अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - साम्नी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - विराट् सूक्त
तस्या॑श्चि॒त्रर॑थः सौर्यवर्च॒सो व॒त्स आसी॑त्पुष्करप॒र्णं पात्र॑म्।
स्वर सहित पद पाठतस्या॑: । चि॒त्रऽर॑थ: । सौ॒र्य॒ऽव॒र्च॒स: । व॒त्स: । आसी॑त् । पु॒ष्क॒र॒ऽप॒र्णम् । पात्र॑म् ॥१४.६॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्याश्चित्ररथः सौर्यवर्चसो वत्स आसीत्पुष्करपर्णं पात्रम्।
स्वर रहित पद पाठतस्या: । चित्रऽरथ: । सौर्यऽवर्चस: । वत्स: । आसीत् । पुष्करऽपर्णम् । पात्रम् ॥१४.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10;
पर्यायः » 5;
मन्त्र » 6
विषय - ब्राह्मण व क्षत्रिय द्वारा पुण्यगन्ध' का दोहन
पदार्थ -
१. (सा उदक्रामत्) = वह विराट् उत्क्रान्त हुई। (सा) = वह (गन्धर्वाप्सरसः) = ज्ञान की वाणी को धारण करनेवाले ब्राह्मणों के पास तथा [आप: नरसूनवः] प्रजाओं में विचरनेवाले [स गतौ] क्षत्रियों के पास (आगच्छत्) = आई। (ताम्) = उसे (गन्धर्वाप्सरस:) = ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों ने (उपाह्वयन्त) = पकारा कि (पुण्यगन्धे एहि इति) = पवित्र ज्ञान [पुण्य] के साथ सम्बन्धवाली[गन्ध-सम्बन्धे] आओ तो। (तस्या:) = उसका (वत्स:) = प्रिय (चित्ररथ:) = अद्भुत शरीर-रथवाला अथवा [चित् ज्ञाने] ज्ञानयुक्त शरीर-रथवाला (सौर्यवर्चस:) = सूर्य के समान वर्चस्वाला (आसीत्) = था। (पात्रम्) = उसका यह रक्षणीय शरीर (पुष्करपर्णम्) = [पुष् कर, प पालनपूरणयोः] पोषण करनेवाला तथा पालन व पूरण में प्रवृत्त था। २. (ताम्) = उस विराट् को (वसुरुचि:) = शरीर में उत्तम निवास के द्वारा दीस होनेवाले (सौर्यवर्चस:) = सूर्यसम वर्चस्वाले ने (अधोक्) = दुहा। इस 'वसुरुचि सौर्यवर्चस्' ने (ताम्) = उस विराट् से (पुण्यं एव गन्धम्) = पवित्र ज्ञान के साथ सम्बन्ध को ही (अधोक्) = दुहा। ये (गन्धर्वाप्सरस:) = ज्ञान की वाणी को धारण करनेवाले और प्रजाओं में विचरनेवाले क्षत्रिय (तम्) = उस (पुण्यगन्धं उपजीवन्ती) = पवित्र ज्ञान के साथ सम्बन्ध को ही जीवनाधार बनाते हैं। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार 'पुण्यगन्ध' के महत्त्व को समझ लेते हैं, वे (पुण्यगन्धि:) = इस पवित्र ज्ञान के साथ सम्बन्धवाले (उपजीवनीय:) = औरों के लिए जीवन में सहायक (भवति) = होते हैं।
भावार्थ -
उत्तम शासन-व्यवस्था होने पर ब्राह्मण व क्षत्रिय 'पवित्र ज्ञान के साथ सम्बन्ध' प्राप्त करने के लिए यनशील होते हैं। इससे वे शरीर में उत्तम ज्ञान व निवास से दीस व सूर्यसम वर्चस्वाले होकर उत्तम जीवन प्राप्त करते हैं और औरों के लिए भी सहायक होते हैं।
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