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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 9
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - चतुष्पदोष्णिक् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    सोद॑क्राम॒त्सेत॑रज॒नानाग॑च्छ॒त्तामि॑तरज॒ना उपा॑ह्वयन्त॒ तिरो॑ध॒ एहीति॑।

    स्वर सहित पद पाठ

    सा । उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा । इ॒त॒र॒ऽज॒नान् । आ । अ॒ग॒च्छ॒त् । ताम् । इ॒त॒र॒ऽज॒ना: । उप॑ । अ॒ह्व॒य॒न्त॒ । तिर॑:ऽधे । आ । इ॒हि॒ । इति॑ ॥१४.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोदक्रामत्सेतरजनानागच्छत्तामितरजना उपाह्वयन्त तिरोध एहीति।

    स्वर रहित पद पाठ

    सा । उत् । अक्रामत् । सा । इतरऽजनान् । आ । अगच्छत् । ताम् । इतरऽजना: । उप । अह्वयन्त । तिर:ऽधे । आ । इहि । इति ॥१४.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 5; मन्त्र » 9

    पदार्थ -

    १.(सा उदक्रामत्) = वह विराट् उत्क्रान्त हुई। (सा इतरजनान् आगच्छत्) = [इ-तर] वह काम [बासना] को तैर जानेवाले लोगों को प्राप्त हुई। (ताम्) = उसे (इतरजना: उपाह्वयन्त) = वासना को तैरनेवाले लोग पुकारते थे कि (विषवति एहि इति) = [तिरोधा-over power, conquer, defeat] हे शत्रुपराजयशक्ते! आओ तो। (तस्याः) = उस विराट् का (वत्सः) = निय-यह वासना को पराजित करनेवाला व्यक्ति (कुबेर:) = [कुबि आच्छादने] शरीर में शक्ति को आच्छादित करनेवाला (वैश्रवण: आसीत्) = विशिष्ट श्रवण-[ज्ञान]-वाला था। (पात्रम्) = उसका यह रक्षणीय शरीर (आमपात्रम्) = सब उत्तम गतियों [अम गतौ] का आधार था। २. (ताम्) = उस विराट् को, (रजतनाभि:) = रञ्जन की साधनभूत शक्ति को अपने अन्दर बाँधनेवाला (काबेरक:) = शक्ति को अपने अन्दर ही आच्छादित करनेवाला, यह (इतरजन) = कामजयी व्यक्ति (अधोक्) = दुहता था। (तां तिरोधाम् एव अधोक्) = उसने उस शक्ति के आच्छादन का-शत्रु पराजय का ही दोहन किया। (इतरजना:) = ये वासना को तैर जानेवाले लोग (तां तिरोधाम् उपजीवन्ति) = उस शक्ति के आच्छादान की वृत्ति को-शत्रु-पराजय की वृत्ति को ही जीवनाधार बनाते हैं। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार शक्ति के अन्तरधान के महत्त्व को व कामरूप शत्रु को पराजित करने के महत्त्व को समझ लेता है, वह (सर्वं पाप्मानं तिरोधत्ते) = वह सारे पाप को पराजित कर डालता है तथा (उपजीवनीयः भवति) = औरों के जीवन में भी सहायक होता है।

    भावार्थ -

    विशिष्ट शासन-व्यवस्था होने पर कामवासना को पराजित करनेवाला व्यक्ति अपने अन्दर शक्ति को आच्छादित करता है और विशिष्ट ज्ञानवाला बनता है। यह पाप को पराजित करता हुआ अपने जीवन को सुन्दर बनाता है और औरों के लिए सहायक होता है।

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