अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 11
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - विराड्गायत्री
सूक्तम् - विराट् सूक्त
तां र॑ज॒तना॑भिः काबेर॒कोधो॒क्तां ति॑रो॒धामे॒वाधो॑क्।
स्वर सहित पद पाठताम् । र॒ज॒तऽना॑भि: । का॒बे॒र॒क: । अ॒धो॒क् । ताम् । ति॒र॒:ऽधाम् । ए॒व । अ॒धो॒क् ॥१४.११॥
स्वर रहित मन्त्र
तां रजतनाभिः काबेरकोधोक्तां तिरोधामेवाधोक्।
स्वर रहित पद पाठताम् । रजतऽनाभि: । काबेरक: । अधोक् । ताम् । तिर:ऽधाम् । एव । अधोक् ॥१४.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10;
पर्यायः » 5;
मन्त्र » 11
विषय - इतरजनों द्वारा तिरोधा का दोहन
पदार्थ -
१.(सा उदक्रामत्) = वह विराट् उत्क्रान्त हुई। (सा इतरजनान् आगच्छत्) = [इ-तर] वह काम [बासना] को तैर जानेवाले लोगों को प्राप्त हुई। (ताम्) = उसे (इतरजना: उपाह्वयन्त) = वासना को तैरनेवाले लोग पुकारते थे कि (विषवति एहि इति) = [तिरोधा-over power, conquer, defeat] हे शत्रुपराजयशक्ते! आओ तो। (तस्याः) = उस विराट् का (वत्सः) = निय-यह वासना को पराजित करनेवाला व्यक्ति (कुबेर:) = [कुबि आच्छादने] शरीर में शक्ति को आच्छादित करनेवाला (वैश्रवण: आसीत्) = विशिष्ट श्रवण-[ज्ञान]-वाला था। (पात्रम्) = उसका यह रक्षणीय शरीर (आमपात्रम्) = सब उत्तम गतियों [अम गतौ] का आधार था। २. (ताम्) = उस विराट् को, (रजतनाभि:) = रञ्जन की साधनभूत शक्ति को अपने अन्दर बाँधनेवाला (काबेरक:) = शक्ति को अपने अन्दर ही आच्छादित करनेवाला, यह (इतरजन) = कामजयी व्यक्ति (अधोक्) = दुहता था। (तां तिरोधाम् एव अधोक्) = उसने उस शक्ति के आच्छादन का-शत्रु पराजय का ही दोहन किया। (इतरजना:) = ये वासना को तैर जानेवाले लोग (तां तिरोधाम् उपजीवन्ति) = उस शक्ति के आच्छादान की वृत्ति को-शत्रु-पराजय की वृत्ति को ही जीवनाधार बनाते हैं। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार शक्ति के अन्तरधान के महत्त्व को व कामरूप शत्रु को पराजित करने के महत्त्व को समझ लेता है, वह (सर्वं पाप्मानं तिरोधत्ते) = वह सारे पाप को पराजित कर डालता है तथा (उपजीवनीयः भवति) = औरों के जीवन में भी सहायक होता है।
भावार्थ -
विशिष्ट शासन-व्यवस्था होने पर कामवासना को पराजित करनेवाला व्यक्ति अपने अन्दर शक्ति को आच्छादित करता है और विशिष्ट ज्ञानवाला बनता है। यह पाप को पराजित करता हुआ अपने जीवन को सुन्दर बनाता है और औरों के लिए सहायक होता है।
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