से किसी प्रकार का बदला लेने की भावना से कोई कार्य न करें। कृत्या को कृत्याकृत के सामने इसलिए उपस्थित करें, जिससे कि वह उसकी अकरणीयता को समझ ले।
भावार्थ -
कृत्या करनेवाला चाहे स्त्री हो या पुरुष, इस कृत्या को पुन: उसी के पास पहुँचाया जाए।
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