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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - आर्च्यनुष्टुप् सूक्तम् - गौ सूक्त

    वि॒द्युज्जि॒ह्वा म॒रुतो॒ दन्ता॑ रे॒वती॑र्ग्री॒वाः कृत्ति॑का स्क॒न्धा घ॒र्मो वहः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्युत् । जि॒ह्वा । म॒रुत॑: । दन्ता॑: । रे॒वती॑: । ग्री॒वा: । कृत्ति॑का: । स्क॒न्धा: । घ॒र्म: । वह॑: ॥१२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्युज्जिह्वा मरुतो दन्ता रेवतीर्ग्रीवाः कृत्तिका स्कन्धा घर्मो वहः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्युत् । जिह्वा । मरुत: । दन्ता: । रेवती: । ग्रीवा: । कृत्तिका: । स्कन्धा: । घर्म: । वह: ॥१२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    १. वेदधेनु के विराट् शरीर की यहाँ कल्पना की गई है। इस वेदवाणी में उस प्रभु का वर्णन है जोकि सब देवों के अधिष्ठान हैं-('ऋचो अक्षरे परमे व्योमन् यस्मिन् देवा अधि विश्वे निषेदुः')। = सब देवों को इस गौ के विराट् शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्ग में दिखलाते हैं। प्(रजापतिः च परमेष्ठी च शृंगे) = प्रजापति और परमेष्ठी दोनों इस गौ के सींग है, (इन्द्रः शिर:) = इन्द्र सिर है, (अग्निः ललाटम्) = अग्नि ललाट है, (यमः कृकाटम्) = यम गले की घंटी है। २. (सोमः राजा मस्तिष्क:) = सोम राजा उसका मस्तिष्क है, (द्यौः उत्तरहनु:) = धुलोक उसका ऊपर का जबड़ा है, (पृथिवी अधरहनुः) = पृथिवी उसका नीचे का जबड़ा है। ३. (विद्युत् जिह्वा) = विद्युत् उसकी जिला है। (मरुतः दन्त:) = मरुत् [वायुएँ] उसके दाँत हैं, (रेवती: ग्रीवा:) = रेवतीनक्षत्र उसकी गर्दन है, (कृत्तिकाः स्कन्धा:) = कृत्तिका नक्षत्र कन्धे हैं और (धर्मः वहः) = प्रकाशमान् सूर्य व ग्रीष्मऋतु उसके ककुद के पास का स्थान है।

    भावार्थ -

    वेदवाणी में 'प्रजापति परमेष्ठी' के प्रतिपादन के साथ 'इन्द्र, अग्नि, यम, सोम, द्यौ, पृथिवी, विद्युत, वायु, रेवती व कृत्तिका आदि नक्षत्र व धर्म' का ज्ञान उपलभ्य है।

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