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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - आर्ची बृहती सूक्तम् - गौ सूक्त

    प्र॒जाप॑तिश्च परमे॒ष्ठी च॒ शृङ्गे॒ इन्द्रः॒ शिरो॑ अ॒ग्निर्ल॒लाटं॑ य॒मः कृका॑टम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒जाऽप॑ति: । च॒ । प॒र॒मे॒ऽस्थी । च॒ । शृङ्गे॒ इति॑ । इन्द्र॑: । शिर॑: । अ॒ग्नि: । ल॒लाट॑म् । य॒म: । कृका॑टम् ॥१२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रजापतिश्च परमेष्ठी च शृङ्गे इन्द्रः शिरो अग्निर्ललाटं यमः कृकाटम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रजाऽपति: । च । परमेऽस्थी । च । शृङ्गे इति । इन्द्र: । शिर: । अग्नि: । ललाटम् । यम: । कृकाटम् ॥१२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. वेदधेनु के विराट् शरीर की यहाँ कल्पना की गई है। इस वेदवाणी में उस प्रभु का वर्णन है जोकि सब देवों के अधिष्ठान हैं-('ऋचो अक्षरे परमे व्योमन् यस्मिन् देवा अधि विश्वे निषेदुः')। = सब देवों को इस गौ के विराट् शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्ग में दिखलाते हैं। प्(रजापतिः च परमेष्ठी च शृंगे) = प्रजापति और परमेष्ठी दोनों इस गौ के सींग है, (इन्द्रः शिर:) = इन्द्र सिर है, (अग्निः ललाटम्) = अग्नि ललाट है, (यमः कृकाटम्) = यम गले की घंटी है। २. (सोमः राजा मस्तिष्क:) = सोम राजा उसका मस्तिष्क है, (द्यौः उत्तरहनु:) = धुलोक उसका ऊपर का जबड़ा है, (पृथिवी अधरहनुः) = पृथिवी उसका नीचे का जबड़ा है। ३. (विद्युत् जिह्वा) = विद्युत् उसकी जिला है। (मरुतः दन्त:) = मरुत् [वायुएँ] उसके दाँत हैं, (रेवती: ग्रीवा:) = रेवतीनक्षत्र उसकी गर्दन है, (कृत्तिकाः स्कन्धा:) = कृत्तिका नक्षत्र कन्धे हैं और (धर्मः वहः) = प्रकाशमान् सूर्य व ग्रीष्मऋतु उसके ककुद के पास का स्थान है।

    भावार्थ -

    वेदवाणी में 'प्रजापति परमेष्ठी' के प्रतिपादन के साथ 'इन्द्र, अग्नि, यम, सोम, द्यौ, पृथिवी, विद्युत, वायु, रेवती व कृत्तिका आदि नक्षत्र व धर्म' का ज्ञान उपलभ्य है।

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