अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 17
रक्षां॑सि॒ लोहि॑तमितरज॒ना ऊब॑ध्यम् ॥
स्वर सहित पद पाठरक्षां॑सि । लोहि॑तम् । इ॒त॒र॒ऽज॒ना: । ऊब॑ध्यम् ॥१२.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
रक्षांसि लोहितमितरजना ऊबध्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठरक्षांसि । लोहितम् । इतरऽजना: । ऊबध्यम् ॥१२.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 17
विषय - नदी से निधन तक
पदार्थ -
१. (नदी सूत्री) = नदी इस वेदधेनु की सूत्री [जन्म देनेवाली नाड़ी], (वर्षस्य पतय:) = वृष्टि के पालक मेघ (स्तना:) = स्तन हैं, (स्तनयित्नुः ऊधः) = गर्जनशील मेघ ऊधस् [औड़ी] है। (विश्वव्यचा:) = सर्वव्यापक आकाश (चर्म) = चमड़ा है, (ओषधयः लोमानि) = ओषधियाँ लोम हैं, (नक्षत्राणि रूपम्) = नक्षत्र उसके रूप, अर्थात् देह पर चितकबरे चिह्न हैं। २. (देवजना:) = देवजन [ज्ञानी लोग] (गुदा:) = गुदा हैं, (मनुष्याः आन्द्राणि) = मननशील मनुष्य उसकी आते हैं, (अत्ताः उदरम्) = अन्य खाने-पीनेवाले प्राणी उसके उदर हैं, (रक्षांसि लोहितम्) = राक्षस लोग रुधिर हैं, (इतरजना: ऊबध्यम्) = इतर जन अनपचे अन्न के समान हैं, (अभ्रम्) = मेघ (पीव:) = मेदस् [चर्बी] हैं, (निधनम्) = निधन (मज्जा) = मज्जा है [निधन-यज्ञ का अन्तिम प्रसाद]।
भावार्थ -
वह वेदवाणी 'नदियों व निधन' सबका प्रतिपादन कर रही है।
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