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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 31

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 31/ मन्त्र 1
    सूक्त - शुक्रः देवता - कृत्याप्रतिहरणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त

    यां ते॑ च॒क्रुरा॒मे पात्रे॒ यां च॒क्रुर्मि॒श्रधा॑न्ये। आ॒मे मां॒से कृ॒त्यां यां च॒क्रुः पुनः॒ प्रति॑ हरामि॒ ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । ते॒ । च॒क्रु: । आ॒मे । पात्रे॑ । याम् । च॒क्रु: । मि॒श्रऽधा॑न्ये । आ॒मे । मां॒से । कृ॒त्याम् । याम् । च॒क्रु: । पुन॑: । प्रति॑ । ह॒रा॒मि॒ । ताम् ॥३१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां ते चक्रुरामे पात्रे यां चक्रुर्मिश्रधान्ये। आमे मांसे कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । ते । चक्रु: । आमे । पात्रे । याम् । चक्रु: । मिश्रऽधान्ये । आमे । मांसे । कृत्याम् । याम् । चक्रु: । पुन: । प्रति । हरामि । ताम् ॥३१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 31; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. (यां कृत्याम्) = जिस हिंसा के कार्य को (ते) = वे हमारे शत्रु (आमे पात्रे) = कच्चे पात्र में [विलेप लगाकार अपने शत्रुओं के घर दूध आदि बेच आने के द्वारा] (चक्रुः) = करते हैं। (याम्) = जिस हिंसा कार्य को (मिश्रधान्ये) = मिले-जुले अन्नों में विषैली बूटी के दाने मिलाकर (चक्रुः) = करते हैं। २. (आमे मांसे) = कच्चे फल के गूदे में [विषधारा छोड़ देने के द्वारा] यां कृत्याम्-जिस हिंसन-कार्य को चकु:-करते हैं, ताम् उस कृत्या को पुनः-फिर प्रतिहरामि-उन्हीं के प्रति प्राप्त कराता हूँ।

    भावार्थ -

    घातक प्रयोग करनेवालों को उन्हीं घातक प्रयोगों द्वारा समाप्त कर दिया जाए। वे घातक प्रयोग ही उनके लिए दण्ड हों।

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