अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 5
श्ये॒नः क्रो॒डो॒न्तरि॑क्षं पाज॒स्यं बृह॒स्पतिः॑ क॒कुद्बृ॑ह॒तीः कीक॑साः ॥
स्वर सहित पद पाठश्ये॒न: । क्रो॒ड: । अ॒न्तरि॑क्षम् । पा॒ज॒स्य᳡म् । बृह॒स्पति॑: । क॒कुत् । बृ॒ह॒ती: । कीक॑सा: ॥१२.५॥
स्वर रहित मन्त्र
श्येनः क्रोडोन्तरिक्षं पाजस्यं बृहस्पतिः ककुद्बृहतीः कीकसाः ॥
स्वर रहित पद पाठश्येन: । क्रोड: । अन्तरिक्षम् । पाजस्यम् । बृहस्पति: । ककुत् । बृहती: । कीकसा: ॥१२.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 5
विषय - वायु से उपसद तक
पदार्थ -
१. (वायुः विश्वम्) = वायु उसके सब अवयव हैं। (स्वर्ग: लोक:) = स्वर्गलोक (कृष्णद्रम्) = आकर्षक गति है [कृष्ण हु], विधरणी लोकों को पृथक्-पृथक् स्थापित करनेवाली शक्ति (निवेष्यः) = उसका बैठने का कूल्हा है। २. (श्येन:) = श्येनयाग (क्रोड:) = उसका गोद-भाग है, (अन्तरिक्षम्) = अन्तरिक्ष (पाजस्यम्) = पेट है, (ब्रहस्पतिः ककुद्) = बृहस्पति उसका ककुद है। (बृहती:) = ये विशाल दिशाएँ (कीकसा:) = उसके गले के मोहरे हैं। ३. (देवानां पत्नी:) = 'सूर्या, इन्द्राणी, वरुणानी, अग्नाणी' आदि देवपलियाँ (पृष्टयः) = पृष्ठ के मोहरे, (उपसदः) = उपसद इष्टियाँ (पर्शवः) = उसकी पसलियाँ हैं।
भावार्थ -
वेदवाणी में प्रभु के बनाये हुए वायु आदि पदार्थों के ज्ञान के साथ कर्तव्यभूत उपसद आदि इष्टियों का भी प्रतिपादन किया गया है।
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