अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 31/ मन्त्र 3
सूक्त - शुक्रः
देवता - कृत्याप्रतिहरणम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
यां ते॑ च॒क्रुरेक॑शफे पशू॒नामु॑भ॒याद॑ति। ग॑र्द॒भे कृ॒त्यां यां च॒क्रुः पुनः॒ प्रति॑ हरामि॒ ताम् ॥
स्वर सहित पद पाठयाम् । ते॒ । च॒क्रु:। एक॑ऽशफे । प॒शू॒नाम् । उ॒भ॒याद॑ति । ग॒र्द॒भे । कृ॒त्याम् । याम् । च॒क्रु: । पुन॑: । प्रति॑ । ह॒रा॒मि॒ । ताम् ॥३१.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यां ते चक्रुरेकशफे पशूनामुभयादति। गर्दभे कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठयाम् । ते । चक्रु:। एकऽशफे । पशूनाम् । उभयादति । गर्दभे । कृत्याम् । याम् । चक्रु: । पुन: । प्रति । हरामि । ताम् ॥३१.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 31; मन्त्र » 3
विषय - न मारने योग्य प्राणी
पदार्थ -
१. (याम्) = जिस (कृत्याम्) = घातक प्रयोग को (ते) = वे ककवाको मोर आदि सुन्दर पक्षियों पर (अजे) = बकरे व बकरियों के समूह पर (वा कुरीरिणि) = वा अन्य सौंगवाले पशुओं पर (चक्रुः) = करते हैं, (यां कृत्याम्) = जिस घातक प्रयोग को (ते) = वे (अव्याम्) = हमारी भेड़ों पर (चक्रुः) = करते हैं, (ताम्) = उस घातक प्रयोग को (पुनः प्रतिहरामि) = फिर उन्हें ही वापस प्राप्त कराता है, उस घातक प्रयोग से उन्हें ही दण्डित करता हूँ। २. (याम्) = जिस हिंसा-कार्य को (ते) = वे (एकशफे) = एक खुरवाले पशु पर (वा पशूनाम् उभयादति) = अथवा दोनों जबड़ों में दाँतवाले पशुओं पर (चक्रुः) = करते हैं। (यां कृत्याम्) = जिस हिंसा-कार्य को (गर्दभे) = गधे पर (चा:) = करते हैं, (ताम्) = उस हिंसा को मैं (पुनः प्रतिहरामि) = फिर वापस उन्हें ही प्राप्त कराता हूँ।
भावार्थ -
राष्ट्र में 'मोर, अज, कुरीरी [सींगवाले] पशु, भेड़, घोड़े, गाय व गर्दभ आदि का मारना दण्ड योग्य कार्य समझा जाए।
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